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    9 जुलाई को होगी गुरु पूर्णिमा, बिना रुपये खर्च करें ये उपाय बन जाएंगे बिगड़े काम

    By abhishek.tiwariEdited By:
    Updated: Sun, 09 Jul 2017 10:40 AM (IST)

    आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इस साल 9 जुलाई को यह पर्व मनाया जा रहा है।

    9 जुलाई को होगी गुरु पूर्णिमा, बिना रुपये खर्च करें ये उपाय बन जाएंगे बिगड़े काम

    गुरु चरण वंदना से मिलता है ज्ञान

    गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

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    वेद व्‍यास का होता है जन्‍मदिन

    यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।

     

    क्‍या मतलब होता है गुरु का

    शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है।

     

    "अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः "

     

    गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

    क्‍या है गुरु पूर्णिमा का महत्‍व

    भारतभर में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मन्दिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।

     

    1. यदि कारोबार मंदा चल रहा है या किसी कारण से भाग्‍योदय नहीं हो पा रहा है। तो पूर्णिमा के दिन किसी जरूरतमंद को पीले वस्‍त्र, पीली मिठाई अथवा पीले अनाज का दान करें। तुरंत लाभ मिलेगा। 

     

    2. जिन बच्‍चों की पढ़ाई में बाधा आ रही है। या पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता, उन्‍हें इस दिन भगवान कृष्‍ण की पूजा करनी चाहिए। साथ ही गाय की सेवा करने से लाभ मिलता है।

     

    3. गुरु पूर्णिमा के दिन बृहस्‍पति के महामंत्र 'ऊं बृं बृहस्‍पतये नम:' का जाप करें। आप चाहें तो गायत्री मंत्र का जप भी कर सकते हैं। इससे भी गुरु के अशुभ प्रभाव में कमी आती है और शीघ्र फल मिलता है।