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रोजे का असल मकसद स्वार्थ से मुक्ति है

रमजान रहमतों का माह है। हजरत अबू हुरैरा ने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हदीस उद्धृत की है। जिसका भावार्थ यह है कि उन्होंने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है कि जब रमजान शुरू होता है तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को बांध दिया जाता है। (पुस्तक सही बुखारी पृष्ठ 255) जन्नत के द

By Edited By: Published: Tue, 06 Aug 2013 11:38 AM (IST)Updated: Tue, 06 Aug 2013 11:41 AM (IST)
रोजे का असल मकसद स्वार्थ से मुक्ति है

रमजान रहमतों का माह है। हजरत अबू हुरैरा ने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हदीस उद्धृत की है। जिसका भावार्थ यह है कि उन्होंने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है कि जब रमजान शुरू होता है तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को बांध दिया जाता है। (पुस्तक सही बुखारी पृष्ठ 255)

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जन्नत के दरवाजे खोलने से तात्पर्य रहमतों को खोल देने से है। जन्नत के दरवाजे खोलने से मतलब नेक कामों का बदला बढ़ा दिए जाने से भी है। जहन्नम के दरवाजे बंद करने से तात्पर्य है कि रोजेदारों के लिए जहन्नम की आग ठंडी कर दी जाती है। एक रोजेदार जब परहेजगारी आरुढ़ करता है तो स्वत: गुनाहों से दूर हो जाता है और उसके लिए जन्नम के दरवाजे बंद हो जाते हैं। लालच और हवस से रोजेदार दूर रहता है तो दिमाग में घुसकर बहकाने वाले शैतान को बांध दिए जाने से तात्पर्य साकार हो जाता है।

सही बुखारी पुस्तक में ही एक हदीस बयान करते हुए हजरत अबू हुरैरा ने भावार्थ बताया कि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि जो कोई रमजान में झूठ न छोड़े और उसी के मुताबिक चलता रहे तो अल्लाह को इस बात की आवश्यकता नहीं कि कोई खाना और पीना छोड़ दे। शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी ने अपनी पुस्तक आशिया अललमात में इस हदीस की व्याख्या करते हुए लिखा कि उसका रोजा अल्लाह के यहां कुबूल नहीं है जो रोजे के नाम पर सिर्फ भूखा और प्यासा रहे। रोजे का असल मकसद तो हवस से छुटकारा है, स्वार्थ से मुक्ति है। ऐसी पुण्यात्मा अल्लाह की रहमत के उम्मीदवार है।

तिरमीजी की एक और हदीस का भावार्थ है कि रमजान में आकाशवाणी होती है कि है कोई जो नेकी चाहता है और बुराई से निजात चाहता है, आगे आए। रमजान की हर रात कई गुनहगारों को जहन्नम से निजात मिलती है।

सूफी जफीर अहमद अशरफी

(मदरसा हनीफिया बाबुल उलूम जेजे कॉलोनी बवाना, दिल्ली में इस्लामी शिक्षा देते हैं।)

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