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    प्रेत बाधा से मुक्ति को अष्टकमल कूप में डाला पिंड व नारियल

    By Edited By:
    Updated: Tue, 24 Sep 2013 05:37 AM (IST)

    पंचकोसी गया क्षेत्र के तहत बोधगया के सरस्वती (मुहाने) नदी में तर्पण, धर्मारण्य व मातंगवापी पिंडवेदी में पिंडदान व महाबोधि मंदिर में दर्शन की परंपरा कालांतर से चली आ रही है। जिसका निर्वहन पितृपक्ष के तृतीया तिथि को श्राद्ध कर्म कांड करने वाले आस्थावानों की भीड़ धर्मारण्य, मांतगवापी व महाबोधि मंदिर मे रविवार क

    निज प्रतिनिधि, बोधगया (गया)। पंचकोसी गया क्षेत्र के तहत बोधगया के सरस्वती (मुहाने) नदी में तर्पण, धर्मारण्य व मातंगवापी पिंडवेदी में पिंडदान व महाबोधि मंदिर में दर्शन की परंपरा कालांतर से चली आ रही है। जिसका निर्वहन पितृपक्ष के तृतीया तिथि को श्राद्ध कर्म कांड करने वाले आस्थावानों की भीड़ धर्मारण्य, मांतगवापी व महाबोधि मंदिर मे रविवार को उमड़ी। लेकिन सरस्वती पिंडवेदी पर विरानी छायी रही। सरस्वती पिंडवेदी पर होने वाले तर्पण के विधान को पंडा-पुजारी धर्मारण्य के समीप ही मुहाने नदी में संपन्न कराए। क्योंकि सरस्वती पिंडवेदी आज भी पूर्णतया उपेक्षित है। आवागमन के लिए मार्ग सुलभ न होने के कारण तीर्थ यात्री वहां तक पहुंच नहीं पाते। फिर भी तर्पण, पिंडदान व दर्शन का सिलसिला बोधगया के पिंडवेदियों पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक चला।

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    मुहाने नदी में स्नान व तर्पण के पश्चात तीर्थ यात्री धर्मारण्य पिंडवेदी पर पहुंच रहे थे। जहां पूर्व से ही पंडा-पुजारी के सेवक यजमान के बैठने के लिए जगह की व्यवस्था कर रखे हैं। वहां यजमान परंपरा के अनुसार श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को याद कर पिंडदान के विधान को संपन्न कर पिंड को धर्मारण्य मंडप में बने अष्टकमल आकार के कूप में छोड़ते हैं। वहीं, कई ऐसे तीर्थ यात्री भी थे जो प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध कर धर्मारण्य परिसर में बने अष्टकमल आकार के दूसरे कूप में नारियल छोड़ रहे थे। यहां के बाद तीर्थ यात्री मातंगवापी पिंडवेदी पहुंचते हैं। यहां तीर्थ यात्री अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए किए पिंडदान को मातंगेश शिव पर छोड़ते हैं।

    वायु पुराण के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने महाबोधि मंदिर में धर्म नामक शंकर व बोधिवृक्ष को नमस्कार पिंडदान करने के पश्चात किया था। और स्कंध पुराण के अनुसार धर्मारण्य में महाभारत युद्ध में जाने-अंजाने मारे गए लोगों के आत्मा की शांति के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने पिंडदान किया था। महाबोधि मंदिर के मुचलिंद सरोवर का क्षेत्र तीर्थ यात्रियों से पटा है। सभी अपने पितरों के मोक्ष की कामना से पिंडदान के विधान करने में लगे हैं। पंडा-पुजारी मंत्र का जोर-जोर से उच्चारण कर रहे हैं। भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान बुद्ध का जयकारा भी विधान समाप्त होने पर ताली बजाकर तीर्थ यात्री लगाते हैं। उसके बाद मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध का दर्शन व पवित्र बोधिवृक्ष को नमन कर अगले पड़ाव की ओर रवाना होते हैं।

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