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देवदर्शन भी पिंडवेदियों के अंतर्गत है

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुक्रवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का द्वितीय दिवस है। इस तिथि को प्रेतशिला एवं रामशिला की वेदियों पर पिंडदान के बाद समीप में स्थित देवताओं के दर्शन पूजन किए जाते हैं। दर्शनीय देवता भी 360 वेदियों में गिने जाते हैं। सर्वप्रथम प्रेतशिला के उत्तर में स्थित प्रेतकुंड पर तर्पण एवं श्राद्ध होते हैं। प्रेतक

By Edited By: Published: Fri, 20 Sep 2013 08:39 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2013 08:43 PM (IST)
देवदर्शन भी पिंडवेदियों के अंतर्गत है

गया। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुक्रवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का द्वितीय दिवस है। इस तिथि को प्रेतशिला एवं रामशिला की वेदियों पर पिंडदान के बाद समीप में स्थित देवताओं के दर्शन पूजन किए जाते हैं। दर्शनीय देवता भी 360 वेदियों में गिने जाते हैं। सर्वप्रथम प्रेतशिला के उत्तर में स्थित प्रेतकुंड पर तर्पण एवं श्राद्ध होते हैं।

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प्रेतकुंड को ब्रह्मकुंड तथा प्रेतशिला को प्रेत पर्वत भी कहा जाता है। प्रेतकुंड के अग्नि कोण में पिंड छोड़ा जाता है। कुंड की तीन दिशाओं में चार शिव मंदिर है। ये चारों शंकर प्रेत को श्राद्धकर्ता द्वारा दर्शन पूजन किए जाने पर प्रेतत्व से मुक्त करते हैं। इसके बाद 676 सीढि़यों से चढ़कर प्रेत पर्वत (प्रेतशिला) पर श्राद्ध होता है। पिंड ब्रह्म के चरण पर चढ़ाया जाता है। पत्थर से निर्मित छत्त वाले आठ स्तंभ के चौकोर बरामदे में ब्रह्म का चरण है। एड़ी उत्तर की आर तथा अंगूठा दक्षिण की ओर है।

पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर खींची गई सुवर्ण रेखा पर यह चरण है। चरण से उत्तर दिशा में दक्षिण मुख वाले चतुर्भुज विष्णु हैं। इनके दर्शन नमस्कार मुक्तिदायक होते हैं। चरण से पश्चिम दिशा में 6 फीट गुणा 4 फीट के आकार का शिला है। जिसके समीप ही उत्तर मुख वाली तीन प्रेत मूर्तियां हैं। इनके पास तिल मिला हुआ सत्तू छींटने का विधान है।

[आचार्य लालभूषण मिश्र]

बोधगया की पिंडवेदियां प्रशासन की नजर से ओझल

बोधगया (गया), निज प्रतिनिधि। एक पखवारे तक चलने वाला विश्व विख्यात पितृपक्ष मेला 2013 शुरू हो गया है। और पिंडदानियों का आगमन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। पितृपक्ष के तृतीया तिथि को बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर, सरस्वती, मातंगवापी व धर्मारण्य पिंडवेदियों पर पिंडदान का विधान है। लेकिन बोधगया की पिंडवेदियां जिला प्रशासन की नजर से ओझल है। इन पिंडवेदियों पर पेयजल से लेकर सुविधा प्रदान करने की जिम्मेवारी पिंडवेदी पर तैनात पंडा-पुजारी के जिम्मे होता है। और पिंडवेदी का रंग-रोगन गया के समाजसेवी शिवराम डालमिया के सहयोग से कराया जाता है। फिलवक्त धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान करने जाने वाले यात्रियों को पानी के लिए परेशानी का सामना करना पड़ेगा। धर्मारण्य पिंडवेदी पर गत वर्ष समाजसेवी के सहयोग से बोरिंग कराकर समरसेबल मोटर लगाया गया था। जो गतेक दिनों चोरी हो गई। अभी मात्र एक चापाकल ही पेयजल के लिए सहारा बना है। यहां सुरक्षा के बाबत चार जवान व एक अधिकारी की तैनाती की गई है। आवागमन वाले मार्ग का मरम्मती किया जा रहा है। धर्मारण्य वेदी पर पड़ाव शुल्क की वसूली का टेंडर जिला प्रशासन स्तर से किया जाता है। हालांकि बृहस्पतिवार को इक्का-दुक्का वाहन आ रहे थे। लेकिन कोई पड़ाव शुल्क की वसूली करने वाले नहीं दिखे।

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