नवरात्र उपवास-साधना के माध्यम से तन-मन को शुद्ध करने का अवसर है
शक्ति अथवा ऊर्जा हमारे जीवन का आवश्यक तत्व है, जिससे हम सब अनुप्राणित हैं। संसृति की उसी मूलभूत शक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्र। उपासना के ये नौ दिन ऊर्जा के रंगों का इंद्रधनुष बनाते हैं
शक्ति अथवा ऊर्जा हमारे जीवन का आवश्यक तत्व है, जिससे हम सब अनुप्राणित हैं। संसृति की उसी मूलभूत शक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्र। उपासना के ये नौ दिन ऊर्जा के रंगों का इंद्रधनुष बनाते हैं...
श्वेत मूल तत्व है। जैसे दही, छाछ या मक्खन बनने से पहले दूध। या फिर, जैसे कोरा कागज। जिस पर बहुत कुछ लिखा जाना शेष है। ऐसा ही होता है शिशुओं का अबोध मन। जिस पर अनुभव की कलम और संघर्ष की
स्याही से जीवन की इबारत लिखी जानी है।
मान्यता है कि नवरात्र के प्रथम दिन पूजी जाने वाली शैलपुत्री का रंग भी श्वेत है। मिथकों के अनुसार, महिषासुर ने तपस्या कर ब्रह्मा से वरदान मांगा कि कोई भी आदमी उन्हें मार न सके। मां दुर्गा का स्वरूप उसी भ्रम का प्रतिवाद है, जिसमें लगता है कि सभी शक्तियां केवल पुरुष में निहित हैं। जबकि शक्ति का मूलाधार तो स्त्री है। इसलिए नवरात्र में च्कन्याज् पूजन का विधान है। प्रथम दिन दो वर्ष तक की कन्या की उपासना का प्रावधान है। इस उम्र के बच्चे सांसारिक भावों से अछूते होते हैं।
देवी शैलपुत्री के श्वेत स्वरूप की तरह। निश्छल। इसी सफेद रंग को आभाचक्र (औरा) का आधार कहा गया है। मनुष्य के भीतर सकारात्मक व नकारात्मक रंगों की उपस्थिति होती है, जो मिलकर आभाचक्र बनाते हैं। इसमें
ऊर्जा का लाल रंग भी है और सौम्यता एवं प्यार का गुलाबी रंग भी। जब कोई व्यक्ति सभी रंगों को उचित मात्रा में संयोजित कर लेता है, तो उसके शरीर की आभा एक इंद्रधनुष बनाती है। कमजोरी पर जीत ही है शक्ति। अन्य देवियां जहां पुष्प पर विराजमान दिखती हैं, वहीं देवी दुर्गा च्सिंहज् की सवारी करती हैं। सिंह शक्ति का प्रतीक है। जब शक्ति आपके नियंत्रण में होगी तो कोई भी फैसला लेना मुश्किल नहीं होगा।
नवरात्र उपवास-साधना के माध्यम से तन-मन को शुद्ध करने का अवसर है। तीन-तीन दिवस के तीन टुकड़े मन, कर्म और विचारों की मंथन प्रक्रिया हैं। प्रथम तीन दिन आराध्य देवियों की उपस्थिति जहां श्वेत और आरोही क्रम में बढ़ते उसके शेड्स के अनुसार होती है, वहीं नवरात्र के मध्य में बुद्धि, विवेक और वात्सल्य के सौम्य रंग आ जाते हैं, जिनसे जीवन का समुचित संचालन किया जा सके। तीसरे हिस्से अर्थात सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर सभी रंग अपने चरम पर होते हैं। सप्तम कालरात्रि हैं, तो अष्टम महागौरी और नवम सिद्धिदात्री।
मान्यता है कि महिषासुर के अत्याचारों से तंग आकर देवताओं ने त्रिदेव से सहायता मांगी। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आक्रोश से जो ऊर्जा उत्पन हुई, उसने एक स्त्री का रूप लिया। निजी जीवन में भी महसूस कीजिए आक्रोश से उपजी ऊर्जा अनियंत्रित होती है। आक्रोश में लिए गए फैसले बहुधा गलत सिद्ध हो जाते हैं। इसलिए महापुरुषों ने भी कहा है कि कोई भी फैसलाक्रोध में नहीं लेना चाहिए। आक्रोश से उत्पन्न देवी में असीम ऊर्जा तो थी, किंतु वह शक्ति नहीं बन पाई थीं।
देवताओं ने त्रिशूल, धनुष बाण आदि अस्त्रों के साथ ही देवी को जल से पूर्ण कलश, वायु, पुष्प और सूर्य का तेज प्रदान कर उन्हें शक्ति-संपन्न किया। यह वैसा ही था, जैसे आक्रोश से उत्पन्न ऊर्जा के बाद ठंडे दिमाग से कोई निर्णय लिया जाए।लाल रंग जहां ऊर्जा का प्रतीक है, वहीं इसकी अधिकता हिंसक प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति है।
यही कारण है कि मां की लाल चुनरी पर सुनहरे रंग का गोटा लगाया जाता है या लाल रंग के कलावे में पीले रंग की उपस्थिति रहती है।
यह ऊर्जा के साथ विवेक का सम्मिश्रण है। ऊर्जा के लाल रंग से भरे इन खुशनुमा दिनों में पवित्रता, शु़द्धता, सौम्यता, विवेक और ऐश्वर्य के रंगों का सम्मिश्रण कर बनाएं ऊर्जा का इंद्रधनुष, ताकि विजयश्री आपके कदम चूमे।
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