क्या है धनतेरस की पूजन विधि और क्या मिलता है लाभ?
उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाता है। धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है। यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव क
उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाता है। धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है। यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है।
- धन्वन्तरि की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करने से सुख-समृद्धि व आरोग्य की प्राप्ति होती है।
- कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। इस दिन भगवान धन्वन्तरि की विशेष पूजन-अर्चना की जाती है। इस बार यह पर्व 1 नवम्बर, शुक्रवार को है।
- पूजा करने के बाद घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला दीपक जिसमें कुछ पैसा और कौड़ी डालकर पूरी रात्रि जलाना चाहिए।
- पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार देवताओं व दैत्यों ने जब समुद्र मंथन किया तो उसमें से कई रत्न निकले। समुद्र मंथन के अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। उस दिन कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी ही थी इसलिए तब से इस तिथि को भगवान धन्वन्तरि का प्रकटोत्सव मनाए जाने का चलन प्रारंभ हुआ।
- पुराणों में धन्वन्तरि को भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना गया है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि का पूजन इस प्रकार करें-
धनतेरस का क्या है शुभ मुहूर्त-
दिन है 1 नवंबर 2013 शुक्रवार
प्रदोष काल मुहूर्त- 18: 01 से 20:33
धनतेरस पूजा मुहूर्त -18: 53 से 20: 33
अवधि- 1 घंटा 40 मिनट
वृषभ काल - 18: 53 से 20: 53
त्रियोदशी तिथि प्रारम्भ - 22: 16 , 31/अक्टूबर /2013
त्रियोदशी तिथि समाप्त - 21: 33 , 1/नवंबर/2013
पूजन विधि- सर्वप्रथम नहाकर साफ वस्त्र धारण करें। भगवान धन्वन्तरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा स्वयं पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धन्वन्तरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,
अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।
इसके पश्चात पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धन्वन्तरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवैद्य लगाएं। (अगर चांदी का पात्र उपलब्ध न हो तो अन्य पात्र में भी नैवेद्य लगा सकते हैं।) तत्पश्चात पुन: आचमन के लिए जल छोड़े। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वन्तरि को अर्पित करें। रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।
स्थिर लक्ष्मी की होती है खास पूजा -
इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजन करने के साथ-साथ सात धान्यों (गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) की पूजा की जाती है। सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है। इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्ध के रुप में श्वेत मिष्ठान का प्रयोग किया जाता है, इसके साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी की भी पूजा करने का विशेष महत्व है।
धनतेरस के दिन कुबेर को प्रसन्न करने का मंत्र-शुभ मुहूर्त में धनतेरस के दिन धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करें- इस मंत्र का जाप करने से भगवन धनवन्तरी बहुत खुश होते हैं, जिससे धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।
धनतेरस के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त-
प्रदोष काल- शास्त्रों के अनुसार, सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट की अवधि को प्रदोषकाल कहते हैं। इस काल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना अति शुभ माना जाता है। इस समय पूजा करने से घर-परिवार में स्थाई लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
चौघाडिया मुहूर्त- शुभ काल मुहूर्त की शुभता से धन, स्वास्थय व आयु में शुभता आती है। सबसे अधिक शुभ अमृ्त काल में पूजा करने की मान्यता है।
धनतेरस की कथा-
एक किवदन्ती के अनुसार एक राज्य में एक राजा था, कई वषरें तक प्रतिक्षा करने के बाद, उसके यहां पुत्र संतान कि प्राप्ति हुई। राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, बालक का विवाह जिस दिन भी होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृ्त्यु हो जायेगी।
ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ। एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी, राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा, दोनों एक दूसरे को देख कर मोहित हो गये, और उन्होने आपस में विवाह कर लिया। ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचें। यमदूत को देख कर राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी। यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा की इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताइये, इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं रहेगा, तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाये जाते है।
धनतेरस पूजा मुहूर्त-
प्रदोष काल 2 घण्टे एवं 24 मिनट का होता हैं। अपने शहर के सूर्यास्त समय अवधि से लेकर अगले 2 घण्टे 24 मिनट कि समय अवधि को प्रदोष काल माना जाता हैं। अलग- अलग शहरों में प्रदोष काल के निर्धारण का आधार सूर्योस्त समय के अनुसार निर्धारीत करना चाहिये। धनतेरस के दिन प्रदोषकाल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना शुभ रहता है ।
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