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    आज है अदभूत दिन, कलयुग में आज त्रेता जैसा संयोग

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    Updated: Tue, 15 Apr 2014 12:26 PM (IST)

    हनुमान कर्म के देवता हैं और बल, बुद्धि, विद्या के प्रतिरूप भी। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, 'बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार।' कहने ...और पढ़ें

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    देहरादून। हनुमान कर्म के देवता हैं और बल, बुद्धि, विद्या के प्रतिरूप भी। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, 'बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार।' कहने का मतलब यदि मनुष्य को यह तीनों चीजें मिल जाएं तो विकार स्वयं ही दूर हो जाते हैं। कहते हैं पवनपुत्र जैसा कोई नहीं। भक्त तो कई हैं, लेकिन जो बात रुद्रावतार हनुमान में है, वो किसी में नहीं। इसलिए उन्हें कलयुग का देवता कहा गया है। आज इन्हीं हनुमान जी की जयंती है और पंचांग गणना के अनुसार इस मौके पर ठीक वैसा ही संयोग बन रहा है, जैसा त्रेतायुग में उनके जन्म के समय रहा होगा।

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    ज्योतिषीय गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म एक करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे हुआ था। आचार्य डॉ.संतोष खंडूड़ी के अनुसार इस बार चित्र नक्षत्र सोमवार शाम 3.13 बजे से आरंभ हो गया और बुधवार सुबह 5.08 बजे तक रहेगा। वह बताते हैं कि हनुमान जयंती पर चंद्रग्रहण भी पड़ रहा है, लेकिन यह देश में कहीं भी नहीं दिखाई देगा। इसलिए ग्रहण का सूतक भी नहीं माना जाएगा।

    च्योतिषाचार्य डॉ.सुशांतराज बताते हैं कि हनुमान जयंती पर शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान है। इस दौरान सुबह 6:11 से दोपहर 1:12 बजे तक राजयोग रहेगा। बजरंगबली की इस योग में पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। च्योतिषीय दृष्टि से देखें तो जिनकी कुंडली में मंगल की महादशा व अंतर्दशा चल रही हो, उनके लिए इस दिन पूजन का विशेष महत्व है।

    अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता-

    हनुमान जी बुद्धि एवं बल के प्रदाता हैं। वह अष्ट सिद्धि व नवनिधि के दाता हैं। उत्तरकांड में श्रीराम हनुमान को प्रज्ञा, धीर, वीर, राजनीति में निपुण आदि विशेषणों से संबोधित किया गया है।

    यह हैं अष्ट सिद्धियां-

    अणिमा- देह को अणु समान रूप देना।

    लंघिमा- शरीर को भारहीन करने का गुण।

    महिमा- शरीर को अत्यंत बड़ा बना लेना।

    गरिमा- देह का भार बढ़ा लेना।

    प्राप्ति- वस्तु की कामना पर वह तत्क्षण प्राप्त हो।

    प्राकाम्य- इच्छित वस्तु दीर्घकाल तक स्थायी रूप में रहे।

    ईशित्व- नेतृत्व की क्षमता प्राप्त करना।

    वशित्व- समस्त इंद्रियों पर नियंत्रण करना।