इतनी बड़ी त्रासदी के बावजूद कैसे बचे केदारनाथ वपशुपतिनाथ मंदिर
चाहे जून 2013 की केदारनाथ त्रासदी हो या फिर 25 अप्रैल को नेपाल में आया शक्तिशाली भूकंप। दोनों दैवीय आपदा ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इन दोनों जगहों पर भयंकर त्रासदी के बाद भी उत्तराखंड में बाबा केदारनाथ का मंदिर और नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को
रुड़की। चाहे जून 2013 की केदारनाथ त्रासदी हो या फिर 25 अप्रैल को नेपाल में आया शक्तिशाली भूकंप। दोनों दैवीय आपदा ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इन दोनों जगहों पर भयंकर त्रासदी के बाद भी उत्तराखंड में बाबा केदारनाथ का मंदिर और नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को क्षति न पहुंचने की बात ने आम लोगों को हैरत में डाल दिया।
वैज्ञानिकों की मानें तो इस पर अभी विस्तृत मंथन तो नहीं किया है, लेकिन कारीगरों के ज्ञान और अनुभव से इन धार्मिक स्थलों के सुरक्षित रहने की बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। सदियों से उत्तराखंड में भूकंप, जल प्रलय सहित अन्य आपदाएं आती रही हैं। अधिकांश धार्मिक स्थलों को भीषण आपदाओं में भी कोई क्षति नहीं पहुंची है। इससे आम लोगों के साथ-साथ वैज्ञानिक भी असमंजस में हैं। जहां आम लोग इसको चमत्कार का नाम देते हैं, वहीं विशेषज्ञ और वैज्ञानिक इसे पुराने कारीगरों के परंपरागत ज्ञान, अनुभव, डिजाइन के साथ इनके निर्माण में प्रयोग होने वाली उच्च गुणवत्ता की सामग्री का इस्तेमाल करना इसकी वजह मानते हैं।
आइआइटी रुड़की भूकंप अभियांत्रिकी विभाग के डॉ. डीके पॉल के अनुसार ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का निर्माण हजारों साल पहले किया है। पुराने जमाने में तकनीक विकसित नहीं थी। ऐसे में कारीगर अपने ज्ञान, अनुभव और उस स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही निर्माण कार्य करते थे। उनके अनुसार अधिकांश ऐतिहासिक मंदिरों का निर्माण पत्थरों से किया है। इनकी दीवार 40-60 सेंटीमीटर मोटी होती है। उनके अनुसार केदारनाथ मंदिर के निर्माण में भी पत्थरों का प्रयोग किया है। वैसे ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि जिससे मंदिर के निर्माण के बारे में पूरी जानकारी हासिल की जा सके। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान के स्ट्रक्चर इंजीनियरिंग ग्रुप के लीडर एवं वैज्ञानिक डॉ. अचल मित्तल के अनुसार केदारनाथ मंदिर स्टोन मैसनरी स्ट्रक्चर का बना है, जबकि पशुपतिनाथ मंदिर पगोड़ा स्ट्रक्चर का बनाया है। जापान और चीन में भी पगोड़ा स्ट्रक्चर के मंदिर हैं। पत्थरों से बने निर्माण की उम्र ज्यादा होती है। उनके अनुसार पुराने समय में कारीगर जियोमैटिक डिजाइन मैथड का इस्तेमाल करते थे। इसके तहत वह आपदाओं का निर्माण पर क्या असर पड़ेगा, इसका पता लगाने के लिए छोटे-छोटे निर्माण करते थे। उस अनुभव के बाद ही बड़े निर्माण किए जाते थे। उनके अनुसार किसी निर्माण को मजबूत बनाने में उच्च गुणवत्ता की सामग्री के अलावा कारीगरों की वर्क मैन शिप भी काफी महत्व रखती है। उनका मानना है कि आपदा और भूकंप के बाद भी धार्मिक स्थलों का सही सलामत रहना उसके डिजाइन, कारीगरों की मेहनत और उच्च गुणवत्ता की सामग्री का इस्तेमाल करना है।
सीबीआरआइ के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अजय चौरसिया के अनुसार वह भी इस बात को लेकर हैरत में हैं कि नेपाल में शक्तिशाली भूकंप के बावजूद पशुपतिनाथ मंदिर के आसपास के निर्माण को तो नुकसान पहुंचा है, लेकिन मंदिर को कोई भी क्षति नहीं हुई है। उनके अनुसार इसे चमत्कार कहना उचित नहीं होगा, बल्कि कारीगरों का परंपरागत ज्ञान, अनुभव ही इसकी वजह है। उनके अनुसार भूकंप और दैवीय आपदाएं सदियों से आ रही हैं। उससे अनुभव लेकर ही कारीगरों ने इनका निर्माण किया होगा। जिस कारण वर्तमान में भी यह यह धार्मिक स्थलों बड़ी आपदाओं और जबरदस्त भूकंपों को भी सहन करने की शक्ति रखते हैं।
क्या ये भगवान की कृपा है-
भगवान भोले का पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था।
पशुपति नाथ मंदिर करीब एक मीटर ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। चौकोर मंदिर का अधिकतर हिस्सा लकड़ी का बना है, जिसके चार दरवाजे हैं। इसके ऊपर सिंह की प्रतिकृति भी स्थापित है। मुख्य मंदिर में भैंस के रूप में भगवान शिव के शरीर का अगला हिस्सा भी है। आज नेपाल भूकंप जिस तरह की प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है, ठीक उसी तरह साल 2013 में उतराखंड भयानक बाढ़ से जूझ रहा था। लेकिन जिस तरह उत्तराखंड में आई बाढ़ बाबा भोलेनाथ के केदारनाथ धाम का बाल भी बांका नहीं कर पाई थी, ठीक उसी तरह नेपाल में आया भयानक भूकंप भी भोलेनाथ के पशुपतिनाथ मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ पाया।
ये हैरान करने वाली बात है कि विध्वंस के देवता बाबा भोलेनाथ के दोनों महत्वपूर्ण धाम इतनी भयानक प्राकृतिक आपदाओं से कैसे बच गए। इन दोनों ही मंदिरों की जड़ें एक ही हैं। ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की किंवदंती के मुताबिक पाण्डवों के स्वर्गप्रयाण के दौरान भगवान शंकर ने पांडवों को भैंसे का रूप धरकर दर्शन दिए थे जो बाद में धरती में समा गए थे लेकिन गदाधारी भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर धरती के बाहर उनकी पूंछ रह गई वह स्थान ज्योतिर्लिंग केदारनाथ कहलाया और जहां धरती के बाहर उनका मुख प्रकट हुआ वह स्थान पशुपतिनाथ कहलाया।
पशुपतिनाथ चतुर्मुखी शिवलिंग चार धामों और चार वेदों का प्रतीक माना जाता है। भगवान पशुपतिनाथ के चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। हर एक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहला मुख दक्षिण की ओर अघोर मुख है, दूसरा पूर्व मुख को तत्पुरुष कहते हैं, तीसरा उत्तर मुख अर्धनारीश्वर रूप है, चौथा पश्चिमी मुखी को सद्योजात कहा जाता है और पांचवां ऊपरी भाग ईशान मुख कहा जाता है। यह निराकार मुख है और यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।
हिंदुओं के आठ सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों और विश्व में स्थापित सभी शिवालयों में भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर को सबसे पवित्र माना गया है। सिर्फ भारत से ही नहीं दुनिया के हर कोने से लोग इस मंदिर को देखने और बाबा पशुपतिनाथ के दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद पशुपतिनाथ के दर्शन करना जरुरी है।
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