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    यहां भगवान को लगाते हैं मक्खन का लेप

    By Neeraj Kumar Azad Edited By:
    Updated: Wed, 13 Jan 2016 06:59 PM (IST)

    सूर्य देव की किरणों से नहलाती धौलाधार पर्वत शृंखला और भोर के आगमन पर सोने सी दमकते कांगड़ा के पहाड़ों को देख ऐसा लगता है कि किसी निपुण जौहरी ने इस घाटी पर सोने की चादर ही मढ़ दी हो। हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी को जहां प्रकृति ने दिल

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    सूर्य देव की किरणों से नहलाती धौलाधार पर्वत शृंखला और भोर के आगमन पर सोने सी दमकते कांगड़ा के पहाड़ों को देख ऐसा लगता है कि किसी निपुण जौहरी ने इस घाटी पर सोने की चादर ही मढ़ दी हो। हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी को जहां प्रकृति ने दिल खोलकर प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है। वहीं इस घाटी के चप्पे-चप्पे में मौजूदा धार्मिक स्थल और वहां की रोचक परंपराएं हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है मकर संक्रांति के उपलक्ष्य पर यहां के दो प्रसिद्ध मंदिरों में मनाया जाने वाला घृत पर्व। इस पर्व में मकर संक्रांति से लेकर एक सप्ताह तक इन मंदिरों में मौजूद पिंडी व शिवङ्क्षलग के ऊपर कई क्विंटल मक्खन का लेप चढ़ाया जाता है। इनमें से एक मंदिर है कांगड़ा का ब्रजेश्वरी देवी तो दूसरा बैजनाथ का ऐतिहासिक शिव मंदिर।
    कांगड़ा का ब्रजेश्वरी देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। यहां तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में मां की तीन पिंडियों की पूजा होती है। यहां हर वर्ष घृत पर्व मनाया जाता है। इस दौरान एक सप्ताह तक मंदिर में मां की ङ्क्षपडियों को मक्खन रूपी घृत से पूरी तरह से ढक दिया जाता है। इस पर्व को मनाने के पीछे कहा जाता है कि जब मां ब्रजेश्वरी देवी ने जालंधर दैत्य के साथ युद्ध किया था, तो उन्हें भी कुछ चोटें आई थी। उस दौरान मां को देवी-देवताओं ने घृत का लेप लगाया था, उसके बाद से यह परंपरा यहां हर साल मनाई जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि सर्दी के मौसम में इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इस बार यहां करीब आठ क्विंटल मक्खन से यह मंडप तैयार किया जाएगा।
    जिला कांगड़ा के ही बैजनाथ शिव मंदिर में भी इस परंपरा को निभाया जाता है। यहां भी एक सप्ताह तक शिवङ्क्षलग को पूरी तरह से कई क्विंटल मक्खन के लेप से ढक दिया जाता है। कथा है कि मंडी के किसी राजा ने इस शिवङ्क्षलग को मंडी ले जाने का दुस्साहस किया था। उस दौरान शिवङ्क्षलग की जलहरी से मधु-मक्खियों ने राजा व उसकी सेना पर हमला कर दिया था। उसके बाद राजा को अपने किए पर पछतावा हुआ तथा उसने इसके प्रायश्चित के लिए यहां मक्खन चढ़ाकर इस परंपरा को शुरू किया। एक सप्ताह के बाद इस मक्खन को हटाकर लोगों को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। कहा जाता है कि इस प्रसाद को लगाने पर चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
    प्रस्तुति : मुनीष दीक्षित

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