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    अक्षयवट वेदी पर श्राद्ध की पूर्णता होती

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    Updated: Fri, 04 Oct 2013 11:26 AM (IST)

    आश्रि्वन मास की अमावश्या तिथि त्रिपाक्षिक गयाश्रद्ध का 16वां दिवस है। इस तिथि को अंतिम पिंडदान अक्षयवट वेदी पर होता है। यहां पिंडदान से पितर ब्रहमलोक को प्राप्त करते हैं। अक्षयवट वेदी पर स्थित वट वृक्ष युग-युगान्तर में भी नष्ट नहीं होता। कलियुग के अंत में महाप्रलय होने पर संपूर्ण पृथ्वी जल में डूब जाती है किन्तु वटवृक्ष पर भगवान विष्णु बालक रूप में

    आश्रि्वन मास की अमावश्या तिथि त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का 16वां दिवस है। इस तिथि को अंतिम पिंडदान अक्षयवट वेदी पर होता है। यहां पिंडदान से पितर ब्रहमलोक को प्राप्त करते हैं।

    अक्षयवट वेदी पर स्थित वट वृक्ष युग-युगान्तर में भी नष्ट नहीं होता। कलियुग के अंत में महाप्रलय होने पर संपूर्ण पृथ्वी जल में डूब जाती है किन्तु वटवृक्ष पर भगवान विष्णु बालक रूप में योग निद्रा में शयन करते हैं। मोक्षधाम गया में एकमात्र वटवृक्ष ही साक्षी हुआ था। जब सीता ने दशरथ के आग्रह पर बालू का पिंडदान करके उन्हें मुक्त किया था। उसी समय वट वृक्ष को अक्षय होने का आशीर्वाद मिला था। वृन्दावन, प्रयाग एवं उज्जैन (कुमुद्वतीपुरी) में भी अक्षयवट वृक्ष है।

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    पिंडदान के बाद अक्षयवट के दर्शन नमस्कार का भी विधान है। समीप में स्थित छोटे मंदिर के बटेश्वर शंकर भी दर्शनीय वेदी है। ये दर्शन मात्र से पितरों का उद्धार करते हैं। उतर दिशा में बड़े मंदिर में प्रपितामह शंकर अंतिम दर्शनीय वेदी है। इनके दर्शन से 100 कुल का उद्धार होता है। गया श्राद्ध की पूर्णता गयाधाम के पंडाजी (ब्राहमण कल्पित ब्राहमण) के द्वारा होती है। इन्हें ब्रहमा ने अपने मानस से उत्पन्न किया था। दान एवं दक्षिणा से संतुष्ट होकर पंडाजी श्रद्धकर्ता की पीठ पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं कि श्राद्ध पूर्ण हुआ।

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