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    सुरक्षित सेक्स सुखद प्रसव

    By Edited By:
    Updated: Fri, 06 Jun 2014 02:12 PM (IST)

    गर्भावस्था में सेक्स संबंध बनाना सुरक्षित है या नहीं, किन स्थितियों में इंटरकोर्स से नुकसान हो सकता है, क्या-क्या बदलाव आते हैं प्रेग्नेंसी के दौरान..ऐसे कई सवाल हर दंपती के मन में आते हैं। सेक्स संबंधों में सावधानी बरती जाए तो प्रेग्नेंसी और प्रसव को बनाया जा सकता है सुरक्षित।

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    मां बनने की कल्पना स्त्री के लिए इतनी रोमांचित करने वाली होती है कि बाकी सब उसके लिए गौण हो जाता है। बच्चे के बारे में सोचना उसे सुखद अनुभूतियों से भर देता है। बच्चे के लिए तमाम तैयारियां और खरीदारी उसके भय और तनाव को कम करते हैं। मगर इन सबके बीच सेक्स लाइफ पीछे छूटने लगती है। हॉर्मोनल परिवर्तनों के कारण भी लिबिडो में बदलाव आता है। प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स इच्छा घट सकती है। इसके अलावा दंपती कई चिंताओं से भी घिरे होते हैं। खासतौर पर पहली प्रेग्नेंसी के दौरान मन में कई सवाल उठते हैं। गर्भावस्था में होने वाले कई शारीरिक-मानसिक व हॉर्मोनल बदलावों के कारण सेक्स क्रिया बाधित हो सकती है। वजन बढता है, शरीर का आकार बढता है, भावनात्मक उथल-पुथल चिंता और दबाव बढाती है। सोने-जागने, चलने-फिरने, उठने-बैठने तक की क्रियाएं बदल जाती हैं, इससे दिनचर्या पर असर पडता है। इन सबका प्रत्यक्ष असर सेक्स लाइफ पर पडता है। लेकिन यह भी जीवन का एक दौर है, जिसका सामना किया जाना चाहिए।

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    बदलाव गर्भावस्था में

    1. अलग-अलग स्त्रियों में गर्भावस्था के लक्षण अलग हो सकते हैं। कुछ को लो लिबिडो की शिकायत होती है तो कुछ की सेक्सुअल डिजायर्स बढती हैं। आमतौर पर पहले ट्राइमेस्टर यानी पहले तीन महीने में लिबिडो या सेक्स की इच्छा कम होती है। दूसरे ट्राइमेस्टर (4-6 महीने) के दौरान सेक्स डिजायर्स बढ सकती हैं। एक्सप‌र्ट्स कहते हैं, यह प्रेग्नेंसी के सामान्य लक्षण हैं।

    2. दूसरे ट्राइमेस्टर के दौरान ब्रेस्ट से निकलने वाला फ्लूइड कई बार कपल्स को डराता है। इस एकाएक पैदा हुई स्थिति से पार्टनर की सेक्स इच्छा कम हो सकती है।

    3. सेक्स थेरेपिस्ट मानते हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ हॉर्मोस ऐसे होते हैं, जो स्त्री को ऑर्गेज्म तक जल्दी पहुंचा देते हैं। जेनिटल्स में रक्त-संचार तेज होता है। इसके अलावा ऑक्सीटोसिन (लव हॉर्मोन) के स्राव के कारण भी स्त्री को ऑर्गेज्म की अनुभूति हो सकती है। सामान्य तौर पर दूसरे ट्राइमेस्टर के दौरान सेक्स संबंध अच्छे रहते हैं।

    4. जैसे-जैसे भ्रूण विकसित होता है, पेट का आकार बढता है और टिपिकल सेक्स पॉजिशंस कंफर्टेबल नहीं हो सकतीं। ऐसे में कामसूत्र में दी गई पॉजिशंस ट्राई करें।

    प्रसव के बाद

    1. वर्ष 2012 में हुए एक अध्ययन में कहा गया कि प्रसव के तीन महीने बाद स्त्रियां नॉर्मल सेक्स लाइफ शुरू कर सकती हैं। इस अध्ययन में शामिल 85 फीसद स्त्रियों को रुटीन में लौटने में तीन महीने लगे, हालांकि अधिकतर के लिए सेक्स लाइफ सुखद नहीं रही। इसके पीछे कई मेडिकल कारण थे। सेक्सप‌र्ट्स मानते हैं कि सामान्य स्थिति में दो महीने बाद सेक्स संबंध बनाए जा सकते हैं।

    2. प्रसव के कुछ समय बाद तक एस्ट्रोजन की कमी के कारण स्त्रियों को वजाइनल ड्राइनेस की प्रॉब्लम हो सकती है। यह समस्या ब्रेस्टफीड कराने वाली स्त्रियों को ज्यादा होती है। इसके लिए अच्छे ल्युब्रिकेंट जैसे के-वाई जेली की मदद ली जा सकती है। डॉक्टर की सलाह से कुछ दिन एस्ट्रोजन क्रीम भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन नर्सिग मदर्स को इससे नुकसान हो सकता है।

    3. प्रेग्नेंसी व प्रसव के बाद यूरिन कंट्रोल कम हो सकता है। नॉर्मल डिलिवरी के बाद कई स्त्रियां वजाइना में हुए परिवर्तन को लेकर भी चिंतित होती हैं। इसके लिए डॉक्टर या फिजिकल ट्रेनर की सहायता से पेल्विक एक्सरसाइज की जा सकती है।

    4. प्रसव के दौरान लगाया जाने वाला वजाइनल कट कई बार सेक्स क्रिया को बाधित कर सकता है। कई हफ्तों तक यह एरिया स्ट्रेचिंग या दबाव के प्रति संवेदनशील रहता है। पूरी हीलिंग तक वजाइनल पेनिट्रेशन से बचना जरूरी है। इस पीरियड में सेक्स के वैकल्पिक तरीके आजमाएं।

    5. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन में कहा गया है कि प्रसव के कुछ समय बाद सेक्स समस्याएं दूर होने लगती हैं। धीरे-धीरे दंपती का रुटीन सामान्य हो जाता है।

    इंदिरा राठौर