पैतृक संपत्ति पर हक है लड़की का
प्रॉपर्टी के अधिकार, दत्तक $कानून की शर्तें, घरेलू हिंसा की शब्दावली जैसे कई $कानूनी पहलू आम व्यक्ति को समझ में नहीं आते। इस बार ऐसे ही कई सवालों के जवाब दे रही हैं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ एडवोकेट कमलेश जैन।
प्रॉपर्टी के अधिकार, दत्तक $कानून की शर्तें, घरेलू हिंसा की शब्दावली जैसे कई $कानूनी पहलू आम व्यक्ति को समझ में नहीं आते। इस बार ऐसे ही कई सवालों के जवाब दे रही हैं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ एडवोकेट कमलेश जैन।
मैंने माता-पिता की मज्ऱ्ाी के ख़्िाला$फ प्रेम विवाह किया है। मेरे पिता के पास का$फी प्रॉपर्टी है। तीन भाई हैं। अब वे कहते हैं कि मुझे संपत्ति से बेदखल कर दिया जाएगा। पिता के पास आधी से ज्य़ादा प्रॉपर्टी दादा जी की है। कृपया बताएं कि क्या मुझे दादा की संपत्ति में अधिकार मिल सकता है?
एस. सी., मथुरा
आपके पिता अपनी अर्जित संपति भले ही आपको न दें, मगर पैतृक संपत्ति पर चारों भाई-बहनों का बराबर अधिकार है। आप निचली अदालत में जाकर अपने हिस्से पर दावा कर सकती हैं ।
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 25 के तहत मेरी पत्नी को एक लाख रुपये प्रतिमाह की डिक्री प्राप्त हो गई है। इस $फैसले के ख़्िाला$फ अपील कितने दिनों में दाखिल करनी चाहिए। क्या अदालत की ओर से कॉस्ट लगाने के ख़्िाला$फ अपील हो सकती है?
डी.एम., दिल्ली
आप हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 28 के अंतर्गत डिक्री पास होने के 90 दिन के भीतर अपील फाइल कर सकते हैं। सि$र्फ कॉस्ट या $कीमत के सवाल पर अपील नहीं दायर की जा सकती। (धारा-28 (3)
$कानूनन गोद लेने की प्रक्रिया क्या है?
एम.वी., फरीदाबाद
व्यक्ति के पास गोद लेने का अधिकार होना चाहिए। वह नि:संतान हो सकता है, यदि पहले से संतान पुत्र है तो लड़के को गोद नहीं लिया जा सकता। पहले से लड़की है तो लड़की को गोद नहीं लिया जा सकता।
जो व्यक्ति गोद दे रहा है, उसे गोद देने का अधिकार हो। यानी वह उसका माता-पिता या अभिभावक होना चाहिए।
जिसे गोद दिया जा रहा है, उसे पहले किसी ने गोद न लिया हो। उसकी उम्र गोद लेने वाले से 21 वर्ष कम हो। वह नाबालिग हो।
गोद लेने-देने की प्रक्रिया सबके सामने हो। विधि विधान से इसका पालन हो। रिश्तेदारों, पड़ोसियों, मित्रों के सामने गोद लेने और देने वाले के बीच लिखा-पढ़ी के बाद बच्चे को एक गोद से दूसरी गोद में देना चाहिए।
अनाथ बच्चे या खोए बच्चों को अदालत की आज्ञा से ही गोद लिया-दिया जा सकता है।
आजकल दीवानी मुकदमे परिवार न्यायालय में क्यों भेजे जा रहे हैं?
के.पी., लखनऊ
परिवार से संबंधित विवाद परिवार न्यायालय जाते हैं और ऐसे न्यायालय उसी तरह न्याय करते हैं जैसे कि दीवानी अदालतें। उनके अधिकार भी वैसे ही हैं। तला$क, मासिक भत्ता, बच्चों की कस्टडी, स्त्री-धन आदि का निबटारा अब परिवार न्यायालय कर रहे हैं। मगर घरेलू हिंसा $कानून के अंतर्गत मुकदमा मैजिस्ट्रेट के यहां फाइल होता है।
क्या भरण-पोषण के अधिकार संबंधी $कानून में ऐसा कोई नियम है कि इसके तहत पत्नी को निश्चित रकम देनी होगी?
बी.जे., रोहतक
जी नहीं, सबकी आर्थिक स्थिति अलग-अलग होती है, उनकी ज़्ारूरतें भिन्न होती हैं। अदालतें स्व-विवेक से दोनों पक्षों की सुविधा, स्थिति, ज़्ारूरत और हैसियत के मुताबिक मासिक भत्ते की रकम तय करती हंै। इसके लिए कोई निश्चित फॉम्र्युला नहीं है। दिल्ली के एक मामले नीलम मलहोत्रा बनाम राजिंदर मलहोत्रा, एआइआर 1994 में ऐसा ही $फैसला दिया गया था।
क्या दत्तक पुत्र को भरण-पोषण $कानून के तहत मासिक भत्ता अधिकार है?
जे.एल., जालंधर
जी हां, बालिग होने तक उसे दत्तक पिता से मासिक भत्ता मिलना चाहिए। गोकुल बिहारी नायक बनाम पंटिश कुमार नायक, 1995 सीआरएलजे 661(उड़ीसा) के मामले में ऐसा ही $फैसला दिया गया था।
घरेलू हिंसा मामलों में अकसर कोर्ट में पूछा जाता है, घरेलू रिश्ते कब तक रहे? कृपया बताएं किइसका अर्थ क्या हैै?
एम. के., चंडीगढ़
इसका अर्थ है- स्थायी रूप से एक छत के नीचे साथ रहना। इसमें सामाजिकता निभाने के लिए कभी-कभी पति-पत्नी का साथ रहना, सामाजिक आयोजनों या रिश्तेदारों के यहां साथ जाना शामिल नहीं है। यानी घरेलू रिश्ते तभी तक समझे जाएंगे, जब तक कि वे साथ-साथ एक ही घर में रह रहे हैं।
कमलेश जैन
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