न्याय का दूसरा पहलू
स्त्रियों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को देखते हुए ेकानूनों में कई संशोधन किए गए हैं। दहेज और दुष्कर्म संबंधी कानूनों को सख्त बनाया गया है। मगर तसवीर का ए ...और पढ़ें

स्त्रियों पर शारीरिक या यौन प्रताडना जैसी घटनाएं समाज में लगातार बढ रही हैं। हिंसा के जघन्यतम तरीके अपनाए जा रहे हैं। आए दिन गैंग रेप, एसिड अटैक, छेडखानी, मारपीट, मानसिक व शारीरिक हिंसा के मामले सामने आते रहते हैं। निर्भया कांड के बाद से कानूनों में कई संशोधन किए गए हैं। वर्ष 2013 में रेप कानून को काफी सख्त बनाया गया। इस सख्ती का पीडितों को कितना लाभ हुआ, अभी इसका आकलन मुश्किल है। तसवीर का एक पहलू यह है कि स्त्रियों के खिलाफ घटनाएं हो रही हैं और कई बार पीडितों को लंबे समय तक न्याय नहीं मिल पा रहा है, मगर तसवीर का दूसरा पहलू भी है। कई बार स्त्रियों के पक्ष में बनने वाले कानूनों का दुरुपयोग भी होता है। अदालतों के सामने ऐसे कई झूठे मामले आए हैं। कोर्ट ने फैसलों में इनके प्रति चिंता भी जाहिर की है। झूठा केस दर्ज करने वालों के खिलाफ मुकदमे चले, कुछ में सजा भी मिली है।
झूठा निकला दहेज का केस
इस मामले में विवाहित होने के बावजूद झूठ बोल कर स्त्री ने पीडित से शादी की। शादी के दो महीने बाद उसने दहेज-प्रताडना का केस दर्ज कराया और लडके को जेल भिजवा दिया। जेल से निकलने के बाद लडके ने छानबीन की तो पता चला कि लडकी पहले ही विवाहित थी। अदालत ने साक्ष्यों व तथ्यों के आधार पर पाया कि लडका निर्दोष है और उसके खिलाफ मुकदमा खारिज किया गया। इसके बाद झूठा मुकदमा दर्ज करने के एवज में लडकी पर केस बनाया गया।
एक की सजा औरों को क्यों
इस मामले में परिवार के खिलाफ दहेज का मामला दर्ज कराया गया था। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि एक व्यक्ति पत्नी से दुर्व्यवहार करता है, उसे मारता-पीटता है, घर से निकाल देता है तो यह जरूरी नहीं है कि घर के सभी सदस्य जैसे सास-ससुर, ननद, देवर भी दोषी हैं। पति के कृत्य की सजा घर के बोकी सदस्यों को देना गलत है। वे तटस्थ हों, तो भी उन्हें अपराधी नहीं माना जा सकता। अनुमान पर घर के सदस्यों को सजा नहीं दी जा सकती। इस मामले में घर की बहू ने घर के सभी सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
विठ्ठल तुकाराम मोरे बनाम महाराष्ट्र राज्य एआइआर 2002 सुप्रीम कोर्ट 2715
वृद्ध दंपती रिहा हुए
इस मामले में वयोवृद्ध दंपती के खिलाफ दहेज-हत्या का मामला दर्ज कराया गया। उन्हें जेल भी हुई, मगर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बहू की मौत के समय सास-ससुर की आयु 80 वर्ष से अधिक थी। वे बहू को इस हद तक प्रताडित नहीं कर सकते कि वह मर जाए। गवाहों ने भी नहीं कहा कि सास-ससुर बहू पर अत्याचार करते थे या यह अत्याचार दहेज से जुडा था। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भी सास-ससुर ने बहू के साथ अन्याय नहीं किया था। अत: उन्हें 304, 498 ए आईपीसी के अंतर्गत रिहा किया जाता है। मुंगेश्वर प्रसाद चौरसिया बनाम बिहार राज्य एआइआर आर 2002 सु. को 2531
झूठे मामलों में सजा
भारतीय दंड संहिता की धारा 211 के अनुसार, अगर किसी को चोट पहुंचाने के मेकसद से झूठा आपराधिक मुकदमा किया जाए, जबकि मुकदमा करने वाला अच्छी तरह जानता हो कि उस व्यक्ति ने अपराध नहीं किया है और न अपराध हुआ है तो ऐसे में झूठा केस दर्ज कराने वाले को दो वर्ष की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यदि मामला ऐसा हो कि उसमें मृत्युदंड या सात वर्ष तक की सजा हो सकती हो तो झूठा मुकदमा दर्ज करने वाले को भी सात वर्ष तक की सजा दी जा सकती है।
कमलेश जैन

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।