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दौर अभिनेत्रियों का है: प्रियंका चोपड़ा

अभिनेत्री प्रियंका ने अपनी अदाकारी का लोहा फिर से मनवा लिया है। उनकी हालिया फिल्म मैरी कॉम ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता का परचम लहराया है। अब वह संजय लीला भंसाली की बाजीराव मस्तानी जैसी महत्वाकांक्षी और मेगा बजट प्रोजेक्ट की हिस्सा हैं। दो साल पहले भी ब़र्फी में प्रियंका ने अपने परफॉर्मेस से सबका दिल व वाहवाही लूटी थी। उनके चढ़ते हुए करियर पर सखी की एक नजर..।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 03:29 PM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 03:29 PM (IST)
दौर अभिनेत्रियों का है: प्रियंका चोपड़ा

प्रियंका चोपडा इस इंडस्ट्री में लंबे समय से टिकी हुई हैं। कई हिट तो कुछ फ्लॉप फिल्मों के साथ वे आगे बढती जा रही हैं। जब उनकी फिल्म जंजीर फ्लॉप गई थी तो सबने यह मान लिया था कि अब उनके दिन लद चुके हैं। उसका त्वरित प्रभाव भी देखा गया था, जब संजय लीला भंसाली की गोलियों की रासलीला-राम लीला में उन्हें महज डांस नंबर करने का मौका मिला था। उस साल दीपिका पादुकोण की कई फिल्में हिट हुई और प्रियंका उनसे कई पायदान नीचे जा रही थी, लेकिन फाइटिंग स्पिरिट से प्रियंका चोपडा ने वापसी की। पहले गुंडे और अब मैरी कॉम ने उनकी पोजिशन मजबूत की। जानकार उन्हें आला दर्जे की प्रोफेशनल परफॉर्मर मानते हैं।

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धैर्य से बटोरी सफलता

वह कहती हैं, मौजूदा पोजिशन बनाने में मेरे पेशेंस और लगातार काम करने की कुव्वत ने अहम रोल प्ले किया है। मैंने हमेशा कडी मेहनत की और आगे भी करती रहूंगी। मेरी हालत उस बतख के समान है, जो पानी के ऊपर स्थिर और शांत नजर आता है, लेकिन पानी के भीतर उसके पांव लगातार चल रहे होते हैं, वह निरंतर अपनी मंजिल के पास पहुंचने का प्रयास करता रहता है। धीरज धरने के अलावा मैंने प्रयोगों पर भी खूब बल दिया है। हिंदी फिल्म जगत में आए मुझे दो साल भी नहीं हुए थे कि मैंने ऐतराज जैसी फिल्म की, जिसमें मेरा रोल नेगेटिव था। सात खून माफ भी टिपिकल हीरोइन केंद्रित फिल्म नहीं थी, मगर मैंने वह की। फैशन में तो कोई हीरो ही नहीं था और आज की तरह तब फीमेल केंद्रित फिल्मों का दौर नहीं था। फिर भी उपरोक्त सभी फिल्में सफल रहीं। आगे भी यही उम्मीद करती हूं कि अपने दम पर निर्माताओं और दर्शकों दोनों की अपेक्षाओं पर खरी उतरती रहूं।

दौर हमारा है

दस साल पहले ऐसे पोस्टर की कल्पना नहीं की जा सकती थी, जिस पर सिर्फ अभिनेत्री हो और वह भी अपने किरदार के पोज में। यह हिंदी फिल्मों का सहज विकास और अभिनेत्रियों की उपलब्धि है। दर्शक भी अच्छी कहानियां सुनने और देखने के लिए तैयार हैं। अभी ज्यादा एक्सपोजर हो चुका है। रायटर और फिल्ममेकर भी नए विषयों पर फिल्में बना रहे हैं। यह दौर हम अभिनेत्रियों और फिल्मों के लिए बहुत अच्छा है।

प्राथमिकता हैं फिल्में

बचपन में उनका सपना एरोनॉटिकल इंजीनियर बनने का था, ताकि हवा से बातें कर सकें और आकाश में रहें। आज वह सफलता के आकाश में कुलांचे मार रही हैं। लडकियां मल्टीटास्कर होती हैं। प्रियंका उसकी मुफीद उदाहरण हैं। वे अभिनय, गायन, एंडोर्समेंट व सोशल एक्टिविटी के लिए पर्याप्त समय निकालती हैं। यूनिसेफ के अभियानों में शामिल उन्होंने गर्ल राइजिंग सीरीज में भारत की प्रतिनिधि फिल्म को आवाज दी है। इसमें विश्व प्रसिद्ध 9 अभिनेत्रियों ने अलग-अलग फिल्मों को आवाज देकर लडकियों के संघर्ष व जीत को मुखर किया है। प्रियंका ने कोलकाता की रुखसाना की जिंदगी बयां की है। जल्दी ही वह इस सीरीज में भारत की 9 अभिनेत्रियों को 9 फिल्मों के लिए आमंत्रित करेंगी। वे कहती हैं, प्राथमिकता अभी तक तो फिल्में हैं। कल की कौन जाने?

अमित कर्ण


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