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हिंदी कहानी का 113 साल का सफर

[राजेन्द्र राव]। अगर यह मान लिया जाए कि माधव राव सप्रे की 'टोकरी भर मि˜ी' [1

By Edited By: Published: Mon, 03 Jun 2013 04:20 PM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2013 04:20 PM (IST)

[राजेन्द्र राव]। अगर यह मान लिया जाए कि माधव राव सप्रे की 'टोकरी भर मि˜ी' [1900] हिंदी में प्रकाशित पहली कहानी थी तो कुल 113 साल का सफर बनता है इस लोकप्रिय विधा का जिसे 'हिंदी की क्लासिक कहानियां' ग्रंथावली के छह खंडों में निरूपित किया है प्रख्यात आलोचक और शोधकर्ता डा. पुष्पपाल सिंह ने। प्रथम खंड 'धरोहर' में हिंदी कहानी के शैशव काल से लेकर 1920 तक प्रकाशित माधव राव सप्रे, रामचंद्र शुक्ल, बंग महिला, जयशंकर प्रसाद, चंद्रधर शर्मा गुलेरी और प्रेमचंद जैसे इतिहास निर्माताओं की 25 कहानियां हैं। दूसरे भाग 'प्रेमचंद-प्रसाद समय' में 1921 से 1950 तक के कालखंड की 24 चुनी हुई और चर्चित रचनाएं हैं जिनमें अपने पूर्णोदय काल के प्रेमचंद और प्रसाद के साथ जैनेंद्र, यशपाल, अश्क, निराला, अज्ञेय, अमृतलाल नागर, रांगेय राघव और उग्र जैसे आधुनिक कहानी के शिल्पी उपस्थित हैं। तीसरे खंड में 1951 से 1965 तक के 'नयी कहानी युग' को कमलेश्वर, निर्मल वर्मा, अमरकांत, राजेन्द्र यादव, कृष्णा सोबती, रेणु, धर्मवीर भारती और शैलेश मटियानी आदि की प्रतिनिधि कथाओं के माध्यम से चित्रित किया गया है।

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1965 से बीसवीं सदी के अवसान तक के भाग को 'समकालीन कहानी समय' शीर्षक से प्रस्तुत किया गया है जिसमें लगभग सभी समकालीन महत्वपूर्ण कथाकार शामिल हैं-ज्ञानरंजन और गिरिराज किशोर से लेकर उदय प्रकाश, संजीव और अखिलेश तक। कमलेश्वर, महीप सिंह हैं तो रमेशचंद्र शाह भी। एक खंड 'महिला कथाकार' (1965 से अद्यतन) पूरी तरह महिलाओं को समर्पित है जिसमें सुधा अरोड़ा-ममता कालिया-चित्रा मुद्गल से लेकर नीलाक्षी सिंह और प्रत्यक्षा तक 20 प्रमुख लेखिकाओं की रचनात्मकता की मनोहर झांकी है।

अंतिम छठे खंड 'नवागत पीढ़ी' में 19 ऐसे युवा कथाकारों की कहानियां हैं जिनका पदार्पण 21वीं शती में हुआ है और आजकल उत्सुकता से पढ़े जा रहे हैं। इनमें अजय नावरिया, कुणाल सिंह, मो. आरिफ, प्रियदर्शन, रणेंद्र, प्रभात रंजन और शशिभूषण द्विवेदी जैसे नाम संकलित हैं। एक संग्रहणीय और ऐतिहासिक महत्व का पठनीय ग्रंथ।

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