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    पांच मिनट में हो जाएगी प्रदूषित पानी की जांच, IIT रोपड़ के छात्र हरउपजीत ने बनाया विशेष चिप

    By Kamlesh BhattEdited By:
    Updated: Sat, 07 Nov 2020 08:39 PM (IST)

    आइआइटी रोपड़ (IIT Ropar) के पीएचडी के छात्र ने पानी में जहरीले तत्व जांच करने वाली पोर्टेबल डिवाइस व साइनाइड की डाई तैयार की है। इससे पांच मिनट में ही पता चल जाएगा कि पानी में कितना प्रदूषण है।

    विशेष चिप पांच मिनट में बता देगी पानी कितना प्रदूषित। सांकेतिक फोटो

    रूपनगर [अजय अग्निहोत्री]। आइआइटी रोपड़ के पीएचडी (सेंटर फार बायोमेडिकल इंजीनियरिंग) के छात्र हरउपजीत सिंह ने ऐसा पोर्टेबल यंत्र तैयार किया है जो पानी में जहरीले तत्वों की मात्रा का मौके पर पता लगा लेगा। इस यंत्र के जरिए नदियों में होने वाले खतरनाक प्रदूषण को जांचने के लिए लंबा इंतजार करने की जरूरत नहीं होगी। महज एक सेंसर बेस्ड चिप को पानी में डालने के बाद पांच मिनट में वह बता देगी कि पानी कितना प्रदूषित है और इसका प्रभाव कितने समय तक रहेगा।

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    यह पोर्टेबल यंत्र केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के काम को और आसान बना देगा। इससे पहले प्रदूषित पानी का सैंपल लेने के बाद उसे लैब भेजा जाता था, जिसकी रिपोर्ट आने में दो महीने तक लग जाते थे। अब इस नई तकनीक से विभाग को तुरंत एक्शन लेने में आसानी होगी। फिलहाल यह यंत्र केवल साइनाइड की मात्रा को चेक करने में सक्षम है, लेकिन पोर्टेबल यंत्र से अलग-अलग डाई (हानिकारक तत्व के संपर्क में आकर रंग बदलने वाली कागज बेस्ड सेंसर चिप) को मापा जा सकता है। यह यंत्र साइनाइड समेत पानी में मौजूद सभी जहरीले तत्वों को माइक्रो मोलर के रूप में दर्शाता है।

    साइनाइड व अन्य तत्वों से मरतीं हैं सैकड़ों मछलियां

    यंत्र बनाने वाले हरउपजीत मुक्तसर के गिद्दड़बाहा के रहने वाले हैं। उन्होंने यह आविष्कार प्रो. नवनीत कौर व डा. नरिंदर सिंह के नेतृत्व में तैयार किया। डा. गगनदीप सिंह ने उन्हेंं गाइड किया। हरउपजीत ने बताया कि कारखानों से छोड़े जाने वाले दूषित पानी में सायनाइड व अन्य जहरीले तत्व होने के कारण आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है जिससे मछलियां मरती हैं। रूपनगर जिला हिमाचल प्रदेश से सटा है और हिमाचल से स्वां नदी, सरसा नदी समेत अन्य बरसाती नाले निकलते हैं। बरसात के दिनों में हिमाचल के कारखानों से प्रदूषित पानी बरसाती नालों व नदियों में बहा देते हैं।

    ऐसे काम करती है चिप, खर्च महज तीन से चार हजार

    पूरे प्रोजेक्ट पर तीन से चार हजार रुपये खर्च आया। कागज बेस्ड सेंसर चिप में इंडीकेटर डाई का इस्तेमाल किया गया है। जब साइनाइड के संपर्क में चिप आती है तो उसका रंग लाल होना शुरू हो जाता है। चिप बनाने में प्लेट इस्तेमाल की गई है जिसमें ब्रेड बोर्ड (जिसमें पीछे तारें होती हैं) स्थापित किया गया है। आगे रंग को पढऩे वाला यंत्र का हिस्सा रंग की गहराई को नापकर उसकी मात्रा को बताता है। डिस्प्ले के लिए एलइडी स्क्रीन भी लगाई गई, जो सेंसर रंग को पढ़कर उसकी लाल, हरी और ब्लू (आरजीबी) वैल्यू बताती है। इसी वैल्यू के आधार पर यह बताया जाता है कि इसमें सायनाइड प्रदूषण की कितनी मात्रा है।

    पन्नू बोले- अच्छा प्रयास

    पंजाब के पूर्व कृषि सचिव रिटायर्ड आइएएस काहन सिंह पन्नू का कहना है कि यह अच्छा प्रयास है। अन्य जहरीले तत्व जो मानवता के लिए खतरनाक हैं, उनको भी जांचने के लिए उपकरण तैयार करना समय की जरूरत है। आन द स्पाट अगर जहरीले तत्वों की मौजूदगी का पता चल पाएगा तो तुरंत एक्शन लेना आसान होगा।

    करुणेश गर्ग बोले- इसका बहुत फायदा होगा

    पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड केे सदस्य करुणेश गर्ग का कहना है कि पहले इंडस्ट्री में सोडियम सायनाइड इस्तेमाल होता था, लेकिन 1995 में बंद कर दिया गया लेकिन डाइंग इंडस्ट्री में चोरी छिपे अभी भी इस्तेमाल हो रहा है। इसका आगे बहुत फायदा हो सकता है।