अब गाय बनी 'सेरोगेट मदर', साहीवाल नस्ल का बढ़ाया वंश
अब गायें भी सरोगेट मदर बनेंगी। इससे बेहतर नस्ल की गायें मिल सकेंगी। यह सफल प्रयोग किया है लुधियाना के गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल सांइस यूनिवर्सिटी ने।
जेएनएन, लुधियाना। अभी तक इंसानों में ही सेरोगसी के बारे में सुना जाता रहा है, लेकिन अब गायें भी 'सेरोगेट मद'र बनकर वंश वृद्धि करेंगी। गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल सांइस यूनिवर्सिटी ने ऐसा ही एक सफल परीक्षण किया है। इससे अच्छे नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाई जा सकेगी।
यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक (एंब्रियो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी) के माध्यम से अपने फार्म में मौजूद दूध व प्रजनन की दृष्टि से बेकार हो चुकी तीन होलेस्टन फ्रीजन (एचएफ) नस्ल की गायों को 'सेरोगेट मदर' बनाकर उनके गर्भाशय में श्रेष्ठ साहीवाल नस्ल के भ्रूण को स्थापित कर दो बछड़े व एक बछड़ी को पैदा करने में सफलता हासिल की है।
बेकार हो चुकी एचएफ गायों ने साहीवाल नस्ल के बछड़े व बछिया को जन्म दिया
यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि देश में यह पहली बार है कि जब देसी नस्ल की गाय के भ्रूण को विदेशी नस्ल की गाय ने अपनी गर्भाशय में अपनाया और स्वस्थ बछड़े व बछड़ी को जन्म दिया। यूनिवर्सिटी के वेटरनरी साइंस कॉलेज के डीन डॉ. प्रकाश सिंह बराड़ व पशुधन फार्म निर्देशक डॉ. बलजिंदर कुमार बांसल के अनुसार भ्रूण प्रत्यारोपण पशु प्रजनन की एक अत्याधुनिक तकनीक है। जहां तक उन्हें मालूम है देश में इससे पहले कभी ऐसा प्रत्यारोपण नहीं हुआ है।
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उन्होंने बताया कि अभी तक दुधारु पशुओं में भ्रूण प्रत्यारोपण एक जैसी नस्ल के बीच ही हुए हैं। उदाहरण के तौर पर अच्छी नस्ल की एचफ गाय के भ्रूण को बेकार एचफ गाय या देसी गाय के भू्रण को बेकार हो चुकी देसी गाय के गर्भाशय ही प्रत्योपित कर बछड़े व बछिया को पैदा किए जाने की जानकारी है।
उन्होंने कहा कि वेटरनरी यूनिवर्सिटी ने नया परीक्षण किया है। यूनिवर्सिटी ने श्रेष्ठ नस्ल के साहीवाल सांड के सीमन को नॉन सर्जिकल तरीके से पहले साहीवाल गाय के गर्भ में रखा। फिर साहीवाल गाय से एक बार में एक से अधिक भ्रूण (एंब्रियो) लेने के लिए उसे हारमोंस के टीके लगाए। इससे गाय के गर्भ में तैयार हुए कई तंदरूस्त व अच्छे एंब्रियो को आठ एचएफ गायों के गर्भ में नॉन सर्जिकल तरीके से प्रत्यारोपित किया गया।
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उन्होंने बताया कि यह प्रत्यरोपण चार गायों पर सफल रहा, जबकि चार पर असफल हो गया। सफल गर्भधारण करने वाली एचएफ गायों में से एक गाय ने जनवरी में बछिया को जन्म दिया, जबकि दो गायों ने मार्च में बछड़ों को जन्म दिया। बछड़े व बछियों के अंदर गडवासू की साहीवाल के ही गुण होंगे। डॉ. बराड़ के अनुसार बछड़ों के जन्म के बाद एचएफ गायों ने दूध देना भी शुरू कर दिया।
साहीवाल नस्ल के गायों की बढ़ेगी संख्या
यूनिवर्सिटी के निर्देशक प्रसार शिक्षा डॉ. हरीश वर्मा के अनुसार इस तकनीक की मदद से एचएफ गायों के जरिए देसी नस्ल की साहीवाल गायों की संख्या के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। पंजाब सहित देश के अन्य हिस्सों में बड़ी संख्या में एचएफ गायों को दूध न देने की वजह से सड़कों व गौशालाओं में छोड़ दिया जाता है। इससे सड़क दुर्घटनाएं बढ़ी है।
उन्होंने कहा कि यदि इन गायों को पशु पालक सड़कों पर छोड़ने की जगह उनसे एंब्रियो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी की मदद से देसी नस्ल के बछड़े एवं बछिया प्राप्त कर सकेंगे। इससे पशुपालकों के साथ साथ साथ डेयरी संचालकों को काफी फायदा होगा। डॉ.हरीश ने कहा कि प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर यदि इस तकनीक के बारे में जानना चाहते है,तो वह वेटरनरी यूनिवर्सिटी से संपर्क कर सकते हैं।
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