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पंजाब के इस गांव में बिना सरकारी मदद 100 एकड़ जमीन में हो रही सिंचाई, ग्रामीणों ने खुद मजदूरी कर तैयार किया प्लांट

पंजाब के रणसींह कलां के युवा सरपंच प्रीतिंदर का माडल लोकप्रिय हो रहा है। लोगों ने एनआरआइज की मदद से 80 लाख रुपये जुटाए और फिर खुद मजदूरी कर प्लांट तैयार किया। ग्रामीणों ने बारिश के पानी से बनाई झील बनाई जो सिंचाई में काम आ रही है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 25 Mar 2021 01:44 PM (IST)Updated: Thu, 25 Mar 2021 04:54 PM (IST)
पंजाब के इस गांव में बिना सरकारी मदद 100 एकड़ जमीन में हो रही सिंचाई, ग्रामीणों ने खुद मजदूरी कर तैयार किया प्लांट
रणसींह कलां पंचायत द्वारा तैयार किया गया तालाब। जागरण

मोगा [सत्येन ओझा]। गांव के युवा सरपंच और उनके 50-60 साथियों ने बिना किसी सरकारी मदद के सिंचाई का ऐसा माडल तैयार किया है, जिसकी हर तरफ चर्चा हो रही है। 29 वर्ष के प्रीतिंदर सिंह मिंटू 2013 में जब पहली बार रणसींह कलां पंचायत के सरपंच बने, तो उनका गांव भूमिगत जल के गिरते स्तर की समस्या से जूझ रहा था। उन्होंने इसका अध्ययन किया और इस संकट को दूर करने के लिए प्रयास शुरू किया। गांव के गंदे पानी की निकासी के लिए बनाए गए छप्पड़ (तालाब) को उन्होंने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में बदलकर इससे सिंचाई शुरू की। साथ ही बारिश के पानी को इकट्ठा कर छप्पड़ के एक हिस्से को झील में बदल दिया।

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तीन साल से मिंटू गांव की 100 एकड़ जमीन की सिंचाई इसी पानी से कर रहे हैं। इसका सीधा फायदा यह हुआ कि गांव में ट्यूबवेल पर निर्भरता कम हो गई। बिजली भी बची और भूमिगत जलस्तर में भी सुधार हुआ। इस पूरे सिस्टम को संभालने के लिए उन्होंने युवाओं की टीम बनाई है। इस ट्रीटमेंट प्लांट को बनाने में 80 लाख रुपये का खर्च आया। यह सारी राशि युवाओं ने अपने स्तर पर जमा की। काफी सामग्री लोगों ने सहयोग के रूप में दी। इसमें अमेरिका, कनाडा व इंग्लैंड आदि में बसे यहां के लोगों व बड़े किसानों ने खुलकर मदद की। गांव के युवाओं ने खुद मजदूरी कर प्लांट तैयार किया। झील के चारों ओर के हिस्से का सौंदर्यीकरण कर उसे पिकनिक स्पाट का रूप दिया है। झील में सारा साल पानी रहता है।

रणसींह कलां पंचायत के सरपंच प्रीतिंदर सिंह। जागरण

क्या है प्रीतिंदर का प्रोजेक्ट

प्रीतिंदर ने सबसे पहले गांव के छप्पड़ को दो हिस्सों में बांटा। एक हिस्से में तीन चैंबर बनाए गए, जबकि दूसरे हिस्से को झील का रूप दिया। बारिश का व्यर्थ बहने वाला पानी पाइपों के माध्यम से इस झील में पहुंचाया जाता है। वहीं, गांव में सीवरेज लाइन बिछाकर हर घर का गंदा पानी चैंबर तक पहुंचाया जाता है। पानी से बदबू न आए, इसके लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) लुधियाना से खास प्रकार के बैक्टीरिया इसमें छोड़े गए, जो दुर्गंध को खत्म कर देते हैं।

पहले चैंबर से पानी ट्रीट होकर दूसरे चैंबर जाता है। दूसरे चैंबर में शिफ्ट होने पर पहले चैंबर के कीचड़ को सुखाकर खाद बनाई जाती है। दूसरे चैंबर में मछली पालन भी किया जा रहा है। मछलियां भी पानी को ट्रीट करने में मदद करती हैं। यहां पानी को ट्रीट कर तीसरे चैंबर में भेजा जाता है, जहां कछुए छोड़े गए हैं, जो पानी को साफ करने में मददगार हैं। कोई भी जीव मरकर सडऩे लगता है तो कछुए उसे खाकर खत्म कर देते हैं। इस पानी से गांव की 100 एकड़ जमीन में सिंचाई की जाती है।

10 से 12 फीट बढ़ा भूमिगत जलस्तर

सरपंच प्रीतिंदर सिंह ने बताया कि जो किसान गांव में हर आठ-दस साल बाद पानी नीचे जाने पर बार-बार बोरिंग कराते थे, उनमें से सुखजिंदर सिंह और कर्मबीर सिंह अनुसार अब पानी 10 से 12 फीट ऊपर आ गया है। उन्होंने हाल ही में बोरिंग करवाई तो इसे गहरा करने की जरूरत नहीं पड़ी।

कृषि विकास अधिकारी डॉ. जसवंत सिंह के मुताबिक धान की फसल के लिए प्रति एकड़ करीब 10 हजार क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग होता है। किसान धान के सीजन में औसत 15 बार सिंचाई करते हैं। इस लिहाज से ट्रीटमेंट प्लांट की वजह से 1.5 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी का दोहन कम हुआ। तीन साल में 4.5 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी तो सिर्फ धान के सीजन में ही बचा लिया गया।


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