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अपनी जड़ों को नहीं भूला पाकिस्तान का शाही परिवार

By Edited By: Published: Wed, 12 Sep 2012 01:13 AM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2012 01:14 AM (IST)
अपनी जड़ों को नहीं भूला पाकिस्तान का शाही परिवार

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

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इंसान दुनिया के किसी भी कोने में चला जाए, अपनी जन्मभूमि को नहीं भूल सकता। हमें आज भी अपने गांव की मिट्टी की वह सोंधी खुशबू याद है, जिसमें हम पले-बढ़े हैं, जहां हमने बचपन में किलकारियां भरीं। ये उद्गार हैं पाकिस्तानी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री मियां मंजूर अहमद वट्टू के बड़े भाई नसीब अहमद वट्टू के, जिन्होंने पाकिस्तान से दैनिक जागरण के साथ फोन पर अपनी भावनाएं सांझा कीं। वह मुख्यमंत्री रहे अपने भाई मंजूर अहमद के भारत दौरे के तहत पैतृक गांव मौजम आने के बारे में अपने करीबी एक हिंदू परिवार के सदस्यों से बात कर रहे थे।

नसीब अहमद ने बताया कि बंटवारे के वक्त दोनों भाई 10 साल से भी छोटे थे। लेकिन इतना याद है कि गांव छोड़ते वक्त उनके अब्बू जंगीर खान वट्टू व सारा परिवार बेहद दुखी था। होता भी क्यों नहीं, गांव मौजम उनके पड़दादा मौजम खान के नाम पर ही तो बसाया गया था। उनकी यहां सैकड़ों बीघा जमीन थी। खैर, खुदा को यही मंजूर था। उन्होंने नेकनीयत से राजनीति के जरिये लोगों की सेवा की और अल्लाह ने उन्हें एक अच्छा मुकाम बख्शा। अब तो ढल रही जीवन की शाम में उन्हें जब भी हसरत होती है, अपने जन्म स्थान की खैर खबर लेने आ जाते हैं। मंजूर अहमद के 1993 में मुख्यमंत्री बनने से पहले 1990 में दोनों भाई फाजिल्का आए थे और अपने पैतृक गांव मौजम की मिट्टी को चूमा था।

उन्होंने अपने परिवार के करीबी रहे बुजुर्गो से भी मुलाकात की थी। उन्हीं में से एक परिवार के मुखिया बिहारी लाल चलाना हैं, जिनका परिवार गांव में करियाने का काम करता था। बंटवारे के वक्त बिहारी लाल चलाना भी 6-7 साल के थे, लेकिन उन्हें उनके वालिदान के नाम याद हैं। इस बार 12 सितंबर को भी उनके भाई मंजूर बिहारी लाल चलाना से मिलेंगे।

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22 साल बाद भी याद है पनीर पकौड़ों का स्वाद

फाजिल्का: फाजिल्का के डा. राजकुमार चलाना के पिता बिहारी लाल चलाना, जिन्हें खुद वट्टू बंधुओं ने 1990 में पहचाना था, आज भी वट्टू परिवार से संपर्क में हैं। चलाना ने दैनिक जागरण को बताया कि 1990 में दोनों वट्टू भाई उनके घर भी आए थे और काफी समय उनके परिवार के साथ बिताया था। चलाना ने बताया कि वट्टू बंधुओं के फाजिल्का आगमन मौके उन्होंने पाकपटनी हलवाई के पनीर के पकौड़े उन्हें खिलाए थे। आज 22 साल बाद भी जब कभी बात होती है, तो वट्टू बंधु पकौड़ों के स्वाद का जिक्र करना नहीं भूलते।

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