रिटायर्ड प्रोफेसर ने बनाया सौर ऊर्जा से चलने वाला कूलर
आइआइटी रुडकी के रिटायर्ड प्रोफेसर ने सौर ऊर्जा से चलने वाला कूलर तैयार किया है। इस पर आठ से नौ हजार रुपये खर्च आया है।
फाजिल्का [अमृत सचदेवा]। रुड़की आइआइटी से रिटायर्ड प्रोफेसर एवं उत्तराखंड सरकार द्वारा ऊर्जा पुरुष के खिताब से नवाजे गए फाजिल्का के डॉ. भूपिंदर सिंह ने अब गर्मियों में लोगों को ठंडक पहुंचाने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाला बिना बैटरी का कूलर तैयार किया है। बाजार में बैटरी की मदद से चलने वाले सौर ऊर्जा के महंगे कूलर्स के विपरीत यह कूलर सस्ता होगा। यही नहीं, कूलर में लगा सबमर्सिबल पंप सौर ऊर्जा के जरिये हवा को ठंडा करने का काम भी करेगा।
डॉ. भूपिंदर सिंह कहते हैं कि आजकल सौर ऊर्जा का ज्यादातर इस्तेमाल इनवर्टर के साथ लगी बैटरियों में बिजली संचित करके किया जा रहा है, लेकिन जिन परिवारों के पास इनवर्टर की बड़ी बैटरी नहीं है, वे इस 50 हजार से एक लाख रुपये की लागत वाले प्रोजेक्ट को नहीं अपना पा रहे। ऐसे में उन्होंने डायरेक्ट करंट (डीसी) विधि से सोलर प्लेट से डीसी पंखे का कूलर तैयार किया है। लगभग 60 वोल्ट का पंखा और 20 वोल्ट का सबमर्सिबल पंप लगाकर 80 वोल्ट वाली सोलर प्लेट से दिन में प्रति घंटा एक यूनिट बिजली पैदा की जा सकती है।
गर्मियों में सुबह साढ़े छह बजे से लेकर शाम साढ़े छह बजे तक सूरज की गर्मी का पूरा ताव रहता है। इस प्रकार पूरे दिन में औसतन छह से सात यूनिट बिजली आसानी से पैदा होती है, जिससे लगभग 3500 रुपये में बनने वाला डीसी कूलर बिना ग्रिड से आने वाले अल्टरनेट करंट से चलाया जा सकता है। अबोहर के रेडिएंट कॉलेज में डॉ. भूपिंदर ने इस कूलर का सफलतार्पूवक प्रयोग कर विद्यार्थियों को दिखाया है।
फाजिल्का में लोगों ने घरों में लगाया
फाजिल्का में आधा दर्जन घरों में भी करीब पांच हजार रुपये में आने वाली 100 वॉट की सोलर प्लेट और साढ़े तीन हजार रुपये के कूलर वाले प्रोजेक्ट को चला रहे हैं।
बिजली की बचत से वापस आ जाएगा पैसा
इंजीनियरिंग छात्र लविश पुजानी ने बताया कि उन्होंने डॉ. भूपिंदर के मॉडल को अपनाकर घर में यह प्रोजेक्ट लगाया है। कूलर दिनभर ठंडी हवा देता है। करीब तीन साल में कूलर का पैसा बिजली की बचत से पूरा हो जाता है। एक सोलर प्लेट कम से कम 20 साल काम आती है।
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