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    दक्षिण-मध्य एशियाई देश मिलकर चुनौतियों से लड़ें : प्रणब

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Thu, 01 Oct 2015 10:57 AM (IST)

    राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दक्षिण और मध्य एशियाई देशों के सामने सुरक्षा और विकास को सबसे बड़ी चुनौती बताया है। उन्होंने इन चुनौतियों का मिलकर सामना नहीं करने पर चिंता जाहिर की। उन्‍हाेंने इन मुद्दों पर भारत के रुख को भी स्पष्ट किया।

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    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दक्षिण और मध्य एशियाई देशों के सामने सुरक्षा और विकास को सबसे बड़ी चुनौती बताया है। उन्होंने इन चुनौतियों का मिलकर सामना नहीं करने पर चिंता जाहिर की। उन्हाेंने इन मुद्दों पर भारत के रुख को भी स्पष्ट किया। राष्ट्रपति ने कहा कि सभी दक्षिण दशियाई देश इन मुद्दों पर चुनौतियों का मिलकर सामना करें।

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    राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारत की विदेश नीति को सराहा

    उन्हाेंने कहा कि दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों को भारत की विदेश नीति में में सबसे अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। दक्षिण एशियाई क्षेत्र सबसे कम एकजुट और विकासशील हैं। उन्हें मिलकर चुनौतियों का सामना करने की जरूरत है।

    राष्ट्रपति का स्वागत करते राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी व हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल।

    राष्ट्रपति बुधवार को चंडीगढ़ में सेंटर फार रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट (क्रिड) में आयोजित राष्ट्रीय कांफ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। यह कांफ्रेस दो दिन चलेगा। राष्ट्रपति ने 'दक्षिण एवं मध्य एशिया में शांति तथा सुरक्षा' पर आयोजित इस कांफ्रेंस का उद्घाटन किया। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह बृहस्पतिवार को व्याख्यान देंगे।

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    राष्ट्रपति ने कहा कि पहले विदेश मंत्रालय में स्टाफ की कमी के कारण नीतियां बनाने में चुनौती का सामना करना पड़ता था। अब विदेश मंत्रालय ने अपने नीति शाखा को मजबूत करने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं। इसके लिए योग्य लोगों को आकर्षित किया जा रहा है।

    प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विदेश नीति के लिए अब मंत्रालय विशेषज्ञों और रिसर्च इंस्टीटयूट्स की मदद भी ली जा रही है। उन्होंने कहा कि देश की विदेशी नीति का प्रमुख काम शांति और सद्भावना को बनाए रखना है। इसके साथ-साथ विकास को भी लेकर चलना है।

    उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में पूरा विश्व एक साथ जुड़ा हुआ है। ऐसे में विदेश नीति एक ऐसा औजार बनी हुई है, जो सभी देशों को एक साथ बांधे रखने में मदद करती है। आर्थिक प्रगति और विकास के लिए विदेश नीति का यह प्रयास आज दक्षिण और मध्य एशियाई देशों के लिए बहुत प्रासंगिक है।

    प्रणब दा ने की मोदी के विदेश दौरों की तारीफ

    प्रणब मुखर्जी ने केंद्र की मोदी सरकार की दिल खोलकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार अपने गठन के पहले दिन से ही दक्षिण एशियाई देशों के साथ गठजोड़ और एकता बनाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशियाई देशों की भौगोलिक स्थिति भी इन देशों के सामने बड़ी चुनौती है। दक्षिण एशियाई देशों के साथ कई गठजोड़ कर एकजुटता के प्रयास किए जा रहे हैैं।

    उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का जुलाई माह में पांच मध्य एशियाई देशों का दौरा भारत की सेंट्रल एशिया पालिसी के महत्व को दर्शाता है। मध्यम एशिया के देशों के पास एजुकेशन, कल्चरल, टूरिज्म, हेल्थ, बैैंकिंग, कृषि, टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग एवं साइंस एंड टेक्नालाजी के क्षेत्र में आपस में सहयोग करने के अवसर हैं।

    इरान, पाकिस्तान और भारत गैस पाइपलाइन पर काम करें

    राष्ट्रपति ने इरान, पाकिस्तान और भारत को गैस पाइपलाइन बिछाने के क्षेत्र में रिव्यू करने का भी सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि छाबार पोर्ट के जरिए इन देशों को आपस में जोड़ा जा सकता है। इस पर तीनों देश मिलकर काम करें।

    देशों को एक दूसरे की चिंता करनी होगी : सोलंकी

    हरियाणा-पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि 21वीं शताब्दी विकास की शताब्दी है। विकास पर गौर नहीं होगा तो हम टिक नहीं पाएंगे। विश्व के एक देश में जो होता है, दूसरे देश पर उसका असर पड़ता है। यदि एक देश दुखी है तो उसके सुख की चिंता सभी को करनी होगी। केवल साउथ और मध्य एशिया का नहीं बल्कि पूरे विश्व का ध्यान देने की जरूरत है।

    सोलंकी ने 'दक्षिण और मध्य एशिया में पीस और सिक्योरिटी' पर पुस्तक का विमोचन कराने के बाद राष्ट्रपति को उसकी प्रति भेंट की। क्रिड के एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन रशपाल मल्होत्रा ने कांफ्रेंस के महत्व पर प्रकाश डाला। इससे पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल व प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने राष्ट्रपति की अगवानी की।