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    पंजाब से बाहर रेत-बजरी ले जाते वाहनों पर लगेगा भारी टैक्स

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Sun, 23 Aug 2015 01:15 PM (IST)

    पंजाब सरकार राज्य से बाहर रेत व बजरी ले जाने वाले वाहनों पर भारी टैक्स लगाने की तैयारी में है। इसके साथ एक कमेटी रोपड़, पठानकोट और होशियारपुर जिलों के कंडी क्षेत्र से पंजाब लैंड प्रीजर्वेशन एक्ट (पीएलपीए) से बाहर के क्षेत्रों में से बजरी की खुदाई की संभावना तलाशेगी।

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब सरकार राज्य से बाहर रेत व बजरी ले जाने वाले वाहनों पर भारी टैक्स लगाने की तैयारी में है। इसके साथ एक कमेटी रोपड़, पठानकोट और होशियारपुर जिलों के कंडी क्षेत्र से पंजाब लैंड प्रीजर्वेशन एक्ट (पीएलपीए) से बाहर के क्षेत्रों में से बजरी की खुदाई की संभावना तलाशेगी। यह कदम राज्य के लोगों को रेत व बजरी वाजिब कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए उठाया गया है।

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    उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल की अधिकारियों के साथ् हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में ये निर्णणय किए। सुखबीर ने मुख्य सचिव को संबंधित जिलों में अधिकारियों की कमेटियां बनाने निर्देश दिए जो उन नए संभावित क्षेत्रों की तलाश करेंगी जहां रेत-बजरी उपलब्ध हो सके।

    बादल ने सिंचाई और उद्योग विभाग को ड्रेजरों की मदद से सतलुज और ब्यास के किनारों में रेत की खुदाई की संभावना की तलाश करने का भ्ाी निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि इससे राज्य में रेत की भारी मांग को पूरा किया जा सकेगा। उन्होंने माइनिंग विभाग को सिंचाई विभाग को नदियों और नहरों की ड्रेजिंग के दौरान नए डिस्पोजल परमिट जारी करने के भी निर्देश दिए।

    उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का मकसद आम लोगों की सुविधा के लिए रेत की कीमत को 600-650 प्रति 100 क्यूबिक फीट रखना है। राज्य में रेत की रोजाना मांग करीब 58000 टन है।

    उप मुख्यमंत्री ने कहा कि वह लोगों को माइनिंग का सामान उपलब्ध कराने की प्रक्रिया पर निजी तौर पर नजर रखेंगे और कुछ सप्ताह बाद स्थिति की समीक्षा करेंगे। उन्होंने उद्योग व माइनिंग विभाग के अधिकारियों को 20 सितंबर तक 80 खानों की पुन: बोली कराने और वाजिब दरों पर रेत-बजरी लोगों को मुहैया कराने के लिए कम कीमतें तय करने के निर्देश भी दिए। बैठक के दौरान यह भीतय किया गया कि ये खानें प्रत्येक वर्ष 90 लाख टन रेत मुहैया कराएंगी।

    माइनिंग विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सूबे में पहले ही 70 खानें चालू हैं और 150 से अधिक खानों की पर्यावरण संबंधी मंजूरी के केस केंद्र सरकार को भेज दिए गए हैं।