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मुक्ति का अंतिम विकल्प है श्रीमद्भागवत श्रवण

श्री शिरडी साई संध्या मंदिर स्थित द्वारकामाई सभागार से साप्ताहिक प्रवचन करते हुए श्री साईचरणानुरागी भाई डा.कुमार दिलीप सिंह ने कहा कि प्रेतयोनि में भटकती जिस आत्मा की मुक्ति श्राद्ध-कर्मो से नहीं होती, उसकी मुक्ति हेतु अंतिम विकल्प है श्रीमद भागवत श्रवण।

By Edited By: Published: Sat, 13 Oct 2012 03:55 PM (IST)Updated: Sat, 13 Oct 2012 03:55 PM (IST)

गया। श्री शिरडी साई संध्या मंदिर स्थित द्वारकामाई सभागार से साप्ताहिक प्रवचन करते हुए श्री साईचरणानुरागी भाई डा.कुमार दिलीप सिंह ने कहा कि प्रेतयोनि में भटकती जिस आत्मा की मुक्ति श्राद्ध-कर्मो से नहीं होती, उसकी मुक्ति हेतु अंतिम विकल्प है श्रीमद भागवत श्रवण। श्रीमद भागवत पुराण मुक्ति शास्त्र है। इससे श्रद्धापूर्वक समझना चाहिए। श्रीमद भागवत में कथा आती है कि आत्मदेव ब्राहमण के गोकर्ण एवं धुंधकारी नामक दो पुत्र थे। एक ज्ञानी पंडित तो दूसरा महादुष्ट। ऐसा दुष्ट कि कभी दूसरों के घरों में आग लगा देता तो कभी बच्चों को गोद खिलाते किसी कुएं में डाल आता। उसके कुकर्मो से क्षुब्ध पिता के घर छोड़ते ही धन के लिए मारे-पीटे जाने से दुखी माता ने आत्महत्या कर ली। अंततोगत्वा वेश्याओं की दु:संगति में अत्यंत कष्टकारक मृत्यु को प्राप्त कर धुंधकारी भयंकर प्रेत बना। भ्रता गोकर्ण के घर लौटने पर प्रेतरूपी धुंधकारी ने अपनी मुक्ति हेतु कुछ करने की याचना की। गोकर्ण आश्चर्यचकित हुआ, क्योंकि धुंधकारी के निमित्त वह अनेक तीर्थो तथा गयाजी में भी श्राद्ध-पिंडदान कर चुका था। अत: भगवान सूर्यदेव को तप के बल रोक उसने मुक्ति का उपाय पूछा। सूर्यदेव ने स्पष्ट किया कि श्रीमद भागवतान्मुक्ति सप्ताहं वाचनं कुरू अर्थात ऐसी स्थिति श्रीमद भागवत का सप्ताह परायण मुक्तिदायी है। इस प्रकार गोकर्ण द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत के सप्ताह पारायण के संपन्न होते ही धुंधकारी जैसे भयंकर प्रेत को भी मुक्ति प्राप्त हुई।

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