Move to Jagran APP

नहीं रहा शायरी का शहजादा

<p>ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है.. जैसी पंक्तियां लिखने वाला शायरी का शहजादा आखिर इस दयार से रुखसत हो गया। सोमवार इस प्रख्यात शायर व ज्ञानपीठ विजेता प्रो. कुंवर अखलाक मुहम्मद खान उर्फ शहरयार ने अलीगढ स्थित अपने घर में अंतिम सांस लीं। 76 वर्षीय इस नगीने के जुदा होने से साहित्य बिरादरी में शोक की लहर है। </p>

By Edited By: Published: Mon, 13 Feb 2012 11:07 PM (IST)Updated: Mon, 13 Feb 2012 11:07 PM (IST)

अलीगढ, जागरण संवाददाता। ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है.. जैसी पंक्तियां लिखने वाला शायरी का शहजादा आखिर इस दयार से रुखसत हो गया। सोमवार इस प्रख्यात शायर व ज्ञानपीठ विजेता प्रो. कुंवर अखलाक मुहम्मद खान उर्फ शहरयार ने अलीगढ स्थित अपने घर में अंतिम सांस लीं। 76 वर्षीय इस नगीने के जुदा होने से साहित्य बिरादरी में शोक की लहर है।

loksabha election banner

बताते है कि कुछ महीनों से शहरयार की तबीयत नासाज चल रही थी। डॉक्टरों ने उनके फेफडे में कैंसर बताया था। एक हफ्ते से उन्हें बोलने में भी दिक्कत थी। जेएन मेडिकल कॉलेज में उनका इलाज भी चल रहा था। रात्रि साढे आठ बजे वह दुनिया से विदा हो गए। यारों के इस यार के दुनिया छोडने की खबर फैलते ही अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी समेत पूरी साहित्य बिरादरी और सैकडों आम लोग उनके घर पहुंच गए। उन्हें मंगलवार को सुपुर्दे खाक किया जाएगा।

बरेली के आंवला में पैदा हुए शहरयार के वालिद पुलिस इंस्पेक्टर थे। उनकी आरंभिक पढाई हरदोई में हुई। वर्ष 1948 में अलीगढ में पढने आए और अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सिटी हाई स्कूल में दाखिला ले लिया। अंग्रेजी माध्यम से पढे शहरयार का यहीं पहली बार उर्दू से साबका हुआ। यहीं से यूनिवर्सिटी पहुंचे। वर्ष 1961 में एएमयू से उर्दू में एमए किया। यहीं तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया। वर्ष 1966 में शहरयार एएमयू के उर्दू विभाग के प्रवक्ता बने। यहां ज्वाइन करने के पहले ही उनका पहला काव्य संग्रह इस्म-ए-आजम प्रकाशित हो चुका था। वे अच्छे हॉकी खिलाडी और एथलीट भी थे। उनके वालिद की इच्छा थी कि बेटा भी पुलिस अफसर बने। पिता ने दरोगा बनने का फार्म भी लाकर दिया लेकिन शहरयार ने फार्म ही नहीं भरा। झूठ बोल दिया कि फार्म भर दिया है।

शहरयार ने कई फिल्मों के लिए गाने लिखे। उमरावजान के गाने तो आज भी हर किसी की जुबान पर हैं। दर्जनों नामचीन पुरस्कार पा चुके शहरयार को वर्ष 2008 में साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था। पुरस्कार सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के हाथों नवाजा गया। वे उर्दू के चौथे शायर थे, जिन्हें ज्ञानपीठ से नवाजा गया। उन्होंने वर्ष 1978 में गमन, वर्ष 1981 उमरावजान और वर्ष 1986 अंजुमन के लिए गाने लिखे।

एक परिचय

16 जून, 1936-13 फरवरी, 2012

वास्तविक नाम : डॉ. अखलाक मुहम्मद खान

उपनाम : शहरयार

जन्म स्थान : आंवला, बरेली, उत्तर प्रदेश

कुछ प्रमुख कृतियां : इस्म-ए-आजम (1965), ख्वाब का दर बंद है (1987), शाम होने वाली है (2005), मिलता रहूंगा ख्वाब में।

विविध : उमराव जान, गमन और अंजुमन जैसी फिल्मों के गीतकार । साहित्य अकादमी पुरस्कार (1987), ज्ञानपीठ पुरस्कार (2008)। अलीगढ विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफेसर और उर्दू विभाग के अध्यक्ष रहे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.