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खुश हूं कि औरत हूं: प्रिया दत्त

सांसद प्रिया दत्त को लगता है कि महिलाओं के प्रति अपराध रोकने और समानता का भाव जगाने की शुरुआत हमें घर से ही करनी होगी।

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 23 Apr 2016 02:54 PM (IST)Updated: Sat, 23 Apr 2016 03:03 PM (IST)
खुश हूं कि औरत हूं: प्रिया दत्त

वह एक राजनेता हैं, समाजसेवी हैं, बच्चों को बेहतर संस्कार देने वाली मां हैं। फिल्मी बैकग्राउंड होने के बावजूद उन्होंने राजनीति व समाजसेवा का फील्ड चुना। महिला मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार व्यक्त करने वाली पूर्व सांसद प्रिया दत्त को लगता है कि महिलाओं के प्रति अपराध रोकने और समानता का भाव जगाने की शुरुआत हमें घर से ही करनी होगी। महिला होने पर गर्व महसूस करती प्रिया कहती हैं कि मैं खुश हूं कि एक औरत हूं...

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आपकी नजर में महिला सशक्तिकरण क्या है?

महिलाओं की इच्छा, उनकी महत्वाकांक्षाओं का आदर करना ही मेरे लिए महिला सशक्तिकरण है। हर औरत का विजन या सपना अलग है। हर औरत सीईओ नहीं बनना चाहती। हर औरत माउंट एवरेस्ट पर नहीं चढऩा चाहती। हर एक के सपने अलग हैं और उन सपनों का आदर बहुत जरूरी है। परिस्थितियां ऐसी हों कि महिलाओं को अपने सपने पूरे करने के अवसर मिलें।

सशक्तिकरण का मतलब शिक्षा है। जब तक एक लड़की को शिक्षा नहीं मिलेगी, जब तक उसे एक्सपोजर नहीं मिलेगा तब तक उसका सपना भी बड़ा नहीं हो सकेगा। आज मैं एक ट्राइबल विलेज में काम कर रही हूं, वहां देख रही हूं कि लड़कियों में पढ़ाई का जोश है, लेकिन सुविधाएं नहीं होने के कारण आठवीं कक्षा के बाद स्कूल से ड्रॉपआउट हो जाती हैं। उनका सपना छोटी उम्र में ही खत्म हो जाता है और उनकी शादी हो जाती

है। ऐसे में समाज और सरकार के साथ- साथ हमारी यह जिम्मेदारी है कि उन्हें अवसर मिले, एक्सपोजर मिले। वे अपने सामने ऐसे उदाहरण देखें कि कह सकें, 'अगर वह कर सकती है

तो मैं भी कर सकती हूं...।'

इस सशक्तिकरण में किस प्रकार से योगदान दे रही हैं?

हमने एक विलेज स्कूल एडॉप्ट किया है। हमारा मकसद यह है कि हम वहां होलिस्टिक डेवलपमेंट करें। हम बच्चों को शिक्षित करेंगे तो वे घर में भी बदलाव लाएंगे। वहां हमने कंप्यूटर ट्रेनिंग कोर्स शुरू किया है। बच्चों को कंप्यूटर दिए हैं। 200 बच्चों को हम मुंबई लाए। वे पहली बार अपने गांव से निकले। उन्होंने अपने गांव के

आगे कुछ देखा ही नहीं था। उनकी जिंदगी वहीं तक सीमित थी। हमारे देश में ऐसे हजारों गांव हैं जिनमें हम बच्चों को अच्छी जिंदगी और बेहतर सपने दे सकते हैं। जब हम किसी फोरम में आते हैं तो केवल उन्हीं महिलाओं को संबोधित करते हैं जो पहले से ही सशक्त हैं, लेकिन समाज को यह बताना भी जरूरी है कि हमारी जिम्मेदारी इससे भी बहुत ज्यादा है।

जेंडर इक्विलिटी को हम कैसे मजबूत कर सकते हैं?

अगर हमें जेंडर इक्विलिटी को मजबूत करना है तो इसकी शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी। हमें देखना होगा कि हम किस तरह से अपने बच्चों को बड़ा कर रहे हैं और उन्हें क्या सिखा रहे हैं? मेरे दो बेटे हैं। महत्वपूर्ण यह है कि मैं अपने बेटों को क्या सीख देती हूं ताकि वे बड़े होकर महिलाओं का आदर कर सकें। शुरुआत हमें ही करनी होगी। लिंगभेद को समाप्त करने का रास्ता घर से ही शुरू होता है। समानता इसी प्रकार से ही लाई जा सकती है। मैं समझती हूं कि समाज की सोच में बदलाव आ रहा है। एटीट्यूड बदल रहे हैं लोगों के।

महिलाओं के प्रति हिंसा को लेकर क्या समाज में कुछ बदलाव देख रही हैं?

महिलाओं के प्रति हिंसा पहले भी हो रही थी और शायद ज्यादा हो रही थी, लेकिन रिपोर्ट नहीं होती थी।

अब महिलाओं में इतना हौसला आ गया है कि वे पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट करवाती हैं। वैसे लड़कियों का ज्यादा शोषण तो घरों में ही होता है और परिवार उसे छुपा देता है। इसीलिए मैं कहती हूं कि हर चीज की शुरुआत हमें अपने परिवार से ही करनी होगी। एक मां अपने बच्चों को क्या सीख देती है? एक पिता अपनी पत्नी से कैसा व्यवहार करता है? यह सभी बातें बच्चा घर से सीखता है।

आप जब पॉलिटिक्स में आईं तो पहले पहल कैसा महसूस हुआ?

जब मैं पॉलिटिक्स में आई तो मुझे डर लगा था, क्योंकि मैं इस फील्ड के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी। पहले डर तो लगता है, लेकिन जब आप फील्ड में आते हैं तो सीखना शुरू कर देते हैं और जब जान जाते हैं कि हमें काम आ गया है तो एक्सेल करना शुरू कर देते हैं। तब आपको किसी सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। यही तो शक्ति है एक महिला की।

राजनीति में महिलाएं कितनी सफल हैं?

राजनीति में महिलाएं काफी सफल हैं और टॉप पर हैं। फिर भी मैं मानती हूं कि अभी भी महिलाओं में राजनीति को लेकर एक झिझक है, लेकिन इस माहौल को बदलना चाहिए। लोगों का रुख बदलना चाहिए। माइंडसेट बदलना चाहिए। हमें अभी और आगे जाना है। आगे जाने की कोई लिमिट नहीं है। हम कितना आगे जाएंगे या जा सकते हैं, लाइन नहीं खींच सकते।

सफलता के सफर में परिवार का सहयोग कितना रहा?

मैं यह कहना चाहूंगी कि मैं अपने पति के सपोर्ट से ही यहां तक पहुंची हूं। अगर उनका सपोर्ट नहीं होता तो यहां तक पहुंच पाना नामुमकिन था। हमारी रिलेशनशिप में मैं एक क्वालिटी देखती हूं कि हमने कभी भी एकदूसरे के साथ यह नहीं सोचा कि मेरा रोल यह है, उनका काम यह है। हमने एक-दूसरे के लिए एडजस्ट किया।

उनके काम के लिए मैंने एडजस्ट किया, मेरे काम के लिए उन्होंने। बच्चों की देखभाल वे भी करते हैं और मैं भी करती हूं। इसे मैं एक क्वालिटी कहती हूं। शायद मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे इस तरह का सपोर्ट मिला। मैंने हमेशा अपने बच्चों और परिवार को प्राथमिकता दी है, क्योंकि बच्चों को इस दुनिया में मैं लाई हूं। उन्होंने यह जिंदगी नहीं मांगी थी। ऐसे में मेरी जिम्मेदारी हो जाती है कि मैं उन्हें सब चीज बेस्ट दूं।

संगिनी की पाठिकाओं से क्या कहना चाहेंगी?

मैं एक ही चीज कहना चाहूंगी कि हर महिला को

महिला होने पर गर्व होना चाहिए। हम नहीं चाहते कि हमें एक आदमी का रोल मिले। हम महिला होने पर खुश हैं, जो ताकत महिला में है वह किसी में भी नहीं। हमें अपने आप पर कॉन्फिडेंस होना चाहिए। हम पहले से ही एम्पॉवर्ड हैं। प्रकृति ने ही हमें सशक्त बनाया है, लेकिन समाज ने हमारे लिए कुछ नियम बना दिए हैं कि हम यह कर सकते हैं या यह नहीं कर सकते हैं।

यह सब हमारी परवरिश में बचपन से ही डाल दिया जाता है। हमें इन्हीं बंदिशों को तोड़ कर आगे जाना है। मैं बहुत खुश हूं कि मैं एक महिला हूं। मैं पुरुष की भूमिका नहीं निभाना चाहती। मुझे गर्व है अपने महिला होने पर।

यशा माथुर


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