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    जुनून ने दिलाया द्रोणाचार्य अवार्ड

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    Updated: Mon, 17 Sep 2012 12:56 PM (IST)

    कन्या भ्रूण हत्या के मामले में जिस प्रदेश का रिकार्ड सबसे खराब है, उसी प्रदेश की एक बेटी हाल ही में खेलों के प्रतिष्ठित पुरस्कार द्रोणाचार्य अवार्ड से नवाजी गई।

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    कन्या भ्रूण हत्या के मामले में जिस प्रदेश का रिकार्ड सबसे खराब है, उसी प्रदेश की एक बेटी हाल ही में खेलों के प्रतिष्ठित पुरस्कार द्रोणाचार्य अवार्ड से नवाजी गई। जिसके बाद अप्रत्यक्ष रूप से ही बेटी के अनमोल होने का संदेश उन्होंने अपने प्रदेश के समाज को दे ही दिया। बात हो रही है गुड़गांव की सुनील डबास की जो भारतीय महिला कबड्डी टीम की कोच हैं और उनके द्वारा तराशी गई प्रतिभाओं के बलबूते देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई प्रतियोगिताओं में छह स्वर्ण पदक आ चुके हैं। एक साधारण परिवार से होने के बावजूद, क्या है उनकी असाधारण सफलता की कहानी, जानते हैं सुनील से ही..

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    शुरुआती जीवन

    झज्जर जिले के एमपी माजरा गांव में जन्मी सुनील के पिता अतर सिंह आर्मी में थे, वे रेस्लिंग करते थे। यही वजह भी थी कि स्कूल स्तर से सुनील का रुझान खेलों की ओर बढ़ता गया। स्कूली स्तर पर कबड्डी में सुनील ने कई इनाम जीते। आखिर में उन्हें भारतीय कबड्डी टीम का कोच बनाया गया और तब से अब तक वह विभिन्न प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भारत को आधा दर्जन से अधिक स्वर्ण पदक दिलवा चुकी हैं।

    शिक्षा एवं प्रशिक्षण

    सुनील ने प्रारंभिक शिक्षा झज्जर से ही ली है। एमए व एमपीएड उन्होंने महर्षि दयानंद विश्व- विद्यालय की। एमपीएड में वे गोल्ड मैडलिस्ट रही थीं बाद में कुरुक्षेत्र से एमफिल तथा आगरा से स्पोर्ट साइकोलॉजी पर पीएचडी की।

    परिवार का सहयोग

    सुनील के कहती हैं कि माता-पिता के साथ ससुराल पक्ष की तरफ से भी उन्हें पूरी स्वतंत्रता मिली। उनका कहना है कि पति विवेक कुमार के साथ सास-ससुर तथा ननद का भी सहयोग रहा है। विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए तमाम राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय दौरे होते रहते हैं लेकिन उनमें परिवार कभी बाधक नहीं बना।

    यादगार लम्हा

    कबड्डी के बेहतरीन कोच होने के लिए हाल ही में सुनील को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा द्रोणाचार्य अवार्ड प्रदान किया गया। यह उनके जीवन का सबसे खुशनुमा पल था।

    बदलनी होगी सोच

    गुड़गांव के द्रोणाचार्य कालेज में सुनील इस समय बतौर कोच तथा फिजिकल एजुकेशन प्राध्यापक के तौर पर तैनात हैं। वह यहां पर खिलाड़ियों को तैयार करती हैं। उनका कहना है कि प्रतिभाएं बहुत हैं लेकिन आज भी समाज में महिला खिलाड़ियों के लिए उनके माता-पिता तथा समाज एक बाधा के रूप में कहीं न कहीं खड़ा हो जाता है। उनके मुताबिक लड़कियों को आगे बढ़ाने के लिए वे कई बार माता पिता को भी समझाती हैं। सुनील के मुताबिक अगर महिलाओं को संसाधन तथा अधिक से अधिक प्रोत्साहन दिया जाए तो वे बहुत आगे जा सकती हैं। उनके मुताबिक हर खेल में ज्यादा से ज्यादा महिला कोच नियुक्त की जानी चाहिए ताकि लोग अपनी बेटियों को खेलों में भेजें।

    खलती है अकादमी की कमी

    सुनील कहती हैं कि दसवें एशियन गेम्स के दौरान वे चीन गई, उन्हें यह जानने की उत्सुकता थी कि आखिर वहां ऐसा क्या है जो हमारे देश में नहीं है। उन्होंने पाया कि वहां पर शुरुआती दौर में ही बच्चों को खेल अकादमी ले लेती है व उन पर पूरी मेहनत करती है। भारत में ऐसी खेल अकादमी की कमी है जिससे प्रतिभाएं पनप नहीं पाती। ऐसे में सरकार को चाहिए कि अधिक से अधिक खेल अकादमी बनाएं।

    बतौर कोच प्रदर्शन

    2005 में सुनील भारतीय टीम की कोच बनी तथा उन्होंने अब तक छह गोल्ड मैडल दिलवाए।

    2006 - दसवें साउथ एशियन गेम्स, टोरंटो

    2007 - दूसरी एशियन चैम्पियनशिप, इरान

    2008 - तीसरी एशियन चैम्पियनशिप, मदुरै

    2009 - 11वें साउथ एशियन गेम्स, ढाका

    2010 - दसवें एशियन गेम्स, चाइना

    2012 - पहली महिला कबड्डी व‌र्ल्डकप, पटना।

    इस तरह के शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें राज्य स्तर पर सर्वश्रेष्ठ कोच होने के लिए सम्मान दिया गया तथा हाल ही में एक हफ्ते पहले उन्हें पहला राष्ट्र स्तरीय पुरस्कार भी मिला।

    प्रियंका दुबे मेहता

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