Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बच्चे रेस के घोड़े नही: नेहा धूपिया

    By Srishti VermaEdited By:
    Updated: Mon, 20 Feb 2017 03:06 PM (IST)

    चैट शो ‘नो फिल्टर नेहा’ से उन्होंने अच्छी-खासी लोकप्रियता अर्जित की अब वह कलर्स पर बच्चों के कॉमेडी शो ‘छोटे मियां धाकड़’में आज रात से बतौर जज नजर आएंगी

    Hero Image
    बच्चे रेस के घोड़े नही: नेहा धूपिया

    सरल-सहज परवरिश जरूरी
    बाल प्रतिभागियों को जज करने में बड़ा मजा आता है। साथ ही यह दुनिया के मुश्किल काम में से एक है। असल में कहा जाए तो हम उन्हें जज नहीं करते। वह करना सही नहीं। उस दौड़ में बड़े होते हैं। बाल प्रतियोगियों के मन में किसी को लेकर दुर्भावना नहीं होती। उनका जोर अपने एक्ट को बेहतरीन बनाने पर होता है। मैं तो उनके लिए एलिमिनेशन यानी निष्कासन टर्म भी इस्तेमाल नहीं कर सकती। शो यह संदेश देता है कि रोजमर्रा की जिंदगी में भी हम उनकी सरल व सहज परवरिश पर ध्यान दें। प्रतियोगिता की अंधी दौड़ व होड़ में न झोंकें। तब वे किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने में सक्षम बन सकेंगे।
    टेंशन मोल नहीं लेती
    खुद मेरा लालन-पालन सहज तरीके से हुआ है। खेलकूद में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करती थी। स्वभाव से स्पोर्टी होने के चलते मुझमें कभी हीन भावना नहीं आई। मेरी एक भी फिल्म सौ करोड़ क्लब में नहीं है। मैं फिर भी खुश हूं। मुझमें परफॉर्म करने की बड़ी भूख है। बेहतर नतीजों के लिए हदें पार नहीं कीं। मेरी ऐसी फितरत भी नहीं। तभी मैं सुकून की जिंदगी जी रही हूं। कभी डिप्रेशन में नहीं गई। खुशकिस्मती से इस मंच पर भी वैसे ही बच्चे हैं। टीआरपी बढ़ाने की खातिर वे कुछ भी कर गुजरना नहीं चाहते। मसलन, एक सात साल का प्रतियोगी है। उससे कहा गया कि वह एक्ट के दौरान मुझ पर पानी फेंके। उसने ऐसा करने से मना कर दिया। जाहिर है वे रेस में अव्वल आने को आतुर घोड़े नहीं बने हैं।

    यह भी पढ़ें : चुनौतियां बनाती हैं हीरो
    लेखन में भी दस्तक
    अदाकारी और प्रस्तोता की पारी खेलने के बाद अब मैं लेखन में भी आने की तैयारी कर रही हूं। मैं एक फिल्म लिख रही हूं। वह समसामयिक विषय को लेकर है। उसकी रिसर्च पर मैं एक साल से काम कर रही हूं। रहा सवाल 100 करोड़ क्लब की संभावित फिल्में न होने का तो मुझमें उनके निर्माण से लेकर रिलीज तक इंतजार करने का धीरज नहीं है। लिहाजा मैं ‘मोह माया मनी’ या ‘एक चालीस की लास्ट लोकल’ जैसी फिल्मों से भी खुश हूं। इस मंच से जुड़कर भी मुझे बहुत फख्र महसूस हो रहा है। यहां से भी मेरी रचनात्ममकता को भरपूर खुराक मिल रही है। वह यूं कि यहां हंसने-हंसाने को द्विअर्थी संवाद वाले चुटकुले नहीं सुनाए जाते। उनकी गुंजाइश भी नहीं। एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल हंसाने की परंपरा यहां नहीं। आप फिर भी हंसकर लोट पोट हो जाते हो।

    ‘नागिन’ व ‘बिग बॉस’ नहीं
    टीवी पर बहुत कुछ हो रहा है, पर मैं मोबाइल पर आनलाइन आने वाले कार्यक्रम ज्यादा देखती हूं। खासकर सीरियल वाले जॉनर में। हिंदी की बात करें तो मुझे नॉनफिक्शन शो भाते हैं। ‘बिग बॉस’, ‘राइजिंग स्टार’ मिसाल के तौर पर। इसका मतलब यह नहीं कि मैं ‘बिग बॉस’ में हिस्सा लूंगी। वह मुझे देखना भर पसंद है। ‘नागिन’ जैसे कंटेंट तो सपने में भी नहीं। न बतौर प्रोड्यूसर ऐसे शो मैं कभी बनाना ही चाहूंगी। हम एक ऐसे दौर में हैं, जब फीमेल प्रोड्यूसर बहुत अच्छा कर रही हैं। इंडस्ट्री में जेंडर के मद्देनजरकिसी तरह के भेदभाव नहीं हैं। यह ग्लैमर जगत की खूबी है। खासकर, छोटे पर्दे पर। नतीजतन, मैं चाहूंगी कि यहां कुछ अनूठे शो लेकर आ सकूं।
    प्रस्तुति- अमित कर्ण
    यह भी पढ़ें : मुझमें है साहस: कंगना रनौट

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें