बचपन में निकाले गए गर्भाशय के पुनः प्रत्यारोपण से बनी मां
कैंसर या अन्य गंभीर बीमारियों के कारण मातृत्व के सुख से वंचित रह जाने वाली महिलाओं के जीवन में उम्मीद की नई किरण जागी है। अपनी तरह के पहले मामले में गंभीर बीमारी के कारण बचपन में निकालकर सुरक्षित रखे गए गर्भाशय ऊतकों की मदद से एक महिला ने 13
लंदन। कैंसर या अन्य गंभीर बीमारियों के कारण मातृत्व के सुख से वंचित रह जाने वाली महिलाओं के जीवन में उम्मीद की नई किरण जागी है। अपनी तरह के पहले मामले में गंभीर बीमारी के कारण बचपन में निकालकर सुरक्षित रखे गए गर्भाशय ऊतकों की मदद से एक महिला ने 13 साल बाद स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।
चिकित्सा की दुनिया में यह क्रांतिकारी प्रगति है।
इससे पहले सुरक्षित रखे गए गर्भाशय ऊतकों की मदद से सफल गर्भधारण हुआ है, लेकिन वे सभी गर्भाशय ऊतक वयस्क महिलाओं के थे। यह पहला मामला है जिसमें गर्भाशय ऊतक एक किशोरी से उस वक्त निकाले गए थे जब उसकी उम्र महज 13 साल 11 महीने थी। इससे पहले यह निश्चित नहीं था कि माहवारी शुरू होने से पहले किसी लड़की से लिए गए गर्भाशय ऊतकों से परिपक्व अंडे (अंडाणु) तैयार किए जा सकते हैं या नहीं। महिला का नाम जाहिर नहीं किया गया है।
क्या था मामला
11 साल की उम्र में उक्त महिला को सिकल-सेल एनीमिया के इलाज के लिए उसके भाई का बोन मैरो (अस्थि मज्जा) प्रत्यारोपित किया गया था। इस पूरी प्रक्रिया में उसे कीमोथेरेपी दी जानी थी। इस स्थिति में डॉक्टरों ने उसके दाएं गर्भाशय को निकालकर उसके ऊतकों को सुरक्षित रख दिया था। उस समय उसकी उम्र 14 साल से भी कम थी।
10 साल बाद हुआ प्रत्यारोपण
गर्भाशय ऊतक निकालने के बाद महिला के अंगों का विकास उचित प्रकार से हुआ लेकिन मासिक चक्र शुरू नहीं हुआ। 10 साल बाद महिला की इच्छा पर चिकित्सकों ने बचपन में सुरक्षित रखे उसके गर्भाशय ऊतकों को शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया। करीब पांच महीने बाद महिला का मासिक चक्र शुरू हो गया और दो साल बाद महिला ने गर्भधारण किया। पिछले साल नवंबर में उसने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।
क्यों महत्वपूर्ण है उपलब्धि
जर्नल 'ह्यूमन री-प्रोडक्शन' में प्रकाशित यह प्रक्रिया ऐसी हजारों युवा कैंसर पीड़ितों के लिए आशा की किरण है, जो कीमोथेरेपी जैसे इलाज के कारण मां नहीं बन पाती हैं। कीमोथेरेपी और कैंसर के अन्य इलाज के दौरान महिलाओं का गर्भाशय क्षतिग्रस्त होने की आशंका रहती है।
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