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.एवरेस्ट के नीचे से नेपाल पहुंचेगी चीनी ट्रेन

अगले कुछ सालों में माउंट एवरेस्ट के नीचे से ट्रेन गुजरेगी। चीन की योजना तिब्बत से नेपाल के बीच 540 किमी लंबा रेलमार्ग बनाने की है। यह एवरेस्ट के नीचे एक सुरंग से होकर गुजरेगा। इस रेलमार्ग के 2020 तक पूरा हो जाने की संभावना है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 09 Apr 2015 05:13 PM (IST)Updated: Thu, 09 Apr 2015 07:01 PM (IST)

बीजिंग। अगले कुछ सालों में माउंट एवरेस्ट के नीचे से ट्रेन गुजरेगी। चीन की योजना तिब्बत से नेपाल के बीच 540 किमी लंबा रेलमार्ग बनाने की है। यह एवरेस्ट के नीचे एक सुरंग से होकर गुजरेगा। इस रेलमार्ग के 2020 तक पूरा हो जाने की संभावना है।

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फिलहाल इस परियोजना की लागत पर कुछ नहीं कहा गया है। चीन के सरकारी अखबार चाइना डेली ने बताया कि किंघाई-तिब्बत रेलवे को केरमंग तक विस्तार देने की योजना है। केरमंग नेपाल की सीमा के पास स्थित एक शहर है जहां सीमा व्यापार केंद्र बनाया गया है।

1956 किमी लंबी किंघाई-तिब्बत रेलवे फिलहाल चीन के शेष हिस्सों को तिब्बत की राजधानी ल्हासा और इसके आसपास के इलाकों से जोड़ती है। हालांकि इस परियोजना को अमल में लाना इतना आसान नहीं है। चीनी इंजीनयरिंग अकादमी के रेल विशेषज्ञ वांग मेंगशू ने बताया कि परियोजना शुरू होने के बाद इंजीनियरों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

इस रेलमार्ग पर ऊंचाई में आने वाला बदलाव सबसे प्रमुख चुनौती होगी। इसके कारण ट्रेनों की अधिकतम गति 120 किमी प्रति घंटा होगी। रेलमार्ग को कोमोलांग्मा से गुजारने के लिए बहुत लंबी सुरंगें खोदनी पड़ सकती है। कोमोलांग्मा दरअसल माउंट एवरेस्ट का तिब्बती नाम है।

चीन का कहना है कि इस परियोजना पर काम नेपाल के अनुरोध पर किया जा रहा है और इसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। चाइना डेली ने बताया कि प्रस्तावित विस्तार से द्विपक्षीय व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

भारत के लिए चिंता का सबब

नेपाल में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश वाले चीन के इस कदम से भारत की चिंताएं बढ़ सकती है। नेपाल के रास्ते धर्मशाला जाकर दलाई लामा से मिलने वाले तिब्बितयो को रोकने के लिए चीन इस देश से अपने संबंध लगातार बढ़ा रहा है।

बीजिंग ने हाल ही में नेपाल को दी जाने वाली 2.4 करोड़ डॉलर की वार्षिक मदद को बढ़ाकर 12.8 करोड़ कर दिया था। इसके अलावा भूटान और भारत की सीमा तक अपने तिब्बती रेल नेटवर्क का विस्तार करने की चीन पहले ही घोषणा कर चुका है।

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