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    चीन को आम जन ने नकारा, NSG पर भारत के प्रयासों को सराहा

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Fri, 24 Jun 2016 03:09 PM (IST)

    एनएसजी में भारत की दावेदारी पर चीन ने भले ही अड़चन पैदा किया हो। लेकिन लोग भारत के प्रयास की जमकर तारीफ कर रहे हैं।

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    सियोल। एनएसजी में भारत की दावेदारी पर चीन ने नापाक चाल चली। नियमों का हवाला देकर उसने भारत की दावेदारी पर रोक लगा दी। लेकिन 48 सदस्यों वाली एनएसजी में जिस तरह से बाकी सदस्यों का समर्थन मिला है, उसकी दुनिया भर में सराहना हो रही है। जनमत जानने के लिए दैनिक जागरण ने एक पोल किया जिसमें 96 फीसद से ज्यादा लोगों ने भारत के प्रयासों की तारीफ की। इस पोल में दुनिया के 34 देशों ने हिस्सा लिया।

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    एनएसजी पर चीन के साथ-साथ कई देश भारत का विरोध कर रहे थे। चीन के साथ तुर्की, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रिया और आयरलैंड शामिल थे। सियोल में कल हुई बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का प्रयास रंग लाया और 47 देशों ने भारत को समर्थन देने का फैसला किया। हालांकि चीन का समर्थन हासिल करने के लिए भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से ताशकंद में मुलाकात की थी।

    एनएसजी में भारत की एंट्री धूमिल, अंतिम दौर की बातचीत समाप्त

    भारत के लिए एनएसजी के माएने

    परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) असल में 48 परमाणु संपन्न देशों का समूह है जो कि दुनिया में परमाणु प्रसार को रोकने के लिए काम करते हैं। एनएसजी सदस्य परमाणु विस्तार कार्यक्रमों में इस्तेमाल की जा सकने वाली तकनीक को नियंत्रित करते हैं। परमाणु ऊर्जा वाले तत्वों और उसे बनाने वाले उपकरणों के निर्यात को भी नियंत्रित किया जाता है।

    भारत ने मई 1974 में परमाणु परीक्षण किया था। इसके जवाब में मई 1975 में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का गठन किया गया था। तभी इसकी पहली बैठक हुई थी।

    जब इस समूह का गठन हुआ था तब इसमें केवल सात देश शामिल थे। इसमें कनाडा, पश्चिम जर्मनी, युनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन), फ्रांस, जापान, सोवियत संघ और अमेरिका शामिल थे।

    लेकिन एनएसजी के गठन के 51 साल बाद वर्ष 2016 में इसमें कुल 48 सदस्य देश हैं। एनएसजी के गठन के समय परमाणु हथियारों की होड़ रोकना ही इसका मकसद था।

    लिहाजा बाद में परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को इसका मकसद बना लिया गया। फ्रांस को छोड़कर सभी सदस्यों ने एनपीटी पर हस्ताक्षर किए हैं।