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    जनरल कयानी को भी नहीं थी कारगिल अभियान की भनक

    By Gunateet OjhaEdited By:
    Updated: Thu, 05 Mar 2015 09:40 PM (IST)

    1999 के कारगिल अभियान की भनक पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी को भी नहीं थी।

    इस्लामाबाद। 1999 के कारगिल अभियान की भनक पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी को भी नहीं थी। पूर्व सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने उन्हें भी इस हमले को लेकर अंधेरे में रखा था। कयानी उस समय पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सुरक्षा बलों के प्रमुख थे।

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    पूर्व मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) अब्दुल मजीद मलिक की किताब 'हम भी वहां मौजूद थे' में यह दावा किया गया है। किताब में कहा गया है कि कयानी पीओके की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार 12वीं डिवीजन के अगुवा थे। लेकिन, उस अभियान को लेकर उन्हें भरोसे में नहीं लिया गया, जिसको लेकर पाकिस्तान और भारत परमाणु युद्ध के निकट पहुंच गए थे।

    कयानी को बाद में मुशर्रफ ने ही अपना उत्तराधिकारी चुना था। वे 2007 में मुशर्रफ के स्थान पर पाकिस्तान के सेना प्रमुख बने और 6 साल तक इस पद पर रहे। अपनी पुस्तक में मलिक ने कहा है कि जनरल मुशर्रफ ने कयानी को विश्वास में नहीं लिया, जिन्होंने बाद में इस अभियान का विरोध किया। कयानी अथवा मुशर्रफ ने इस किताब पर अब तक प्रतिक्रिया नहीं दी है।

    अपनी पुस्तक में मलिक ने कहा है कि इस अभियान के लिए मुशर्रफ ही पूरी तरह जिम्मेदार थे। यहां तक कि पूरे कारगिल अभियान के बारे में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी नहीं बताया गया। किताब में पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों के बारे में भी जानकारी दी गई है। मलिक ने इसका श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दिया है। कभी शरीफ के काफी करीबी रहे मलिक ने 1999 के तख्तापलट के बाद मुशर्रफ का दामन थाम लिया था।