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तीन डॉलर लेकर आए भारतीय विज्ञानी ने दान में दिए 74 करोड़

पश्चिम बंगाल में जन्मे भौमिक गरीबी से संघर्ष कर कामयाब हुए हैं। उन्होंने लेजर तकनीक के विकास में अहम भूमिका निभाई है।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2016 07:14 PM (IST)Updated: Fri, 01 Jul 2016 09:14 AM (IST)
तीन डॉलर लेकर आए भारतीय विज्ञानी ने दान में दिए 74 करोड़

वाशिंगटन, प्रेट्र। एक समय महज तीन डॉलर लेकर अमेरिका में कदम रखने वाले भारतीय मूल के भौतिक विज्ञानी मणि भौमिक ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को 1.1 करोड़ डॉलर (करीब 74.38 करोड़ रुपये) दान में दिए हैं। विश्वविद्यालय के इतिहास में यह सबसे बड़ा दान बताया जा रहा है। पश्चिम बंगाल में जन्मे भौमिक गरीबी से संघर्ष कर कामयाब हुए हैं। उन्होंने लेजर तकनीक के विकास में अहम भूमिका निभाई है। इसकी बदौलत ही लेसिक आइ सर्जरी की राह खुली। भौमिक के नाम पर विश्व स्तरीय संस्थान भी है।

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कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के चांसलर जीन ब्लॉक ने कहा, 'मैं भौमिक को उनके परोपकार और विश्वास के लिए धन्यवाद देता हूं।' यूनिवर्सिटी ने बयान में कहा कि मणि एल. भौमिक इंस्टीट्यूट फॉर थिओरेटिकल फिजिक्स का लक्ष्य सैद्धांतिक भौतिक शोध के लिए दुनिया का अग्रणी केंद्र बनने का है।

बेहद गरीबी में बीता बचपन:

भौमिक का जन्म मिदनापुर के सिउरी गांव के गरीब परिवार में हुआ था। वह झोपड़ी में अपने माता-पिता और छह भाई-बहनों के साथ रहते थे। भौमिक ने कहा, 'मेरे पास 16 साल की उम्र तक एक जोड़ी जूते भी नहीं थे। मैं पढ़ने के लिए चार मील पैदल जाता था।' किशोरावस्था में उन्होंने कुछ समय महात्मा गांधी के साथ गुजारा था। वह उनके महिषादल शिविर में शामिल हुए थे। स्लोअन फाउंडेशन की फेलोशिप पर उनके कैलिफोर्निया जाने के लिए विमान का किराया गांव वालों ने इकट्ठा करके दिया।

सतेंद्र बोस की निगरानी में की पढ़ाई

भौमिक ने जानेमाने भौतिक विज्ञानी सतेंद्र बोस की निगरानी में पढ़ाई की और कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। वह 1958 में आइआइटी खड़गपुर से भौतिक विज्ञान में डॉक्टरेट की डिग्री पाने वाले पहले छात्र बने। इसके बाद वह 1959 में कैलिफोर्निया आ गए। 1961 में भौमिक ने जीरोक्स इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सिस्टम में लेजर विज्ञानी के रूप में उन्होंने ज्वाइन किया। बाद में वह लेजर तकनीक पर आधारित नोर्थरोप कॉरपोरेट रिसर्च लैब के निदेशक बने।

1973 में पाई उपलब्धि:

1973 में उन्होंने विश्र्व का पहला एक्साइमर लेजर बनाने की घोषणा की। यह पराबैंगनी लेजर का एक रूप है जो नेत्र ऑपरेशन में आसपास की कोशिकाओं को बिना नुकसान पहुंचाए जैविक तंतुओं को हटाने में काम आता है।

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