तनाव में पुरुष आत्मकेंद्रीत तो महिलाएं हो जाती हैं ज्यादा सामाजिक
लंदन। पुरुष और स्त्रियां तनाव की स्थितियों में एक जैसा व्यवहार नहीं करते। ऐसे में आदमी जहां आमतौर पर आत्म केंद्रीत हो जाते हैं तो महिलाएं ज्यादा सामाजिक। शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादा तनाव की हालत में जब पुरुष खुद में सिमटने लगते हैं तो अपनी भावनाएं और इरादे दूसरों के सामने जाहिर करने की स्थिति में नहीं होते। वहीं महिलाएं इसका ठीक उल्टा

लंदन। पुरुष और स्त्रियां तनाव की स्थितियों में एक जैसा व्यवहार नहीं करते। ऐसे में आदमी जहां आमतौर पर आत्म केंद्रीत हो जाते हैं तो महिलाएं ज्यादा सामाजिक।
शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादा तनाव की हालत में जब पुरुष खुद में सिमटने लगते हैं तो अपनी भावनाएं और इरादे दूसरों के सामने जाहिर करने की स्थिति में नहीं होते। वहीं महिलाएं इसका ठीक उल्टा करती हैं। वो तनाव को काफूर करने या इन स्थितियों में काम करने के लिए अधिक सामाजिकता का सहारा लेती हैं। ये अध्ययन इटली के अग्रिम अध्ययन संबधी एक अंतरराष्ट्रीय विद्यालय में किया गया।
स्कूल से ताल्लुक रखने वाले मुख्य अध्ययनकर्ता जार्जिया सिलानी ने कहा, तनाव एक मनोवैज्ञानिक जैवकीय प्रक्रिया है, जो सकारात्मक काम भी निष्पादित कर सकता है। ये व्यक्तिगत तौर पर अतिरिक्त स्त्रोतों को पाने की आंतरिक क्षमताओं में बढोतरी कर देती हैं, खासकर तब जबकि आप किसी मांगपूर्ण चुनौती वाली स्थितियों में काम कर रहे हों।
हर कोई व्यक्तिगत तौर पर तनाव से एक या दो तरीकों से ही निपटता है-इस्तेमाल किए जा रहे अतिरिक्त स्त्रोतों के आंतरिक भार को कम करने की कोशिश या बाहरी स्थितियों से मदद। जब आप आंतरिक तौर पर भावनात्मक बोझ को कम करने की कोशिश करते हैं तो आत्म केंद्रीत नजरिया धारण करने लगते हैं। इस तरह की स्थितियां आमतौर पर पुरुषों के साथ ज्यादा होती हैं। जबकि महिलाएं इसके लिए अलग नजरिया अपनाती हैं और बाहरी मदद से हिचकिचाती नहीं. और इस तरह की क्षमता विकसित करती हैं कि अधिक सामाजिक होकर तनाव से निपट सकें। लिहाजा वो तनाव में पुरुषों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं।

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