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हिन्दी-ओड़िआ राष्ट्रीय साहित्य कार्यशाला सम्पन्न

By Edited By: Published: Sun, 15 Jan 2012 03:26 PM (IST)Updated: Sun, 15 Jan 2012 03:26 PM (IST)
हिन्दी-ओड़िआ राष्ट्रीय साहित्य कार्यशाला सम्पन्न

राष्ट्रभाषा के साथ प्रांतीय भाषा का विकाश जरूर है: सांसद पाटशाणी

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पुरी, जागरण संवाददाता

विभिन्न भाषा के साहित्य के मध्य आदान प्रदान, विभिन्न भाषा-भाषी साहित्यिकों के बीच भाव विनिमय के द्वारा भाव के आदान प्रदान से भाषा साहित्य विकसित होने के साथ राष्ट्रीय एकता भावना मजबूत होगी। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय हिन्दी संस्थान संघ तथा ओड़िशा राष्ट्रभाषा परिषद की तरफ से जिलाधीश सम्मेलन कक्ष में हिन्दी और ओड़िआ राष्ट्रीय साहित्य कार्यशाला अवसर पर विशिष्ट वक्ताओं ने यह बात कही है। कई हिन्दी तथा ओड़िआ सारस्वत साधक योगदान पूर्वक इस कार्यशाला का महत्व बढ़ाए थे। इस कार्यशाला को सांसद तथा राजभाषा संसदीय समिति के अध्यक्ष डा.प्रसन्न कुमार पाटशाणी आनुष्ठानिक रूप से उद्घाटन किए। कार्यशाला के उद्घाटनी अधिवेशन में अखिल भारतीय हिन्दी संस्थान संघ के सचिव डा.चन्द्रदेव केबड़े ने अध्यक्षता किया। डा.पाटशाणी उद्घाटनी अभिभाषण में प्रांतीय भाषा उन्नति के द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी के अधिक विकास और प्रसार हो सकने की बात कही। उन्होंने कहा कि औप निवेशिक भाषा प्रभाव से हमें मुक्त होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि ओड़िआ भाषा को एक समृद्ध भाषा के रूप में अभिहित करने के साथ अनुवाद के जरिए विभिन्न भाषा भाषी साहित्य के विनिमय के ऊपर गुरूत्वारोप होना चाहिए। आन्ध्र विश्व विद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व प्रो.डा.शेषारत्नम मुख्य अतिथि, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के अनुसंधान अधिकारी राकेश कुमार शर्मा सम्मानित अतिथि, भुवनेश्वर बीजेबी कालेज के पूर्व अध्यक्ष तथा विशिष्ट साहित्यिक डा.शंकरलाल पुरोहित मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिए थे। अन्त में ओड़िशा राष्ट्र भाषा परिषद पुरी शाखा के साधारण संपादक ज्योतिराज नंद शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उद्घाटनी अधिवेशन में हिन्दी तथा ओड़िआ साहित्य के विशिष्ट प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया। डा.हरिहर मिश्र, डा.अजय कुमार पटनायक, विशिष्ट कवि रक्षक नायक, डा.शंकरलाल पुरोहित को सम्मानित किया गया था। इस अवसर पर हिन्दी और ओड़िआ नाटक में राष्ट्रीय एकता, हिन्दी और ओड़िआ कविता में राष्ट्रीय एकता तथा हिन्दी और ओड़िआ कथा साहित्य में राष्ट्रीय एकता शीर्षक आलोचनाचक्र सम्पन्न हुआ था।

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