..तो सिर्फ 2014 में नहीं होगी इंडियन ग्रांप्रि
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। 2014 में ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट (बीआइसी) में फॉर्मूला वन रेस नहीं होने की अटकलों पर मंगलवार को मुहर लग गई। ...और पढ़ें

अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। 2014 में ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट (बीआइसी) में फॉर्मूला वन रेस नहीं होने की अटकलों पर मंगलवार को मुहर लग गई। फॉर्मूला वन बॉस बर्नी एस्लेस्टोन ने कहा कि एफ-1 कैलेंडर को सुधारने के लिए ऐसा किया जा रहा है। इसके अलावा और कोई वजह नहीं है। 2015 की शुरुआत में यहां रेस आयोजित होगी। उन्होंने कहा कि मेरे राजनीति संबंधी बयान का गलत संदर्भ निकाला गया।
फेडरेशन ऑफ मोटरस्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया (एफएमएससीआइ) के अध्यक्ष विक्की चंडोक ने कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि इससे घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि बर्नी के सोमवार के बयान को गलत संदर्भ में लिया गया था। उन्होंने कहा कि भारत ऑटोमोबाइल का बहुत बड़ा बाजार बनता जा रहा है इसलिए टैक्स या अन्य मुद्दों के कारण एफआइए भारत जैसे बाजार को नहीं छोड़ेगा। इंडियन ग्रांप्रि को 2014 में नहीं कराने की वजह सिर्फ कैलेंडर को सुधारना है।
दैनिक जागरण ने पहले ही बता दिया था कि टैक्स नहीं बल्कि कैलेंडर को सुधारने के लिए ऐसा किया जा रहा है। एफ-1 के सर्वेसर्वा एस्लेस्टोन ने मंगलवार को इस बात की पुष्टि कर दी। उन्होंने कहा कि उनकी और जेपी स्पोर्ट्स इंडिया (जेपीएसआइ) के बीच 2015 के पहले चरण में इंडियन ग्रांप्रि को कराने की बात चल रही है। हम इस पर काम कर रहे हैं। वहीं चंडोक ने कहा कि फॉर्मूला-1 प्रबंधन शुरुआत से ही मानता थे कि भारत में सत्र के अंत की बजाय शुरुआत में रेस कराई जानी चाहिए। जब एफआइए (इंटरनेशनल ऑटोमोबाइल फेडरेशन) ने जेपी के साथ पांच साल का करार किया था तब भी वह भारत में सत्र की शुरुआत में रेस करवाना चाहते थे लेकिन जेपीएसआइ अक्टूबर में रेस का आयोजन करना चाहता था। तब एफआइए ने जेपीएसआइ की बात मान ली थी लेकिन अब एफआइए कैलेंडर बदलना चाहता है। बर्नी ने आज कहा कि भारत में 2015 की शुरुआत में फॉर्मूला वन रेस आयोजित की जाएगी। वहीं जेपी प्रबंधन के सूत्रों का कहना है कि अगर 2014 में सत्र के अंत में बीआइसी में रेस होती तो फिर 2015 की शुरुआत में रेस आयोजित करना मुश्किल होता। छह महीने के अंदर दो रेस आयोजित करना बहुत मुश्किल होता है। बीआइसी में एक रेस कराने के लिए एफआइए को 40 मिलियन डॉलर (लगभग 237.7 करोड़ रुपये) की फीस देनी होती है। छह महीने के अंदर किसी भी आयोजक के लिए दो बार इतनी फीस देना बहुत मुश्किल काम है। दोनों लोगों के बीच बातचीत के बाद ही यह फैसला लिया गया कि 2014 में रेस आयोजित नहीं की जाएगी।
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