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    इंसानी राख से बनने लगा है हीरा

    By Babita kashyapEdited By:
    Updated: Fri, 10 Oct 2014 03:42 PM (IST)

    इंसान बदलते हैं, सोच बदलती है और बदलता है जमाना एक जमाना था जब हम अपने प्रियजनों के स्वर्गवास पर उनका अंतिम संस्कार करते थे और उसके बाद उनकी राख को शुद्ध कलश में समेट कर रख लेते थे, पर अब ना ही आपको कलश की जरूरत पड़ेगी और ना ही करना होगा राख को नदी में प्रवाहित इसके बावज़ूद आपके मृत प्रियजन रहेंगे आपके और भी कर

    इंसान बदलते हैं, सोच बदलती है और बदलता है जमाना एक जमाना था जब हम अपने प्रियजनों के स्वर्गवास पर उनका अंतिम संस्कार करते थे और उसके बाद उनकी राख को शुद्ध कलश में समेट कर रख लेते थे, पर अब ना ही आपको कलश की जरूरत पड़ेगी और ना ही करना होगा राख को नदी में प्रवाहित इसके बावज़ूद आपके मृत प्रियजन रहेंगे आपके और भी करीब जी हां! हम आपको सुनाने जा रहे हैं ऐसे इंसान की कहानी जिसने विकसित की है एक ऐसी तकनीक जिससे राखों को बदल दिया जाता है हीरे में।

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    कौन है वो

    जिस व्यक्ति ने यह तरीका खोज निकाला है उसका नाम है रिनाल्डो विल्ली स्विटजरलैंड के रहने वाले विल्ली ने एक कंपनी खोली है जिसका नाम 'एलगोरडैंजा' है जिसका हिंदी अर्थ 'यादें' हैं। इस कंपनी में मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के बाद बची राख को उन्नत तकनीकों का प्रयोग करते हुए हीरे में बदल दिया जाता है।

    यह कंपनी हर साल 850 लाशों की राख को हीरे में तब्दील कर देती है। इस काम की लागत हीरे की आकार के आधार पर निर्धारित की जाती है। अमूमन यह 3 लाख से 15 लाख रूपए के बीच बैठती है।

    कैसे आया विल्ली के दिमाग में यह विचार विल्ली को स्कूल में उसकी शिक्षिका ने एक लेख पढ़ने को दिया जो सेमीकंडक्टर उद्योग में प्रयोग होने वाले सिंथेटिक हीरे के उत्पादन पर आधारित थी। इस लेख में सब्जियों की राख से हीरे बनाने का तरीका था। लेकिन युवा विल्ली उसे मानव राख समझ कर पढ़ रहा था। विल्ली को विचार पसंद आया और उन्होंने अपनी शिक्षिका से इसके बारे में पूछा। शिक्षिका ने उसकी भूल को सुधारा तो विल्ली ने कहा अगर सब्जियों की राख से हीरा बनाया जा सकता है तो इंसान की लाश के राख से क्यों नहीं? इस पर उसकी शिक्षिका ने उस लेख के लेखक से सम्पर्क किया औऱ विल्ली को उनसे मिलवाया। फिर उन लोगों ने मिलकर इस विचार पर काम किया जिससे एलगोरडैंजा अस्तित्व में आई।

    कैसे बनता है यह हीरा

    सबसे पहले यह कंपनी इंसानी-राख को स्विटजरलैंड स्थित अपनी प्रयोगशाला में मंगवाती है। यहां एक विशेष प्रक्रिया द्वारा इस राख से कार्बन को अलग किया जाता है, अलग किए हुए कार्बन को उच्च ताप पर गर्म कर उसे ग्रेफाइट में बदला जाता है। इस ग्रेफाइट को एक मशीन में ठीक उन परिस्थितियों में रखा जाता है जैसा कि जमीन के नीचे पाई जाती है। कुछ महीनों के बाद वो ग्रेफाइट हीरे में बदल जाते हैं। फर्क बूझो तो जानें

    सिंथेटिक हीरे और असली हीरे में फर्क अत्यंत बारीक होती है जिसका पता सिर्फ प्रयोगशाला में रासायनिक स्क्त्रीनिंग के द्वारा किया जा सकता है. कुशल से कुशल जौहरी भी दोनों के बीच के अंतर को नहीं बता सकता।