प्यार की छत के नीचे चौंतीस का परिवार
..कोई घर बस तब तक ही रहता है घर, जब तक उग नहीं आते उसी में से और कई छोटे-छोटे घर
..कोई घर बस तब तक ही रहता है घर, जब तक उग नहीं आते उसी में से और कई छोटे-छोटे घर
लेकिन चामुंडा मंदिर के नजदीक तंगरोटी गांव में एक घर ऐसा भी है जो अब तक घर है क्योंकि उसमें भरा-पूरा परिवार है। इस वातावरण में जब हर आदमी अपने आप में एक घर बनने को आतुर है, तंगरोटी के परसराम का परिवार शाम को एक साथ एक छत के नीचे सामूहिक रूप से भोजन करता है। सुबह की पहली किरण के साथ इस परिवार का हर सदस्य अपने उत्तरदायित्वों की पूर्ति के लिए निकल पड़ता है। सुबह से शाम तक इस परिवार में शायद ही आठ या दस सदस्य नजर आएं लेकिन शाम के 9 बजे खाने के दौरान परिवार के 34 सदस्य जब एक साथ खाना खाते हैं तो उत्सव का वातावरण बन जाता है। यह संयुक्त परिवार टूटते परिवारों के लिए एक मिसाल है। इस परिवार ने गरीबी भी देखी, लेकिन इस हालत में भी यह परिवार एकजुट रहा। परिवार के सदस्यों की संख्या जरूर बढ़ती गई लेकिन विचार नहीं बदले और न रिश्तों की डोरी कमजोर पड़ी।
आज भी इस परिवार के मुखिया परस राम के दिशा निर्देशों पर परिवार का हर सदस्य कदम बढ़ाता है। उनकी आज्ञा सर्वोपरि है, यही वजह भी है कि कभी रेत बजरी उठाकर दो वक्त की रोटी पैदा करने वाला यह परिवार अब ट्रांसपोर्टर भी है। उनके पास तीन बसें, एक ट्रक, एक ट्रैक्टर, एक वैन व कार है। परिवार की एकजुटता और कार्यशैली का आलम यह है कि इस सारे कारोबार में अपने ही परिवार के लोग विभिन्न उत्तरदायित्व निभा रहे है। कोई गाड़ी चलाता है तो कोई कंडक्टर की भूमिका में है। अपनी खेतीबाड़ी को भी सभी सदस्य संयुक्त रूप से संभालते हैं। जिस रेत बजरी ने उनके घर को समृद्ध बनाया उस कारोबार को इन्होंने अब भी नहीं छोड़ा है।
परसराम ने बांधा एक सूत्र में
परिवार के मुखिया परस राम के आठ भाई और आठ बहनें थी। चार बहनों के विवाह उनके पिता पुन्नू राम कर गए थे लेकिन उनके देहांत के बाद यह जिम्मेवारी परस राम के कंधों पर आ गई। उन्होंने शेष चार बहनों का विवाह करवाया साथ ही अपने छोटे सात भाइयों का घर भी बसाया। अब पविार में परसराम व उनके सात भाइयों की पत्िनयां, 17 बच्चे परिवार में एक छत के नीचे रह रहे हैं। परसराम अपनी पंचायत के निर्वाचित प्रधान भी रहे हैं।
ये है सुपर परिवार
बत्ती देवी (परसराम की माता), आठ भाई जिनमें परसराम, सेठा राम, प्रभात चंद, रूप लाल, सुभाष चंद, रामपाल, देवराज व बिंदरपाल हैं जिनकी पत्नियां पार्वती, कुंता, सुरेशना, विंता देवी, राखी, सुदर्शना, अलका देवी हैं।
आंगन भरा है नौनिहालों से
इस परिवार का आंगन हमेशा नौनिहालों से भरा रहता है। परिवार के 17 बच्चे भी सभी सदस्यों को एक साथ जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। एकल परिवार में जहां एक बच्चे की परवरिश करना अभिभावकों के लिए मुश्किल कार्य है लेकिन यहां ऐसा कोई असुरक्षाबोध नहीं है।
आप भले तो जग भला
समाज का वातावरण क्या है, क्या धारणाएं हैं, मुझे कोई लेना-देना नहीं है। बस इतना जानता हूं कि आप भले तो जग भला। यही मेरे परिवार का मूलमंत्र है।
-परसराम, परिवार के मुखिया
सुरेश कौशल
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