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येद्दयुरप्पा पर भी पड़ सकती है आप की छाया

दिल्ली में बड़ी जीत के साथ उभरी आप के तेवर का असर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा पर भी दिख सकता है। किसी भी वक्त उनकी भाजपा में वापसी के निर्णय पर फिर से सोच-विचार शुरू हो सकता है। यह भी तय हो गया है कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में बाबूसिंह कुशवाहा जैसे लोगों के लिए दरवाजा बंद रहेगा। यूं तो च

By Edited By: Published: Sun, 15 Dec 2013 07:08 PM (IST)Updated: Sun, 15 Dec 2013 07:09 PM (IST)
येद्दयुरप्पा पर भी पड़ सकती है आप की छाया

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। दिल्ली में बड़ी जीत के साथ उभरी आप के तेवर का असर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा पर भी दिख सकता है। किसी भी वक्त उनकी भाजपा में वापसी के निर्णय पर फिर से सोच-विचार शुरू हो सकता है। यह भी तय हो गया है कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में बाबूसिंह कुशवाहा जैसे लोगों के लिए दरवाजा बंद रहेगा। यूं तो चुनाव से पहले किसी भी दल की प्रमुखता सिर्फ जिताऊ उम्मीदवार होते हैं। अब आप ने रणनीति में थोड़ा बदलाव ला दिया है। आंधी में बही कांग्रेस ने जहां आमूल चूल परिवर्तन का संकेत दे दिया है। वहीं, भाजपा भी सतर्क हो गई है।

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सूत्रों की मानें तो भ्रष्टाचार के आरोप में पद खोने वाले येद्दयुरप्पा की वापसी के जरिए कर्नाटक में जमीन मजबूत करने की भाजपा की मंशा पर थोड़ा ब्रेक लग सकता है। गौरतलब है कि लालकृष्ण आडवाणी शुरू से येद्दयुरप्पा के विरोधी रहे हैं। जाहिर है कि आप के नए अवतार के बाद आडवाणी को दबाव बढ़ाने का मौका मिल सकता है। हालांकि, देर सबेर उनकी वापसी पर संदेह नहीं है। यह भी तय है कि चुनाव से ठीक पहले पार्टी में शामिल होने वालों की जांच परख दुरुस्त होगी। नेताओं की गिरती साख के बीच संभव है कि पूर्व गृह सचिव आरके सिंह जैसे नौकरशाह कुछ ज्यादा दिखें। सूत्रों की मानें तो भाजपा दो स्तरों पर तैयारी में जुट गई है। दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में आप बेअसर रही। ऐसे में खासतौर पर शहरी इलाकों में पार्टी आक्रामक रहेगी। राजनीतिक दलों को सवालों के घेरे में कसने वाले आप नेताओं को भी सवालों में ही कसा जाएगा।

कश्मीर से लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा, आरक्षण, सांप्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक जैसे हर मुद्दे पर उन्हें बोलने के लिए मजबूर किया जाएगा। गौरतलब है कि आप के बड़े नेता प्रशांत भूषण ने एक वक्त पर कश्मीर में जनमत संग्रह का समर्थन कर दिया था। आप ने उसे व्यक्तिगत बयान तो बता दिया था, लेकिन राष्ट्रीय मुद्दों पर अब तक आप के नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। पिछले डेढ़-दो वर्ष से आंदोलनों की धरती बनी दिल्ली से बाहर आप को कई सवालों के जवाब देने होंगे, लेकिन उससे पहले भाजपा और कांग्रेस को अपना घर दुरुस्त करना होगा।

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