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विश्व स्वास्थ्य संगठन भी योग-आयुर्वेद की शरण में

नई दिल्ली [मुकेश केजरीवाल]। विश्व स्वास्थ्य संगठन [डब्लूएचओ] भी योग और आयुर्वेद की शरण में है। डब्लूएचओ ने दुनिया को रोग मुक्त बनाने के इरादे से योग और आयुर्वेद को जरूरी प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। दोनों ही पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के लिए इसने पहली बार भारत में एक-एक साझेदारी केंद्र शुरू किए हैं। इससे न सिर्फ विभिन्न बीमारियों के इलाज में योग और आयुर्वेद के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि दुनिया भर में इन पर लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा।

By Edited By: Published: Fri, 17 May 2013 09:38 PM (IST)Updated: Fri, 17 May 2013 10:58 PM (IST)
विश्व स्वास्थ्य संगठन भी योग-आयुर्वेद की शरण में

नई दिल्ली [मुकेश केजरीवाल]। विश्व स्वास्थ्य संगठन [डब्लूएचओ] भी योग और आयुर्वेद की शरण में है। डब्लूएचओ ने दुनिया को रोग मुक्त बनाने के इरादे से योग और आयुर्वेद को जरूरी प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। दोनों ही पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के लिए इसने पहली बार भारत में एक-एक साझेदारी केंद्र शुरू किए हैं। इससे न सिर्फ विभिन्न बीमारियों के इलाज में योग और आयुर्वेद के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि दुनिया भर में इन पर लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा।

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योग के लिए डब्लूएचओ का पहला साझेदारी केंद्र बने मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के निदेशक डा. ईश्वर वी. बसवरेड्डी कहते हैं कि विभिन्न बीमारियों में योग के प्रभाव को लेकर साक्ष्य आधारित प्रमाण तैयार करने पर संस्थान पहले से ही काम कर रहा है, लेकिन इस साझेदारी के बाद इस काम को दुनिया में एक साथ मान्यता मिल सकेगी। इससे इन पारंपरिक पद्धतियों के आधुनिकतम शोध को बढ़ावा मिलने के साथ ही लोगों को प्रमाण के आधार पर बताया जा सकेगा कि वे योग का सही उपयोग कैसे करें।

डब्लूएचओ के साथ इस साझेदारी को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाने वाले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आयुष विभाग में संयुक्त सलाहकार डा. डीसी कटोच कहते हैं कि डब्लूएचओ ने पारंपरिक चिकित्सा के लिए अब तक दुनिया भर में 21 साझेदारी केंद्र बनाए हैं, लेकिन इनमें योग और आयुर्वेद का एक भी नहीं था। दिल्ली स्थित 'मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान' के अलावा गुजरात के जामनगर स्थित 'आयुर्वेद स्नातकोत्तर शिक्षण और शोध संस्थान' को आयुर्वेद के क्षेत्र में काम के लिए भी यही मान्यता दी गई है।

यह पहल पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में चीन के दखल को भी चुनौती देगी। अब तक डब्लूएचओ के चीनी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के नौ साझेदारी केंद्र हैं। इनमें सात चीन जबकि दो हांगकांग में हैं। भारतीय केंद्रों के साथ साझेदारी पहले चरण में चार साल के लिए होगी। स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम के लिए डब्लूएचओ अकेले काम नहीं करता, बल्कि विभिन्न देशों के स्थानीय संस्थानों के साथ साझेदारी में ही काम करता है।

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