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क्रूरता की सभी हद पार की महिला नक्सलियों ने

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। भाकपा [माओवादी] की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिले में हुए नक्सली हमले की जिम्मेदारी लेते हुए मंगलवार को जो बयान जारी किया था उसमें सलवा जुडूम के अगुवा महेंद्र कर्मा के प्रति अतिशय घृणा का भाव था। लेकिन उससे करीब 40 घंटे पहले माओवादियों ने अपनी इस घृणा को वरिष्ठ कांग्रेस नेता कर्मा पर बेहद निर्मम तरीके से उतारा था। शुरुआती हमले में ही कर्मा को गोली लग गई थी लेकिन जैसे ही उन्हें पहचाना गया, उन्हें दर्दनाक मौत देने की नक्सलियों में होड़ लग गई। उन्हें सड़क के किनारे झाड़ियों के झुरमुट में ले जाया गया, पैर में लाठी मारकर जमीन पर गिरा दिया गया और उसके बाद तमाम महिला नक्सली उन पर चाकू लेकर टूट पड़ीं। कर्मा के शरीर पर चाकू के 78 जख्म मिले हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई है।

By Edited By: Published: Wed, 29 May 2013 10:01 AM (IST)Updated: Wed, 29 May 2013 09:43 PM (IST)

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। भाकपा [माओवादी] की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिले में हुए नक्सली हमले की जिम्मेदारी लेते हुए मंगलवार को जो बयान जारी किया था उसमें सलवा जुडूम के अगुवा महेंद्र कर्मा के प्रति अतिशय घृणा का भाव था। लेकिन उससे करीब 40 घंटे पहले माओवादियों ने अपनी इस घृणा को वरिष्ठ कांग्रेस नेता कर्मा पर बेहद निर्मम तरीके से उतारा था। शुरुआती हमले में ही कर्मा को गोली लग गई थी लेकिन जैसे ही उन्हें पहचाना गया, उन्हें दर्दनाक मौत देने की नक्सलियों में होड़ लग गई। उन्हें सड़क के किनारे झाड़ियों के झुरमुट में ले जाया गया, पैर में लाठी मारकर जमीन पर गिरा दिया गया और उसके बाद तमाम महिला नक्सली उन पर चाकू लेकर टूट पड़ीं। कर्मा के शरीर पर चाकू के 78 जख्म मिले हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई है।

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25 मई को कांग्रेस नेताओं पर हुए हमले में शामिल ज्यादातर नक्सली बाहर के थे। इसकी पुष्टि इसी बात से होती है कि वे दशकों से बस्तर इलाके में सक्रिय महेंद्र कर्मा को नहीं पहचानते थे। हां, उन्हें इस बात की सूचना अवश्य थी कि काफिले की किसी एक गाड़ी में महेंद्र कर्मा बैठे हुए हैं। बारूदी सुरंग विस्फोट के बाद फायरिंग का दौर शुरू हुआ। करीब डेढ़ घंटे तक गाड़ियों की आड़ से सुरक्षाकर्मियों ने नक्सलियों से लोहा भी लिया। जैसे ही सुरक्षाकर्मियों के कारतूस खत्म हुए-नक्सली मृतकों, घायलों और बचे लोगों के बीच महेंद्र कर्मा की तलाश में जुट गए। कर्मा को पहचानते ही नक्सलियों के चेहरे पर क्रूर मुस्कान खेलने लगी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार वे घायल कर्मा से चुहलबाजी पर भी उतर आए। पूछने लगे-क्या खाने की इच्छा है? कौन सा कपड़ा पहनोगे? कर्मा को शायद अपना अंत पता था, इसलिए वह शांत थे-न बचाव की कोशिश कर रहे थे और न ही कोई सफाई दे रहे थे।

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..लेकिन नक्सली युवक-युवतियां उनसे 'खेल' रहे थे। कर्मा को लेकर जो नकारात्मक बातें उनके जेहन में बैठाई गई थीं, उन्हीं का नतीजा था कि कर्मा को जमीन पर गिराकर उन्हें तड़पाया गया। उन्हें चाकुओं से जख्म देने के बाद उन्हें अनगिनत गोलियां मारी गईं। उनकी मौत हो गई। इस मौत पर खुशी का इजहार करने के लिए नक्सलियों ने उनके शव को ठोकर मारी, उस पर चढ़-चढ़कर डांस किया और अपनी जीत का गीत गाया। इतना ही नहीं शव पर भी रह-रहकर गोलियां मारी गईं। इस कृत्य में पुरुष ही नहीं कम उम्र महिला नक्सलियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कर्मा की लाश ने अपने साथ हुए कृत्य की कहानी बयां की-पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने इसकी पुष्टि की है।

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