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उत्तराखंड: 19 साल फाइलों में पलती रही तबाही

काश! सरकारी तंत्र ने भू-वैज्ञानिकों की सलाह मानी होती, तो पौराणिक केदारनाथ धाम में तबाही का इतना भयावह मंजर न पसरा होता। जी हां, जीएसआई (भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग) ने भूस्खलन और हिमस्खलन के लिहाज से अतिसंवेदनशील केदारनाथ व बदरीनाथ धामों पर मंडरा रहे खतरे से सरकारी तंत्र को नब्बे के दशक में ही सच

By Edited By: Published: Sun, 30 Jun 2013 09:15 AM (IST)Updated: Sun, 30 Jun 2013 09:15 AM (IST)

देहरादून [सुभाष भट्ट]। काश! सरकारी तंत्र ने भू-वैज्ञानिकों की सलाह मानी होती, तो पौराणिक केदारनाथ धाम में तबाही का इतना भयावह मंजर न पसरा होता। जी हां, जीएसआई (भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग) ने भूस्खलन और हिमस्खलन के लिहाज से अतिसंवेदनशील केदारनाथ व बदरीनाथ धामों पर मंडरा रहे खतरे से सरकारी तंत्र को नब्बे के दशक में ही सचेत कर दिया था। साथ ही, सुरक्षा उपाय भी सुझाए।

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बदरीनाथ में तो सुरक्षा के इंतजाम जरूर किए गए, मगर केदारनाथ के मामले में जीएसआइ की रिपोर्ट पर तंत्र की लापरवाही की गर्द वक्त के साथ मोटी होती चली गई। नतीजा आज सबके सामने है।

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बात अस्सी के दशक के आखिरी वर्षो की है, जीएसआइ बदरीनाथ व केदारनाथ क्षेत्र के भूगर्भीय अध्ययन में जुटा था। कई साल तक चले अध्ययन में जीएसआई ने पाया कि बदरीनाथ पर जहां हिस्खलन का खतरा बना हुआ है, वहीं केदारनाथ धाम की ऊपरी पहाड़ी पर स्थित चूराबारी झील (गांधी सरोवर) व ग्लेशियर भीषण आपदा का सबब बन सकते हैं। वर्ष 1994 में जीएसआई ने अपनी यह रिपोर्ट तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपी। साथ ही, दोनों पौराणिक धामों की सुरक्षा के लिए ठोस उपाय भी सुझाए।

भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बदरीनाथ धाम के पीछे की पहाड़ी पर हिमस्खलन की दिशा को नियंत्रित करने के लिए एवलांच डिफ्लेक्टर्स बनाए गए, मगर हैरत की बात यह है कि केदारनाथ धाम की सुरक्षा को सिरे से नजरअंदाज कर दिया गया। हैरत की बात यह कि उत्तराखंड बनने के बाद भी जीएसआई की रिपोर्ट पर चढ़ी धूल की परत वक्त गुजरने के साथ और मोटी होती चली गई। तंत्र की इस अनदेखी के नतीजे आज दुनिया के सामने हैं। केदार घाटी में आई आपदा ने जो तबाही मचाई, उसने सरकारी मशीनरी के इस लापरवाह रवैये पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

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