तो इसलिए लगी चीन को मिर्ची, US ड्रोन से होगी चीनी जहाजों की होगी निगरानी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी की मुलाकात के बाद चीन बौखलाया हुआ है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अब यह साफ हो गया है कि पीएम नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर चीन इतना असहज क्यों था। राष्ट्रपति ट्रंप और मोदी के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक में साऊथ चाईना सी को लेकर न सिर्फ विस्तृत बातचीत हुई है बल्कि इस पूरे इलाके में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को किस तरह से रोका जाए, इसकी रणनीति बनाने की तरफ भी संकेत दिए गए हैं। साथ ही अमेरिका भारत को निगरानी करने वाली ड्रोन तकनीकी सिस्टम देने को भी तैयार हो गया है।
दोनों देशों की तरफ से जारी संयुक्त बयान में भी इसका जिक्र है। बयान के मुताबिक, ''अमेरिका ने भारत को सी गार्डियन अनमैन्ड (मानवरहित) एरियल सिस्टम देने का प्रस्ताव किया है। इससे भारत के साथ ही साझा सुरक्षा हितों की रक्षा करने में मदद मिलेगी।'' सूत्रों के मुताबिक पहले चरण में भारत निगरानी करने वाले 22 ड्रोन खरीदेगा और इस पर तीन अरब डॉलर की लागत आएगी। बाद में यह तकनीक भारत को हस्तांतरित भी की जाएगी। वैसे भारत अमेरिका से हथियार गिराने वाले या हमला करने वाली ड्रोन तकनीक को भी लेने को उत्सुक है। माना जा रहा है कि इस बारे में आगे होने वाले दिनों में बात होगी।
ड्रोन के अलावा संयुक्त बयान में एक और तथ्य है जो चीन को काफी नागवार गुजरेगा। पहली बार भारत व अमेरिका ने चीन की वन बेल्ट वन रोड (ओबोर) की तरफ से इशारा किया है। इसमें कहा गया है कि दोनों देश आर्थिक तौर पर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की योजनाओं का समर्थन करते हैं लेकिन यह योजना पारदर्शी तरीके से और दूसरे देशों की सार्वभौमिकता व क्षेत्रीय अखंडता का आदर करते हुए होना चाहिए। सनद रहे कि भारत ओबोर का यह कहते हुए विरोध करता है कि वह उसके राज्य जम्मू व कश्मीर के उस हिस्से से गुजरेगा जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा जमाया हुआ है। भारत-अमेरिका संयुक्त बयान में ओबोर को लेकर भारत के हितों का उठाना दोनों देशों के बीच बढ़ रहे भरोसे को बताता है।
वर्ष 2015 व 2016 के संयुक्त बयानों में प्रशांत महासागरीय क्षेत्र की चर्चा एक दो पंक्तियों में होती थी। अमेरिका ने यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाले देशों के साथ है। हिंद-प्रशांत सागर क्षेत्र के हर देश से आग्रह किया है कि वे जहाजों की आवाजाही को लेकर जो भी समस्या है उसे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। भारत ने अमेरिका को इंडियन ओसियन नेवल सिम्पोजियम में पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल होने को कहा है और ट्रंप ने इसके लिए मोदी को धन्यवाद किया है। अमेरिका व जापान की नौ सेना के साथ मिल कर भारतीय नौ सेना के संयुक्त अभियान को और बढ़ाया जाएगा। भारत व अमेरिका के नौ सेनाओं की बीच बढ़ते सहयोग का इससे बड़ा उदाहरण और नहीं हो सकता।
भारत के लिए ड्रोन का महत्व : इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि भारत अपनी 7500 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबे समुद्री तट का अब ज्यादा बेहतर तरीके से निगरानी कर सकेगा। यह बहुत अहम हो गया है क्योंकि चीन ने अरब की खाड़ी से लेकर बंगाल की खाड़ी तक छोटे छोटे नौसैनिक अड्डे बना कर भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। चीन के जहाजों की निगरानी बढ़ने की संभावनाओं को देख कर ही अमेरिका ने कहा है कि यह 'तकनीकी साझा रक्षा' हितों के लिए उपयोगी साबित होगा। साथ ही इसका उपयोग आतंकियों व ड्रग स्मगलरों पर नजर रखने के लिए भी हो सकेगा।
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