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    ‘खुला’ के तहत तलाक जायज, अमेरिकी कोर्ट ने लगाई मुहर

    By Monika minalEdited By:
    Updated: Sun, 11 Sep 2016 11:58 AM (IST)

    खुला के तहत यदि कोई मुस्‍लिम महिला काजी के जरिए तलाक लेती है तो वह जायज होगा इस बात पर अमेरिका की अदालत ने भी मुहर लगा दी।

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    मुंबई की मुस्लिम महिला को काजी द्वारा ‘खुला’ के जरिए दिए गए तलाक मामले को अमेरिकी कोर्ट ने बरकरार रखा है। और इस केस को कोर्ट में दोबारा खोला गया। बता दें कि इस्लाम में ‘खुला’ के तहत महिलाएं तलाक दे सकती हैं। शिकागो की कुक काउंटी स्थित सर्किट कोर्ट के जज महिला की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गए। एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार, जज जॉन कार ने मुंबई की वकील नीलोफर अख्तर से इस केस में राय ली थी। इसके बाद कोर्ट ने मुहर लगा दिया था कि महिला की पहली शादी वैध तरीके से खत्म हो गई थी।

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    जानें पूरा मामला...

    34 वर्षीय महिला ने मुंबई में अपने पहले पति से 29 अप्रैल, 2007 को खुला के तहत तलाक दिया था। 19 जून, 2008 को उसने दूसरे व्यक्ति से शादी की, जो अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजिनियर है। लेकिन, यह शादी भी नहीं चली और 8 अप्रैल, 2014 को महिला ने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए गुजारा भत्ते की मांग की। इस पर महिला के पति ने कोर्ट में कहा का कि उनकी शादी वैध नहीं थी क्योंकि उसने अपने पहले पति से 'खुला' के तहत तलाक लिया था। इस तलाक को किसी फैमिली कोर्ट की ओर से मंजूर किए जाने के बजाय काजी ने इस पर मुहर लगाई थी। अदालत ने पति के इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि महिला की पहली शादी कायम है और दूसरी शादी अवैध है और महिला की याचिका खारिज कर दी गई। अदालत ने उस वक्त अहमदाबाद फैमिली कोर्ट के पूर्व जज और अब शिकागो में फॉरन लीगल कंसल्टेंट के पद पर काम कर रहे विनयकांत भट्ट की एक्सपर्ट राय ली थी।

    ‘खुला’ के तहत तलाक जायज

    इसके तहत भट्ट ने एक मामले का उदाहरण देते हुए कहा था कि ऐसे मामलों में फैसला देने का अधिकार सिर्फ फैमिली कोर्ट को है। दार-उल-कजा को समानांतर कोर्ट नहीं माना जा सकता। इस फैसले के बाद शिकागो स्थित सोशल एक्टिविस्ट मोहम्मद हमीद ने लीगल टीम का गठन किया और इस फैसले की समीक्षा की। इसके बाद अदालत में जुलाई, 2015 को यह मामला एक बार फिर से खुला। इस बार अदालत को अपनी एक्सपर्ट राय में नीलोफर अख्तर ने कोर्ट को बताया कि मुस्लिम लॉ में शादी को समाप्त करने के कई प्रावधान हैं, जो पूरे मुस्लिम जगत में सामान्य रूप से मान्य हैं।

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