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    जाते-जाते संप्रग बांट गई अपनों को रेवड़ियां

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    Updated: Tue, 15 Jul 2014 07:14 AM (IST)

    संप्रग सरकार जाते-जाते अपनों को राजनीतिक रेवडि़यां बांट गई। उसने नई सरकार बनने का इंतजार किए बगैर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत धन के आवंटन में मनमानी करते हुए उत्तर प्रदेश के साथ जबरदस्त भेदभाव किया। आंध्र प्रदेश को 4000 करोड़ और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े रा

    नई दिल्ली, [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। संप्रग सरकार जाते-जाते अपनों को राजनीतिक रेवडि़यां बांट गई। उसने नई सरकार बनने का इंतजार किए बगैर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत धन के आवंटन में मनमानी करते हुए उत्तर प्रदेश के साथ जबरदस्त भेदभाव किया। आंध्र प्रदेश को 4000 करोड़ और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को सिर्फ 200 करोड़ रुपये दिए। बिहार, झारखंड, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल जैसे गरीब राज्यों के हितों की भी अनदेखी की गई।

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    बिहार को पांच सौ, झारखंड को पौने दो सौ, उड़ीसा को साढ़े चार सौ और पश्चिम बंगाल को डेढ़ हजार करोड़ रुपये का आवंटन हुआ।

    उत्तर प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री अरविंद सिंह गोप ने संप्रग सरकार के इस भेदभाव पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव केंद्र से हमेशा राज्य के हिस्से की मांग करते रहे हैं, लेकिन उनके आग्रह को केंद्र ने नजरअंदाज किया है। मनरेगा में राज्य के साथ यह भेदभाव तो एक नजीर भर है।

    ग्रामीण विकास मंत्रालय को अंतरिम बजट में कुल 13 हजार करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे। इसका लगभग 30 फीसद 4000 करोड़ रुपये अकेले आंध्र प्रदेश को आवंटित कर दिया गया। यह राशि उसे पूरे सालभर में मिलनी थी। इसके विपरीत देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के हिस्से में मात्र 200 करोड़ रुपये का आवंटन हो सका था। इसके चलते उत्तर प्रदेश में मनरेगा का कामकाज बुरी तरह प्रभावित होना शुरू हो गया है।

    नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश में मनरेगा मद से 2000 करोड़ रुपये खर्च करने का कोई हिसाब किताब नहीं मिल रहा है। अब उस आंध्र प्रदेश के पुराने घपलों की जांच कराना तो दूर उसे 4000 करोड़ रुपये की नई सौगात दे दी गई है। इसे मंत्रालय में बैठे आंध्र प्रदेश के अफसरों की नजरें इनायत माना जा रहा है।

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