इस्लामिक शरिया कानून लागू करना है टीटीपी का मकसद
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जिसे कभी-कभी [टीटीपी] या पाकिस्तानी तालिबान भी कहते हैं, पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के पास स्थित संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र ...और पढ़ें

नई दिल्ली। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जिसे कभी-कभी [टीटीपी] या पाकिस्तानी तालिबान भी कहते हैं, पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के पास स्थित संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र से उभरने वाले चरमपंथी उग्रवादी गुटों का एक संगठन है। यह अफगानिस्तान की तालिबान से अलग है हालांकि उनकी विचारधाराओं से काफी हद तक सहमत है। इनका ध्येय पाकिस्तान में शरिया पर आधारित एक कट्टरपंथी इस्लामी अमीरात को कायम करना है।
इसकी स्थापना दिसंबर 2007 को हुई जब बेयतुल्लाह महसूद के नेतृत्व में 13 गुटों ने एक तहरीक (अभियान) में शामिल होने का निर्णय लिया। जनवरी 2013 में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने घोषणा की कि वे भारत में भी शरिया-आधारित अमीरात चाहते हैं और वहाँ से लोकतंत्र और धर्म-निरपेक्षता खत्म करने के लिए लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि वे कश्मीर में सक्रीय होने के प्रयास कर रहे हैं।
तालिबान का जन्म साल 2007 में हुआ। जब जुलाई 2007 में लाल मस्जिद में सेना की कार्रवाई से नाराज होकर बैतुल्लाह मसूद ने टीटीपी की शुरुआत की। टीटीपी यानी तहरीक-ए-तालिबान, जिसमें पाकिस्तान के 13 आतंकी समूह शामिल हुए। संगठन की शूरा की पहली बैठक में अफगानिस्तान में नाटो फौज और पाकिस्तानी फौज के खिलाफ जिहाद करने का फैसला लिया गया। पाकिस्तान तालिबान भारत के खिलाफ भी जिहाद की बात कर चुका है जब उसने यहां शरिया कानून लागू करने, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को खत्म करने की बात करता रहा है।
तहरीके तालिबान का मकसद है इस्लामिक शरिया कानून को लागू करना। वो अफगानिस्तान में नाटो फौज के खिलाफ जिहाद और पाकिस्तानी फौज के खिलाफ रक्षात्मक जिहाद करना चाहता है। तहरीक-ए-तालिबान खैबर पख्तूख्वां के स्वात घाटी में और उत्तरी वजीरिस्तान में सैन्य कार्रवाई को मुंहतोड़ जवाब देना चाहता है। इसके अलावा वो तहरीक-ए-तालिबान ही था जिसने पाकिस्तान में महिलाओं की रक्षा और शिक्षा के लिए आवाज उठाने वाली मलाला यूसुफजई पर जानलेवा हमला किया था। लेकिन इस बार बच्चों को अपना निशाना बनाकर इस तहरीक-ए-तालिबान ने कायरता का सबसे बड़ा नमूना पेश किया है।

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