Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    किराया वृद्धि में पारदर्शिता से मुंह चुराता है रेलवे

    By Edited By:
    Updated: Sun, 22 Jun 2014 10:06 AM (IST)

    रेल किरायों में होने वाली वृद्धि भले ही बरसात के सुस्त मौसम में कुछ कम चुभे। लेकिन किराया निर्धारण में रेलवे अफसरों की बाजीगरी का दंश यात्रियों को हरदम सताएगा। रेलवे की मौजूदा नीति के तहत एक अप्रैल से 31 जुलाई और एक सितंबर से 31 जनवरी की अवधि को व्यस्त मौसम माना जाता है। इस दौरान मांग इतनी ज्यादा रह

    नई दिल्ली, [संजय सिंह]। रेल किरायों में होने वाली वृद्धि भले ही बरसात के सुस्त मौसम में कुछ कम चुभे। लेकिन किराया निर्धारण में रेलवे अफसरों की बाजीगरी का दंश यात्रियों को हरदम सताएगा। रेलवे की मौजूदा नीति के तहत एक अप्रैल से 31 जुलाई और एक सितंबर से 31 जनवरी की अवधि को व्यस्त मौसम माना जाता है। इस दौरान मांग इतनी ज्यादा रहती है कि रेलवे के लिए उसे पूरा करना संभव नहीं होता। इस समस्या का कोई समाधान निकालने के बजाय रेलवे ने इससे मुनाफा कमाना शुरू कर दिया है। इसके लिए यात्रियों की जेब से पैसा निकालने के कुछ नए उपाय ढूंढे और लागू किए गए हैं। प्रत्यक्ष उपायों की तो स्पष्ट घोषणा कर दी जाती है, मगर छद्म उपायों के बारे में किसी को पता नहीं चलता। परोक्ष उपायों को चुपके से लागू कर दिया जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    व्यस्त मौसम में अधिक दर वसूलने की डायनमिक प्राइसिंग की नीति पहले केवल मालगाड़ियों पर लागू थी। 2012-13 के रेल बजट से इसे यात्री ट्रेनों पर भी लागू कर दिया गया। इसके तहत एक फरवरी से 31 मार्च और एक अगस्त से 31 अगस्त के दौरान कम किराया वसूलने का भी प्रावधान है। यह अलग बात है कि इसे लागू करने में पारदर्शिता नहीं बरती जाती। व्यस्त मौसम में ज्यादा किराया लेकर रेलवे न केवल मुनाफा कमाता है, बल्कि मांग के दबाव से बचने की कोशिश भी करता है।

    किस बात का सुपरफास्ट प्रभार

    परोक्ष उपायों के तहत रेलवे नए-नए घटकों के तहत यात्रियों से किराये के ऊपर शुल्क वसूलता है। उदाहरण के लिए आरक्षण शुल्क और सुपरफास्ट चार्ज की मदों के तहत प्रति टिकट 30 रुपये से लेकर 135 रुपये तक की वसूली की जाती है, जबकि राजधानी, दूरंतो व शताब्दी को छोड़ ज्यादातर ट्रेनों की औसत रफ्तार 50 किमी भी नहीं है। इसके अलावा खानपान शुल्क व सर्विस टैक्स अलग से लिया जाता है। आरक्षण करने और रद करने दोनों के पैसे लेता है। यह जानते हुए भी कि प्रतीक्षा सूची के 90 फीसद लोगों को आरक्षण नहीं मिलेगा, वह वेटलिस्ट टिकटें बेचता रहता है।

    अपारदर्शिता का आलम

    पारदर्शिता के अभाव का आलम यह है कि 'लोकप्रिय ट्रेनों' के सेकंड और फ‌र्स्ट एसी में पूरे साल पीक सीजन किराया वसूलने की शर्त रखी गई है। यह कहीं नहीं स्पष्ट किया गया है कि लोकप्रिय ट्रेनें कौन-कौन सी हैं। बाकी कौन सी ट्रेनें हैं जहां सुस्त मौसम में कम किराया लगेगा।

    comedy show banner
    comedy show banner