Move to Jagran APP

जानिए, किसने दी बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को बौद्ध धर्म की दीक्षा

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर अपने जीवन के अंतिम काल में हिंदू धर्म की कुरीतियों से बहुत ही निराश थे। उनका झुकाव बौद्ध धर्म की तरफ हो रहा था।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 14 Apr 2016 08:35 AM (IST)Updated: Thu, 14 Apr 2016 09:21 AM (IST)

लखनऊ। कहा जाता है कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर अपने जीवन के अंतिम काल में हिंदू धर्म की कुरीतियों से बहुत ही निराश थे। धीरे धीरे उनका झुकाव बौद्ध धर्म की तरफ हो रहा था। अंबेडकर को ये यकीन हो चला था कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए जो कोशिशें की जा रही हैं वो उतनी असरकारी नहीं है। 1950 से 1956 के बीच उन पर कुछ बौद्ध भिक्षुओं का प्रभाव पड़ा और उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपनी पत्नी के साथ बौद्ध धर्म को अंगीकार कर लिया।

loksabha election banner

डॉ भीमराव अंबेडर की जयंती आज, संसद भवन में दी जाएगी श्रद्धांजलि

आखिर वो कौन लोग थे जिनके प्रभाव में आकर अंबेडकर ने हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया। करीब 90 साल के बौद्ध भिक्षु भदांत प्रज्ञानंद उन सात भिक्षुओं में शामिल हैं जिन्होंने अंबेडकर के धर्म परिवर्तन पर ज्यादा असर डाला। प्रज्ञानंद उम्र के इस पड़ाव पर सही तरह से न तो बोल पाते हैं न ही सुन पाते हैं। इशारों के जरिए वो अपनी बात को कहते हैं। लेकिन अंबेडकर का जिक्र आते ही न जाने उनमें इतनी शक्ति आ जाती है कि उनकी दबी हुई आवाज कुछ साफ हो जाती है और वो उन हालातों का जिक्र करते हैं जब बाबा साहेब अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था।

मोदी आज महू में , अंबेडकर स्मारक जाने वाले पहले पीएम

प्रज्ञानंद का कहना है कि अंबेडकर को दीक्षा देने के समय उन्होंने भदांत चंद्रमणि महाथेरो की मदद की थी। चंद्रमणि महाथेरो ने ही बाबा साहेब का धर्म परिवर्तन कराया था। मूलरूप से श्रीलंका के रहने वाले प्रज्ञानंद ने बताया कि धर्म परिवर्तन के वक्त अंबेडकर का सांसारिक दुनिया से संबंध खत्म हो चुका था।

प्रज्ञानंद लखनऊ के रिसालदार पार्क के बुद्ध विहार में रहते हैं उनके मुताबिक बाबा साहेब ने बुद्ध विहार का दो बार दौरा किया था। प्रज्ञानंद का कहना है कि लखनऊ दौरे के बाद बाबा साहेब के मन में हिंदू धर्म त्यागने का विचार आया और वो बौद्ध धर्म की तरफ तेजी से आकर्षित हुए।

भदांत प्रज्ञानंद का कहना है कि अगर मध्य प्रदेश में महू उनकी जन्मभूमि है, अगर नागपुर उनकी दीक्षाभूमि है तो लखनऊ को स्नेहभूमि कहना गलत न होगा। बाबा साहेब ने 1948 और 1951 में लखनऊ का दौरा किया था। 1948 के एक फोटोग्राफ में उन्हें लोगों से धार्मिक विषयों पर विचार विमर्श करते हुए देखा जा सकता है।

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक प्रज्ञानंद ने कहा कि शायद लखनऊ का दौरा खास था, जब बाबा साहेब के मन में बौद्ध धर्म अपनाने की तीव्र इच्छा जगी। दरअसल, भदांत बोधानंद को दीक्षा देनी थी लेकिन उनकी अचानक मौत होने के बाद ये जिम्मेदारी चंद्रमणि महाथेरो को ये जिम्मेदारी दी गई।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.