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देश का सबसे बड़ा दुश्मन भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार किसी भी देश के लिए दीमक की तरह है, जो मजबूत से मजबूत और बड़े से बड़े वृक्ष की जड़ों को चाट कर उसे ढहा देता है। भ्रष्टाचार हमारे समाज को अंदर से खोखला कर हर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने की हमारी क्षमता को खत्म करता है। सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों पर इसका असर भी व्यापक रहता है। भ्रष्टाचार को चार तरह से समझा जा स

By Edited By: Published: Mon, 24 Mar 2014 02:58 PM (IST)Updated: Mon, 24 Mar 2014 03:55 PM (IST)
देश का सबसे बड़ा दुश्मन भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार किसी भी देश के लिए दीमक की तरह है, जो मजबूत से मजबूत और बड़े से बड़े वृक्ष की जड़ों को चाट कर उसे ढहा देता है। भ्रष्टाचार हमारे समाज को अंदर से खोखला कर हर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने की हमारी क्षमता को खत्म करता है। सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों पर इसका असर भी व्यापक रहता है। भ्रष्टाचार को चार तरह से समझा जा सकता है।

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दाल में नमक

पहला भ्रष्टाचार निम्नस्तरीय और बहुत ही आम है। इसे 'स्पीड मनी' भी कहा जाता है। इसमें छोटे-छोटे भुगतान कर सरकारी दफ्तरों में अपने काम तेजी से निपटवाकर आम आदमी अपना समय व पैसा बचाने की जुगत में रहता है। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति अपने वैध चेक न रोकने और पासबुक में सही समय पर एंट्री सुनिश्चित करने के लिए बैंक के रोकड़िये को मामूली भुगतान कर खुश रखता है। आदर्श रूप से प्रक्रिया और प्रणाली अंतर-संवाद से इतनी सुरक्षित होनी चाहिए कि इस तरह के भ्रष्टाचार को पनपने का मौका ही न मिले, लेकिन इस तरह की चीजें सामान्य तौर पर संभव नहीं हो पाती हैं, जिससे निम्नस्तरीय भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। लोग इस तरह के भ्रष्टाचार को आम बोलचाल में 'दाल में नमक' कहते हैं। सामाजिक तौर पर इसे पूरी तरह स्वीकार भी किया जा चुका है। इसका अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर असर नहीं पड़ता है।

कानून का उल्लंघन करने की छूट

दूसरे तरह का भ्रष्टाचार भुगतान करने वाले को कानून का उल्लंघन करने की छूट देता है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने के दौरान पकड़े जाने पर ट्रैफिक पुलिस को दी जाने वाली घूस इसका सामान्य सा उदाहरण है। इस तरह के भ्रष्टाचार का समाज और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। दंड या जुर्माने से कम घूस देकर छूट जाने पर कानून का उल्लंघन करने वालों के हौसले बढ़ जाते हैं। उनका व्यवहार आक्रामक होता जाता है। यातायात के मामले में इस तरह के भ्रष्टाचार के नतीजे ट्रैफिक जाम, सड़क पर मारपीट-झगड़ा और दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी के तौर पर सामने आता है। कई बार गंभीर मामलों में भी पुलिस या मामले से जुड़े अधिकारियों को घूस देकर आरोपी बच निकलते हैं। कई बार नेताओं से दबाव डलवाकर भी आरोपी साफ बरी हो जाता है। संगठनों और यूनियनों का भ्रष्टाचार

कुछ लोग एकजुट होकर जरूरतमंदों से ज्यादा शुल्क या लागत वसूलते हैं, जिससे सेवाओं या वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है। नतीजतन कुछ उपभोक्ता उन वस्तुओं और सेवाओं से वंचित रह जाते हैं। यह तीसरे प्रकार का भ्रष्टाचार है। उत्पादक संगठन और मजदूर यूनियन इस भ्रष्टाचार में लिप्त रहती हैं। इससे निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचती है और जनकल्याण पर नकारात्मक असर पड़ता है। स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का संगठन या दवा निर्माता इसका उदाहरण हो सकते हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रदाता आम आदमी से अस्पताल में भर्ती होने की भारी कीमत वसूलते हैं, तो दवा निर्माता जीवनरक्षक दवाइयों के ऊंचे दाम लेते हैं। हवाई सुविधाओं के क्षेत्र में पायलट और केबिन क्रूफ की ट्रेड यूनियन खराब व्यवहार को बढ़ावा देते हैं और सुरक्षा मानकों से समझौता करते हैं।

सरकार का भ्रष्टाचार

सरकार का दो पक्षों में से एक की तरफ से खड़े होकर सौदा पक्का कराने से देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। यह चौथे तरह का भ्रष्टाचार है। इसमें भुगतान के लिए कई तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। सरकार से जुड़े लोगों को खुश करने के लिए दलाली, घूस, उपहार या सीधे नकद भुगतान भी किया जाता है। सरकार को यह भुगतान सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और कई बार निजी कंपनियों को वस्तु व सेवा आपूर्ति का सौदा पक्का कराने के लिए किया जाता है। रक्षा उपकरणों की आपूर्ति और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का सौदा पक्का कराने के लिए घूस और दलाली इस तरह के भ्रष्टाचार का सीधा उदाहरण है। इसी श्रेणी के भ्रष्टाचार में भूमि, स्पेक्ट्रम, खनन लाइसेंस, कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए सरकार या उनकी एजेंसियों को घूस देना भी शामिल है। कुछ लोगों को फायदा या प्रतिस्पर्धियों को नुकसान पहुंचाने के लिए नियमों को बदलने के लिए दी जाने वाली रिश्वत सरकारी भ्रष्टाचार की इसी श्रेणी की उपश्रेणी है। इसमें कारोबारी घरानों का खास वर्ग नेताओं और नौकरशाहों के साथ गठजोड़ कर लेता है। इस तरह का भ्रष्टाचार इस हाथ ले-इस हाथ दे की नीति पर काम करता है। अपने फायदे के बदले में कारोबारी घराने भ्रष्ट राजनीतिक दलों और अधिकारियों को लाभ पहुंचाते हैं।

देश के रणनीतिक हितों से समझौता

नेताओं और कारोबारी घरानों की साठगांठ से होने वाला भ्रष्टाचार सरकारी फैसलों पर बुरा असर डालता है। नतीजतन कंपनियों को बाजार में बराबर का मौका नहीं मिलता। इससे न केवल कारोबार की लागत बढ़ जाती है, बल्कि देश के रणनीतिक हितों के साथ भी समझौता किया जाता है। इस श्रेणी के भ्रष्टाचार का सबसे खतरनाक असर सरकारी फैसलों में नजर आता है। निवेश का माहौल पूरी तरह से अनिश्चित नजर आने लगता है और निवेशक घबराने लगते हैं। निवेशकों को पता ही नहीं चलता कि मौजूदा नियम कब और किस दिशा में बदल दिए जाएंगे। उन्हें निवेश प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने की परिस्थितियों का जरा भी अंदाजा नहीं होता। ऐसे अनिश्चित माहौल में निवेश गतिविधियां पूरी तरह ठप पड़ जाती हैं। दुर्भाग्य से कुछ ऐसा ही संप्रग-दो के शासनकाल में हुआ है। आर्थिक वृद्धि अपने निचले स्तर पर पहुंच गई, जिसका रोजगार और जनकल्याण पर बुरा असर पड़ा। सबसे खतरनाक बात है कि इस तरह का भ्रष्टाचार संगठित हो गया है, जबकि बाकी सभी स्तर के भ्रष्टाचार दबे-छुप रहते हैं। सरकार का प्रणालीगत और अद्श्य भ्रष्टाचार अमूमन संगठित व वैध आर्थिक गतिविधियों को क्षति पहुंचाता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर बुरा असर पड़ता है। संगठित भ्रष्टाचार समाज में जंगलराज को बढ़ावा देता है। इतिहास गवाह है कि इस तरह के भ्रष्टाचार ने बड़े-बड़ साम्राज्यों को खत्म कर दिया। ऐसे भ्रष्टाचार से ही आजिज आकर जनता ने बड़े-बड़े खूनी आंदोलनों को खड़ा किया है। देखना है भारत में क्या होता है।

राजीव कुमार

(नोट- लेखक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली में सीनियर फेलो हैं।)


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