आतंकियों ने कश्मीर में बदली रणनीति, जानिए कौन है निशाने पर
सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसके पहले तीन दशक से जारी आतंकवाद के दौरान आतंकियों ने कभी भी स्थानीय पुलिसकर्मियों पर कभी हमला नहीं किया।

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। कश्मीर घाटी में रह रहकर हो रहे बवाल को हवा देने के लिए आतंकी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसके लिए जहां एक तरफ वह स्थानीय लोगों को उकसा चिंगारी भड़काने का काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ इन आतंकियों ने अब नया हथकंडा अपनाया है। इन आतंकियों की यह नई रणनीति है स्थानीय पुलिसबलों के परिवारवालों को निशाना बनाकर उनकी हत्या करना। इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है पांच महीने पहले सेना में लेफ्टिनेंट के तौर पर भर्ती हुए 22 वर्षीय उमर फैयाज़। जिन्हें आतंकियों ने अगवा कर हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया गया।
कौन थे लेफ्टनेंट उमर फैयाज़
लेफ्टिनेंट उमर दक्षिण कश्मीर के जिला कुलगाम अंतर्गत सुआतंकियों की इस बदली हुई रणनीति पर रक्षा मामलों को जानकार जी.डी. बख्शी का कहना है, “जिस तरह कश्मीर में आज वहां के स्थानीय सुरक्षाबलों या फिर पुलिसकर्मियों के परिवारवालों को निशाना बनाया जा रहा है ऐसा ही कभी पंजाब में भी हुआ करता था। लेकिन, उस समय तत्कालीन पंजाब के डीजीपी केपीएस गिल ने आतंकियों से साफ कह दिया था कि वह अगर सुरक्षबलों के परिवारवालों को निशाना बना रहे तो हमें भी पता है कि आपके परिवार कहां पर है।”
जीडी बख्शी का मानना है कि घाटी में आतंकी भले ही हताश हो लेकिन अपने नापाक मंसूबों को कामयाब बनाने के लिए अपनी लगातार रणनीति बना रहे हैं। जबकि, दूसरी तरफ कश्मीर में युवा जो बेरोजगार है वह आसानी से इन आतंकियों का शिकार हो रहे हैं। वह रास्ता भटक रहे हैं।
डसनु गांव के रहने वाले थे। उन्होंने 10 दिसंबर 2016 को कमीशन प्राप्त किया था। 8 जून 1994 को पैदा हुए उमर अखूनर में तैनात राजपूताना राइफल्स में नियुक्त थे। उमर पहली बार छुट्टी लेकर ममेरी बहन की शादी में भाग लेने कुलगाम आए थे।
सात साल में ऐसी पहली घटना
बीते सात साल में यह पहला मौका है जब आतंकियों ने दक्षिण कश्मीर में छुट्टी पर घर आए किसी सैन्यकर्मी या अधिकारी की हत्या की हो, जबकि 1996 के बाद यह पहला अवसर है, जब आतंकियों ने किसी शादी समारोह या जनाजे में आए किसी व्यक्ति को अगवा कर मौत के घाट उतारा हो।

तीन दशक में पहली बार स्थानीय पुलिसकर्मी शिकार
यहां पर सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसके पहले तीन दशक से जारी आतंकवाद के दौरान आतंकी स्थानीय पुलिसकर्मियों पर कभी हमला नहीं करते थे। उनके निशाने पर हमेशा सेना और अर्धसैनिक बल के जवान ही होते थे। घाटी में सक्रिय आतंकियों ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव लाते हुए आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे पुलिस और सेना के अधिकारियों पर मानसिक दबाव बनाने और डराने के लिए पिछले ढाई माह से उनके परिवारवालों को लगातार निशाना बना रहे हैं।

हिज्ब कमांडर ने सुरक्षाबलों को दी थी चेतावनी
हिज्ब कमांडर जाकिर मूसा ने कुछ समय पहले सुरक्षाबलों को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर वह जिहादी गतिविधियों में रुकावट बनेंगे तो उनके परिजनों को निशाना बनाया जाएगा। इसके बाद आतंकियों ने मार्च महीने के पहले सप्ताह कुलगाम में एक डीएसपी के घर हमला किया। उसके बाद शोपियां में एक एसपी, एक डीएसपी के घर जाकर तोड़-फोड़ की, दो पुलिसकर्मियों को पीटा। बड़गाम में एक जेलर के बेटे को अगवा करने के अलावा उसकी कार को आग लगाई गई। बीते माह एक डीएसपी के मामा की हत्या की गई।

भय दिखाकर अपनी हताशा छिपा रहे आतंकी
सुरक्षा एजेंसी के वरिष्ठ आधिकारी की मानें तो आतंकी ऐसा कदम हताशा में उठा रहे हैं। उसकी सबसे बड़ी वजह बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में बनाए गए भारत विरोधी माहौल में लगभग 100 युवाओं ने ही आतंकवाद का रास्ता चुना और हथियार उठाया, जबकि पिछले महीने 800 सैनिकों की भर्ती के लिए घाटी के 19 हजार युवाओं ने आवेदन किया था। आंकड़ों से साफ है कि घाटी का अधिकांश युवा अपना भविष्य भारत के साथ देख रहा है और यही आतंकियों और अलगाववादियों के लिए सबसे बड़ी हताशा का कारण है।
जानिए, रक्षा विशेषज्ञ की राय
आतंकियों की इस बदली हुई रणनीति पर रक्षा मामलों को जानकार और पूर्व मेजर जनरल जी.डी. बख्शी ने जागरण डॉट काम से बात करते हुए कहा, “जिस तरह कश्मीर में आज वहां के स्थानीय सुरक्षाबलों या फिर पुलिसकर्मियों के परिवारवालों को निशाना बनाया जा रहा है ऐसा ही कभी पंजाब में भी हुआ करता था। लेकिन, उस समय तत्कालीन पंजाब के डीजीपी केपीएस गिल ने आतंकियों से साफ कह दिया था कि वह अगर सुरक्षबलों के परिवारवालों को निशाना बना रहे तो हमें भी पता है कि आपके परिवार कहां पर है।”
जीडी बख्शी का मानना है कि घाटी में आतंकी भले ही हताश हो लेकिन अपने नापाक मंसूबों को कामयाब बनाने के लिए अपनी लगातार रणनीति बना रहे हैं। जबकि, दूसरी तरफ कश्मीर में युवा जो बेरोजगार है वह आसानी से इन आतंकियों का शिकार हो रहे हैं। वह रास्ता भटक रहे हैं।
बख्शी का आगे कहना है कि सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि जब सुरक्षाबलों की तरफ से आतंकियों पर कोई बड़ी कार्रवाई की जाती है तो उसके आड़े उदारवादी संगठन या फिर मानवाधिकार संगठन आ जाते हैं। यह सुरक्षकर्मियों के काम में बड़ी रुकावट पैदा करते हैं। दूसरी तरफ, वहां के गांव के लोग सड़कों पर आकर इन सुरक्षाबलों के ऊपर पत्थर बरसाने लग जाते हैं। ऐसे में इन आतंकियों के खिलाफ सीधी कार्रवाई करने में काफी अड़चनें है।

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