आतंकी फरमान, कश्मीर में चलेगा शरिया कानून
श्रीनगर [जागरण ब्यूरो]। कश्मीर घाटी में पहले पंच-सरपंचों, फिर कश्मीरी पंडितों और पत्रकारों को धमकी के बाद अब आतंकियों ने निजाम-ए-मुस्तफा [शरिया कानून] ...और पढ़ें

श्रीनगर [जागरण ब्यूरो]। कश्मीर घाटी में पहले पंच-सरपंचों, फिर कश्मीरी पंडितों और पत्रकारों को धमकी के बाद अब आतंकियों ने निजाम-ए-मुस्तफा [शरिया कानून] लागू करने का एलान किया है। पोस्टर के जरिये जारी किए गए इस फरमान में महिलाओं को पर्दे में रहने या फिर तेजाबी हमले झेलने को कहा गया है। यह ताजा धमकी आतंकी संगठन अलकायदा मुजाहिदीन ने दी है।
बीते दिनों दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के विभिन्न गांवों में मस्जिदों की दीवारों और बिजली के खंभों पर धमकी भरे पोस्टर चिपकाए गए। पोस्टरों में लिखा है कि यह धरती अल्लाह की है और यहां अल्लाह का ही कानून चलेगा, इसलिए पंच और सरपंच एक हफ्ते के अंदर इस्तीफा दें।
हाथ से लिखे इन पोस्टरों में दोनों तरफ सबसे ऊपर राइफलें बनी हैं। इनके बीच अंग्रेजी में 'इस्लाम का मुंतजिम' और इसके नीचे 'लश्कर-ए-अलकायदा' लिखा है। अंग्रेजी में निजाम-ए-मुस्तफा का जिक्र करते हुए आगे पूरा पोस्टर उर्दू भाषा में है। पहले इसमें पंच-सरपंचों को इस्तीफा देने का हुक्म सुनाते हुए कहा गया है कि यहां पंचायती राज नहीं, निजाम-ए-मुस्तफा चलेगा। इसलिए सभी पंच-सरपंच अपने ओहदों से एक सप्ताह के भीतर इस्तीफा देते हुए इसका सार्वजनिक तौर पर एलान करें।
पोस्टर के अंत में कहा गया है कि अपनी मां-बहनों, बहू-बेटियों को पर्दे में ही घर से बाहर भेजें। उन्हें सार्वजनिक जगहों पर मोबाइल फोन के इस्तेमाल से रोकें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम उन पर तेजाब फेंकेंगे।
शोपियां के एसपी मुमताज अहमद ने इन पोस्टरों की पुष्टि करते हुए कहा कि यह किसी की शरारत भी हो सकती है, लेकिन हम इस धमकी को खारिज नहीं कर सकते। जिन इलाकों में ये पोस्टर मिले हैं, वहां पंच-सरपंचों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
कश्मीर से सिख भी कर रहे हैं पलायन
श्रीनगर। कश्मीर की वादी से पंडितों के पलायन के बाद अब सिख समुदाय भी कश्मीर से बाहर अपना आशियाना तलाश रहा है। बडगाम, बारामुला और कुपवाड़ा जिलों से बड़ी संख्या में सिख समुदाय के लोग अपने पैतृक घरों को छोड़, जम्मू व अन्य जगहों पर बस गए हैं। यह दावा शनिवार को ऑल पार्टी सिख कोऑर्डिनेशनकमेटी के चेयरमैन सरदार जगमोहन सिंह रैना ने किया।
रैना ने कहा कि सिख समुदाय ने आतंकी हिंसा के वाबजूद कश्मीर नहीं छोड़ा। लेकिन दो दशकों से हमारी उपेक्षा हो रही है। इससे सिखों का कश्मीर में रहना मुश्किल होता जा रहा है। कश्मीरी सिख राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर पक्षपात के शिकार हैं। यह पलायन मुख्यत: आर्थिक कारणों से ही हो रहा है, क्योंकि यहां रोजगार नहीं है। सिखों को कोई आरक्षण नहीं है। कश्मीरी सिखों की समस्या का एक ही हल है कि उन्हें कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया जाए।
देश के हर हिस्से में सिख समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला है, लेकिन कश्मीर में ऐसा नहीं है, जबकि एक बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यक कोटे की केंद्रीय सुविधाओं का लाभ ले रहा है। उन्होंने छत्तीसिंहपोरा नरसंहार की किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा जांच कराने की मांग की।
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